इस हाईटेक दुनिया में,
सब कुछ हासिल,
पासवर्ड से,
क्या मोबाइल,
क्या कम्प्यूटर,
दरवाज़े, ताले,
तिजोरी,
बैंक खाता,
सब चलते,
इससे |
लाखों, करोड़ों,
इधर से उधर,
बस एक,
पासवर्ड से |
वैसे पासवर्ड,
की ईजाद,
कोई,
नई नहीं |
अलीबाबा का,
"खुल जा सिम सिम",
पासवर्ड ही था |
पर इस सब से,
इतर,
एक पासवर्ड और है,
जो खोल सकता है,
तमाम दिलों को,
तमाम बंद रिश्तों को,
तमाम उलझनों को |
रिश्ते जैसे,
पति -पत्नी के,
सास-बहू के,
भाई -भाई के,
अड़ोसी-पडोसी के,
डाक्टर-मरीज़ के,
दोस्त-दोस्त के,
वगैरह वगैरह |
मगर इस पासवर्ड के,
साथ एक शर्त,
इतनी सी कि,
मंशा भी,
झलकनी चाहिए,
सच्ची |
और हाँ !
वो,
पासवर्ड है,
बस,
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"दो बोल प्यार के"
अरे एक रिश्ता,
तो मै भूल ही,
गया था,
"ब्लागर और,
टिप्पणीकार का",
( इसमें भी उलझने बहुत दिख जाती है प्रायः )