बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

"सॉरी "..........!!


'सॉरी' शब्द केवल एक शब्द नहीं अपितु अपने में एक सम्पूर्ण कथन हैं । यह शब्द किस भाषा का है ,यह अब महत्वहीन है ,क्योंकि यह शब्द नहीं एक 'सन्देश' है ,एक 'भावना' है ,एक 'भंगिमा' है और कभी कभी सूखे 'आंसू' हैं ।

यूँ तो प्रायः जब कोई गलती अनजाने में हो जाती है तब स्वमेव मुंह से 'सॉरी' निकल जाता है । यह छोटी छोटी बातों पर होता है ,जैसे भीड़ में किसी को पाँव लग जाए ,या किसी को आपके सामान से असुविधा हो जाए ,या आपके किसी अनजाने कृत्य से असुविधा हो जाये तब अचानक मुंह से सॉरी निकल जाता है । यह स्थिति तब की है जब अनजान दो लोगों के बीच कोई असहज स्थिति उत्पन हुई हो | परन्तु जब दो परस्पर 'निकट' के बीच अचानक स्थिति असहज हो जाती है,चाहे वह किसी के कृत्य से हुई हो या संवाद से ,ऐसे में कोई अपनी गलती सहजता से मानने को तैयार नहीं होता । ऐसी स्थिति में यह एक छोटा सा शब्द न बोले जाने के कारण स्थिति बहुत खराब हो जाती है ।

कभी कभी 'सॉरी' बोलने में बहुत समय लग जाता है ,परन्तु जितनी शीघ्र इसे कह दिया जाये नुकसान उतना कम होता है । प्रायः लोग 'सॉरी' कहने में संकोच और लघुता अनुभव करते हैं जब कि 'सॉरी' कहने वाला ही सबसे श्रेष्ठ होता है ।

बिना गलती किये और किसी और की गलती स्पष्ट रूप से दिखने पर भी 'सॉरी' बोलने वाला महानतम होता है और ऐसा वह इसलिए करता है क्योंकि वह उस असहज स्थिति से तुरंत निकलना चाहता है और उस दूसरे व्यक्ति को इतना स्नेह करता है कि उसे भावनात्मक रूप से दुखी नहीं करना चाहता ।

अपनी गलती मान लेना या अपनी गलती न होते हुए भी 'सॉरी' कहना आसान तो नहीं परन्तु जो भी ऐसा कर लेता है वह एक साथ कई दिलों को दुखी होने से बचा लेता है ।

इस पर लोगों के तर्क मिलते हैं कि अपनी गलती न होने पर नहीं मानना चाहिए ,बिलकुल उचित बात है यह । परन्तु विवाद की स्थिति में किसी सम्बन्ध को खोने से अच्छा अपनी गलती न होते हुए भी सामने वाले को ही सही ठहरा देना चाहिए । समय के साथ सारी स्थिति स्पष्ट हो जाती है और निश्चित तौर पर जो व्यक्ति गलत है ,अपनी त्रुटि का एहसास कर ही लेगा ।

जिनका हम सम्मान करते हैं या जिनको हम स्नेह करते हैं उनसे कभी गलती हो भी जाए तो क्या फर्क पड़ता है ,वे मान लें तो मान लें अन्यथा विवाद की स्थिति होने से बेहतर है कि आप ही 'सॉरी' बोलकर स्थिति संभाल लें ।

ऐसा कर के देखें अच्छा लगता है । 'प्यार' में तो यह शब्द संजीवनी बूटी का काम करता है ।कभी कभी यह एक शब्द बोलने में उम्र गुजर जाती है ।  

शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

" लालटेन सी ज़िन्दगी ......"


जलाता हूँ रोज़ ,
थोड़ा थोड़ा खुद को ,
रोशनी तो होती है ,
पर इर्द गिर्द ,
जमा कालिख भी होती है ,

मन मैला होता है जब ,
मांजता हूँ पोंछता हूँ ,
धीरे से बुझी बाती को बढाता हूँ ,
फिर से जलाने के लिए ,

पहले रोशनी अधिक ,
और कालिख कम थी ,
अब कालिख के आगे ,
रोशनी नम है ,

अब बाती बुझने को है ,
एक दिन भभक कर ,
रोशनी जब होगी खूब ,
ज़िन्दगी फिर तुझे ,
कालिख के नाम कर दूंगा ।

गुरुवार, 10 अक्तूबर 2013

" चर्चा रोटी की ........"

