रविवार, 10 अप्रैल 2016

" कैसा इत्तिफ़ाक़ है यह ........"


'पता है क्या हुआ , लगभग चीखते हुए अंदाज़ में मधूलिका बोली उधर से फोन पर ।' मुझे लगा फिर शायद उसने चाभी कार में ही लगी छोड़ दी और कार दरवाज़ा बंद करते ही लॉक हो गई होगी या फिर चिपका ली होगी च्युइंग गम अपने बालों में , बबल बनाया होगा उसने और फिर बबल फूट कर जा चिपका होगा उसकी माथे से नीचे लटकती लटों में ।  उसकी शैतानियां नादानियां थमती नहीं हैं कभी और ऐसा कुछ होने पर सबसे पहले मुझसे ही शेयर करती है ।

पूछा मैंने -'क्या हो गया , इतना परेशान क्यों ,सांस तो ले लो ,जो भी प्रॉब्लम है सॉल्व हो जाएगी ।' 'अरे  प्रॉब्लम नहीं , वो जो कल बताया था न आपको कि मेरी रिंग नहीं मिल रही पिछले पांच सालों से , वह मिल गई आज । किसी को भी यह बात नहीं बताई थी डर और घबराहट के कारण कि सब कहेंगे कितनी लापरवाह हूँ मैं । यह बात राघव को भी नहीं बताई कभी । राघव ने बड़े प्यार से यह रिंग मुझे शादी के बाद पहली बार मिलने पर दी थी मुझे । उसके चार पांच दिन बाद से ही यह खो गई थी । यह तो अच्छा हुआ कभी किसी ने घर में या राघव ने भी नहीं पूछा इस रिंग के बारे में । पर मन ही मन मैं बहुत परेशान थी और एक बोझ सा था मेरे ऊपर सच न बताने का । '

अभी बस ५ या ६ महीने पहले ही मेरी मुलाकात मधूलिका से एक दोस्त के यहाँ शादी के दौरान ही हुई और तबसे कुछ ज्यादा ही आपस में हमारी बातें होने लगीं । बातूनी मधुलिका बात बात में सब कह जाती है मुझसे ।

दरअसल अभी कल ही चीज़ों को सम्भाल कर रखने पर हो रही बहस के दौरान उसने बताया था -'उससे आज तक कुछ भी खोया नहीं है , सिवाय एक रिंग के ।' बताने के बाद अचानक चुप होते हुए फिर बोली वह कि यह बात तो मैंने आज तक राघव को भी नहीं बताई । अब इस बात को पांच साल हो गए हैं , रिंग तो अब मिलने वाली है नहीं और उसकी डिज़ाइन भी ठीक से याद नहीं कि चुपचाप दूसरी बनवा लें । बस आज पता नहीं क्यों आपको बता दिया । बार बार एक ही रट कि किसी और को यह बात नहीं पता , बस आप ही जान गए आज । '

मैंने कहा था -'अरे मिल जायेगी ,कहीं रखी होगी ,परेशान न हो, मिलेगी जरूर । मैंने तो ऐसे ही उसका मन हल्का करने को बोल दिया था । पर यह क्या , कल ही बात हुई और आज वह पांच सालों से खोई हुई रिंग अचानक से कपड़ों की अलमारी से कपडे निकालते समय मधूलिका के पांव के पास आ गिरी । जिसको ढूँढ़ने में उसने कितने दिन कितनी रातें घर का कोना कोना छान मारा था , वह अपने आप लुढ़क कर नीचे पाँव में आ गिरी थी ।

इसी बात से मधूलिका हैरान हो मुझे फोन कर रही थी और यह भी बार बार कह रही थी कि आपसे पहले ही शेयर किया होता तो पहले ही मिल गई होती । मजे की बात यह कि चूंकि इस रिंग के खोने का किसी को पता नहीं तो मिलने का भी क्या बताना ।

बस बार बार एक ही रट मधूलिका ने लगा रखी थी कि मैं कितना लकी हूँ उसके लिए । मैंने हँसते हुए कहा कि मुझे अपनी खोई हुई चीज़ों का लॉकर बना लो , इस पर वह बोली ,'सीक्रेट्स के लॉकर तो आप हो ही मेरे । '

पता नहीं यह इत्तिफाक है या और कुछ । 

गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

" एक रात पसरी हुई ........"

