बुधवार, 20 अप्रैल 2011

"शब्दों के खनकते सिक्के"

जब कभी,
जेब में हाथ डाला, 
पैसों के लिए, 
पहले सिक्के ही खनके, 
और बाहर आ गए | 
सिक्के खर्च होते गए, 
धीरे धीरे,
फिर,  
कुछ छोटे नोट, 
भी कम हो गए | 
मगर, 
कोने में दबा रुपया, 
सहेजा रहा, 
भविष्य के लिए | 
ऐसी ही बात है, 
शब्दों की, 
जब तुम सामने हो, 
कोशिश करता हूँ, 
कुछ कहने की, 
पर, 
पहले खनकते, 
शब्द ही बाहर आते हैं, 
छोटे छोटे, 
शायद उनकी आवाज़, 
तुम्हे पसंद नहीं | 
पर तनिक ठहरो तो, 
मै कुछ और बड़े शब्द, 
खर्च करना चाहता हूँ, 
पर तुम  तो, 
सिक्कों की खनक से  ही, 
मेरी हैसियत,
आंकने  लगती हो,
और शब्दों के ही चन्द,
सिक्के मेरी हथेली,
पर रख कर आगे,
बढ़ जाती हो |
मुमकिन हो,
मै शाहखर्च नहीं,
शब्दों को खर्चने में,
पर क्या रिश्तों की भी,
नीलामी होती है,
जो ज्यादा शब्दों की,
बोली लगाएगा,
वही जीतेगा |
शायद,
कुछ चुप सौदागर भी,
होते हैं,
मेरे जैसे,
जो अपना मुड़ा तुड़ा,
नोट और शब्द,
(कोने में दबा )
खर्च करते हैं,
अंत में |
पर,
तब तक तो,
बोली लग चुकी होती है,
और,
देखते रह जातें हैं,
हम,
बस,
लगते दीमक,
अपने शब्दों,
की तहों में ।



34 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (21-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  2. देखते रह जातें हैं,
    हम,
    बस,
    लगते दीमक,
    अपने शब्दों,
    की तहों में ।
    एक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !

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  3. आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं

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  4. कुछ चुप सौदागर भी,
    होते हैं,
    मेरे जैसे,
    जो अपना मुड़ा तुड़ा,
    नोट और शब्द,
    (कोने में दबा )
    खर्च करते हैं,
    अंत में |
    क्या बात है. बहुत सुन्दर.

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  5. पर क्या रिश्तों की भी,
    नीलामी होती है,
    जो ज्यादा शब्दों की,
    बोली लगाएगा,
    वही जीतेगा |

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..एहसास भी बोल कर बताने पड़ते हैं ..

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  6. आवाजों के बाज़ारों में, खामोशी पहचाने कौन ।
    बहुत सुंदर रचना ।

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  7. .

    Very touching creation. It happens that people fail to understand us. They judge us by few words only. We need to show enough patience to hear out someone properly , then only a relationship grows and lasts long. And also we need to keep our EGO in check.

    .

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  8. अमित जी,
    बहुत शानदार रचना है। लेकिन इन शब्दों में दीमक नहीं लगती, पक्की बात है। खरी चीज अंत तक खरी रहेगी, ऐसा विश्वास है।

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  9. बहुत खूब ...बढ़िया अंदाज़ रहा आपका ! शुभकामनायें !!

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  10. पर क्या रिश्तों की भी,
    नीलामी होती है,
    जो ज्यादा शब्दों की,
    बोली लगाएगा,
    वही जीतेगा

    सही कहा आपने..
    जो शब्दों ज्यादा को तोड़-मरोड़ कर
    बोली लगाएगा..
    जीत उसी की होती है..
    क्योंकि..
    शब्दों के भारी-भरकम
    जाल से निकलना आसान नहीं होता
    हर किसी के लिए...

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  11. bahut sunder rachna ....aur han ye shbdonke chand sikke nahi hai :)
    vakai sunder....

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  12. अमित जी नमस्कार बहुत सुन्दर शब्द बंध अनोखी शैली में उपजी ये रचना प्यारी लगी बधाई हो
    चुप सौदागर थे न इसीलिए हम भी देर से पहुंचे ..
    सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

    शायद,
    कुछ चुप सौदागर भी,
    होते हैं,
    मेरे जैसे,
    जो अपना मुड़ा तुड़ा,
    नोट और शब्द,
    (कोने में दबा )
    खर्च करते हैं,
    अंत में |

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  13. गुड है! पक्के कवि बनने की दिशा में अग्रसर है मामला!

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  14. आप की बहुत अच्छी प्रस्तुति. के लिए आपका बहुत बहुत आभार आपको ......... अनेकानेक शुभकामनायें.
    मेरे ब्लॉग पर आने एवं अपना बहुमूल्य कमेन्ट देने के लिए धन्यवाद , ऐसे ही आशीर्वाद देते रहें
    दिनेश पारीक
    http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
    http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/04/blog-post_26.html

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  15. आपने जीव व्यवहार से जो विषय को ढूंडा है और उसको अपनी कृति से व्यक्त किया है__सराहनीय है |

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  16. आजकल सिक्को की ही खनक चलती हैं -- नोट का अस्तित्व भले ही भारी हो पर आवाज कहाँ ?

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