                                                                                   ( यह रोटियाँ अर्चना चाव जी की हैं )

इधर कुछ दिनों पहले निवेदिता की तबियत ठीक न थी ,तब मैंने (केवल) एक दिन रोटी बनाने का सफल प्रयास किया । उसी दौरान ,लोई पर लगाए जाने वाले सूखे आटे को 'परेथन' क्यों कहते हैं , यह प्रश्न उत्पन्न हुआ । फेसबुक पर चर्चा के दौरान ज्ञात हुआ ,परेथन का सही शब्द 'परिस्तरण' हैं ।

बात आगे चल निकली ,अर्चना चाव जी ने रोटी को उचित तरीके से फुलाने के विषय में प्रश्न किया । बहुत सारे गणितीय उत्तर प्राप्त हुए ,पर कोई उत्तर उचित नहीं ठहराया गया । रोटी के आकार ,प्रकार ,गोलाई ,मोटाई के बारे में भी चर्चा हुई परन्तु कोई संतोषजनक निष्कर्ष न निकला ।

थोड़ा अनुसंधान फिर मैंने भी किया । रोटी का आकार आटे की लोई पर निर्भर करता है और लोई का आकार बनाने वाले की हथेली पर निर्भर करता है। लोई बस इतनी बड़ी हो कि हथेली के गड्ढे नुमा आकार में बैठ जाए । फिर उसे दोनों हथेलियों के बीच धीरे धीरे गोल गोल घुमाते हुए लोई को 'उड़नतश्तरी' के आकार का बना लें । अब उसके दोनों ओर सूखा आट़ा लगाए । चकले पर उस लोई को धर कर उँगलियों से हौले से दबाएँ । अब बारी आती है बेलन की , बेलन लंबा और पतला होना चाहिए । अगर बेलन की लम्बाई रोटी के व्यास से कम है तब रोटी बेलते समय कहीं मोटी और कहीं पतली हो जायेगी । चकला भी छोटा होने पर रोटी की शक्ल बिगाड़ सकता है । चकला इतना बड़ा हो कि रोटी बेल जाने के बाद भी उसकी परिधि के चारो ओर थोड़ी जगह छूटी हो । रोटी पर बहुत अधिक परेथन नहीं लगा होना चाहिए ,अन्यथा परेथन गर्म तवे के संपर्क में आते ही जल उठता है और रोटी पर काले काले दाग पड़ सकते हैं । तवे पर रोटी डालने के बाद उसे उलटते पलटते रहे ,जब चित्ती सी पड़ जाए तब उसे तवे से उतार कर गैस के बर्नर पर धीरे से सेंके । देखते ही देखते रोटी फूल कर कुप्पा हो जायेगी । जल्दी जल्दी 'दस्तपनाह' से उसे अलट पलट कर गुब्बारा ऐसा फुला लें और फिर उसे कैसेरौल में एल्युमीनियम फॉयल लगा कर रखते जाएँ । बन गई फूली फूली रोटी ।

इसमें कोई गणित ,कोई विज्ञान काम नहीं करता । बस बनाने वाले का मन होना चाहिए ,रोटियाँ बनाने का । अगर बनाने वाले ने रोटियाँ बनाते समय मुंह फुला लिया तब उस दशा में रोटियां नहीं फूलेंगी अर्थात या तो मुंह फूलेगा या रोटियाँ ।

गरीब आदमी चोकर या 'चूनी' की भी रोटी पाथ लेता है ।  महीन चाला हुआ आटा 'मैदा' कहा जाता है । चावल के आटे की रोटी 'खिरौरा' ,गेंहू की मीठी रोटी 'खबौनी' ,हाथ से पाथी रोटी 'हथपई',भौरी या उपलों की आग में पकाई रोटी 'लिट्टी','बाटी','भभरी' या 'मधुकरी' कही जाती है । घी या तेल में पकाई 'पूड़ी' ,'पूरी' ,'लचुई' या 'सोहारी' कहलाती है ।  ,बहुत मामूली घी में पकाई रोटी 'पराठा' ,'परोठा' या 'पल्टा' कहलाता है । दाल अगर अन्दर भर दी जाए तब उस को , 'दलही' या 'बेनिया' कहते हैं । पानी लगे हाथ से बिना परेथन या खुश्की के बनाई गई रोटी 'पनपथी' या 'चंदिया' कहलाती है । बेलकर तैयार की गई पतली रोटी 'फुलका' ,बिना बेले तैयार की गई पतली रोटी 'चपाती' कहलाती है । पकी रोटी को तोड़कर उसे घी में भून कर 'चूरमा' बनाते हैं ।

इस सब के अतिरिक्त मुझे तो एक समय की बासी रोटी को दूध में मसल कर खाने में बहुत आनंद और स्वाद मिलता है ।