गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

"क्यों ना हो जाएं ’ट्रांसफ़ार्मर’ सरीखे हम"

              "ट्रांसफार्मर से सभी लोग भली भांति परिचित होंगे | यह वह विद्युत उपकरण है जो आवश्यकता अनुसार उच्च विभव को निम्न विभव और निम्न विभव को उच्च विभव में परिवर्तित करता है | इसकी आतंरिक संरचना इस प्रकार की होती है कि, बस इससे विद्युत प्रवाहित होते ही इच्छित परिणाम मिल जाते हैं" |
                 मनुष्य का एक दूसरे के प्रति व्यवहार आपस में किये गए संवाद और भाव भंगिमा से ही परिलक्षित होता है | यदि हम अपने मन ओर सोच की आतंरिक संरचना कुछ ट्रांसफार्मर जैसी कर ले, तो कितना उत्तम होगा ,अर्थात दूसरे व्यक्ति के जो भी विचार ,भाव भंगिमा या शब्द शैली हो उसे हम अपने में आत्मसात करते हुए परिस्थिति के अनुसार ही उसके अर्थ और मंतव्य को बाहर आने दें | जैसे कोई कितना भी अप्रिय अथवा बुरा बोल रहा हो (हाई वोल्टेज )  हम शांति पूर्वक उसे अपने में समाहित करते हुए शांत भाव (लो वोल्टेज ) से बात आगे बढाने की कोशिश करें | और कोई व्यक्ति छोटी सी भी अच्छी बात या विचार या भाव प्रकट करने का प्रयास मात्र भी करे तो तुरंत  जोर शोर से उसकी बात का समर्थन करते हुए उसकी भावना को आगे बढ़ाएं | आने वाले विचार और जाने वाले विचारों के आपस में टकराने से ( varying flux) कुछ उष्मा( eddy current) भी मन में उत्पन्न होगी | उसे ठंडा करने के लिए  ठंडे विचारों के प्रवाह की आवश्यकता होगी, जो ईश्वर की अराधना ,भजन ,संध्या एवं ध्यान से प्राप्त की जा सकती है |

7 टिप्‍पणियां:

  1. .

    अमित जी ,

    बहुत बढ़िया बात कही आपने । काश ये संभव हो सकता की हम अपने अंदर ट्रांसफोर्मर जैसा कुछ कर सकते और बहुत कुछ आत्मसात अथवा परिष्कृत होते हुए बाहर आने देते , तो बहुत सी समस्याओं के हल मिल जाते ।

    शायद अपने अहम् पर नियंत्रण रखकर ऐसा कुछ किया जाना संभव हो सके।

    .

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  2. एक ट्रांस्फ़ार्मर वो भी है जो खिलौना कार से आदमी बन जाता है... आज कुछ कुछ आदमी वैसा ही बनता जा रहा है :)

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  3. ट्रांसफार्मर और मनुष्य की ऐसी समानता तो पहली-2 बार जेहन में आई.
    कभी कभी ओवरलोड से ट्रांसफार्मर फूट भी जाता है. तो मनुष्य को ओवरलोड से भी बचना चाहिए. लोड बैलेंसिंग भी चाहिए, ताकि ज्यादा दिन जिए.. इत्यादि बहुत सी समानताएँ देखने को मिल रही हैं सोचने पर.

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  4. आजकल गर्मी में ट्रांसफ़ार्मर के उड़ने का खतरा भी बहुत रहता है। :)

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  5. बिलकुल की जा सकती है ......बस आदत बनाने की बात है... हाँ ... धैर्य बहुत होना चाहिए !!बहुत अच्छी तरह समझाया आपने ...!!
    सार्थक आलेख ....!!

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