(१ )
नींद ,
मत आया करो ,
जब वो हों ख्यालों में,

सुला देना कभी ,
जब वो आना भूल जाएं ,
मुझे कभी न उठने के लिए ।

(२ )
रात ,
तुम गहराती जाओ ,
उजाला भर लिया है मैंने ,
एक जुगनू है मेरे पास ,
उनकी यादों का ।

(३ )
ख़्वाब ,
नहीं देखना अब तुम्हे ,
एक दिल ही काफी नहीं  ,
रोज़ टूटने के लिए ।

(४ )
तबस्सुम ,
मत शरीक हो ,
मेरी मायूसियों में,
मुकाम बदलने से ,
मायने बदल जाते हैं ।

"पहले रात रोज़ मुझे सुलाती थी अब वो खुद सो जाती है रोज़ मेरी गोद  में सिर रख कर । इसे निहारते निहारते कब सुबह हो जाती है पता ही नहीं चलता । यूं सोते हुए देखना रात को याद दिला जाता है तुम्हारी । फिर एक जुगनू और चमक उठता है सिरहाने मेरे । "

रविवार, 3 अप्रैल 2016

" मर के भी मुँह न तुझसे मोड़ना......... "


प्यार में जान देने की कहानियाँ बहुत हैं । फिल्में भी खूब बनी हैं । गाने तो न जाने कितने बजते रहते हैं दिन भर इन्ही भावनाओं को व्यक्त करते हुए । जब हम इन कहानियों , फिल्मों , गानों को इतना पसंद करते हैं तो वास्तव में ऐसा हो जाता है तब व्यर्थ का विलाप क्यों ।

अगर प्यार में जान देना इतना ही ख़राब / गलत है तो ऐसी फिल्मों , गानों को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए । जीवन अनमोल है ,व्यर्थ नहीं खोना चाहिए । परन्तु प्रायः जान देने वाले अपने प्रेमी या परिवार को दुःख पहुँचाने के उद्देश्य से अथवा ग्लानि के भाव से भरने के उद्देश्य से भी ऐसा कठोर कदम उठा लेते हैं ।

जान देने वाले ने किन परिस्थितियों में जान दी , कभी पता नहीं लग पाता । सच तो यह है कि वह परिस्थितियां ऐसी होती हैं कि जीवन दूभर कर देती हैं । वही परिवार , समाज जो आज मरने वाले पे विलाप / पाश्चाताप करता दिख रहा ,वही उसे जीते जी मरने से भी बदतर स्थितियां उत्पन्न कर देते हैं अपने संवादों से ।

ज्ञान देना बहुत सरल है कि मरने वाले को मरना नहीं चाहिए था , मुकाबला करना चाहिए था । अपनों से अपनी बात करना चाहिए था । सच तो यह है कि यह सब प्रयत्न करने के बाद ही आत्महत्या जैसी स्थिति की नौबत आती होगी  ।

मर के भी मुंह नहीं मोड़ेंगे , तुम्हारे प्यार में तुम्हारे बगैर जी न पाएंगे ,साथ जिए हैं साथ मरेंगे ,ऐसे संवाद जब तक कानों में पड़ते रहेंगे ,ऐसा होता रहेगा । जो घटनाएं किस्सों में अमर हैं उनके लिए नए पात्र भी ऐसे ही मिलेंगे न । जब तक ऐसी कहानियों को दृष्टांत किया जाता रहेगा , शिरीन फरहाद , सोनी माहिवाल , लैला मजनू जैसे यह चरित्र वास्तव में भी जीवित होते रहेंगे ।

घटना के बाद टिप्पणी करना अत्यन्त सरल है ।अपने आसपास समाज में झाँक कर देखिये , यह जुमला रोज़ खूब सुनने को मिलेगा कि मन करता है जान दे दें ऐसी जिंदगी से तो मौत बेहतर ।

शब्द ही प्यार दर्शाते हैं और शब्द ही ज़हर घोल देते हैं जीवन में । इतना सा समझ आ जाये तो प्यार क्या दुश्मनी में भी कोई जान न दे और न ले कभी ।

मरने वाला क्यों मरा  , किसके कारण जान दी उसने । जो जीवित है वह बखूबी जानता है परन्तु सत्य कभी उजागर नहीं होता और दोष मरने वाले पर ही मढ़ दिया जाता है कि वह स्थिति का सामना नहीं कर पाया या भावुक था या सबसे सरल बात होती है कि उसके अंदर ऐसी प्रवृति थी । दुःख होता है मरने के बाद भी मरने वाले की ही छीछालेदर होती है ।