"बस यूँ ही " .......अमित
"शब्द भीतर रहते हैं तो सालते रहते हैं, मुक्त होते हैं तो साहित्य बनते हैं"। मन की बाते लिखना पुराना स्वेटर उधेड़ना जैसा है,उधेड़ना तो अच्छा भी लगता है और आसान भी, पर उधेड़े हुए मन को दुबारा बुनना बहुत मुश्किल शायद...।
मंगलवार, 24 अक्तूबर 2023
मंगलवार, 4 जुलाई 2023
रविवार, 16 अप्रैल 2023
सामीप्य
"तुम्हारे पास आता हूँ तो साँसें भीग जाती हैं,
मुहब्बत इतनी मिलती है कि आँखें भीग जाती हैं,
तबस्सुम इत्र जैसा है हँसी बरसात जैसी है,
तुम जब भी बात करती हो तो बातें भीग जाती हैं"
शुक्रवार, 14 अप्रैल 2023
एक वो रात।
रातें रेशमी चादर सी होती हैं और तुम्हारी बातें सितारों सी ।
तुम बातें करती हो न तब मैं तुम्हारे लफ़्ज़ों को अपनी हथेलियों पर सहेजता रहता हूँ और तुम्हारे सो जाने के बाद एक एक कर उन लफ़्ज़ों को टांक देता हूँ , इस रेशमी चादर पे ।
फिर इन सितारों की झिलमिलाहट में बड़ी सुकून भरी नींद आ जाती है मुझे ।
बीती रात न बातें थीं न सितारे और न सुकून । उस रेशमी चादर का एक हिस्सा कोरा रह गया जो दिन के उजाले में एक अलिखित कहानी बयां कर रहा ।
रविवार, 11 दिसंबर 2022
जुगनू
तितली सी
लरजती वो
मछली सी
मचलती वो
ग़ज़ल सी
तबस्सुम थी
आंखे थी कश्ती वो
पलकें मस्तूल सी
आ बैठे वो पास जब
रोशनी हो जुगनू सी।
शनिवार, 10 दिसंबर 2022
आटा चक्की
सायकिल स्टैंड पर चढ़ा कर खड़ी करने के बाद उस पर 30 या 35 किलो का झोला गेंहू से भरा हुआ कैरियर पर रखकर एक हाथ से हैंडल और दूसरे हाथ से झोले को सहारा देते हुए आटा चक्की तक जाते थे।
चक्की पहुंच कर झोला तौलवाना होता था तराजू पर चढ़ा कर। चक्की वाला कभी तराजू दोनो पलड़ा खाली नही रखता था, तौल वाले कुछ बाट जरूर रखे होते थे। (यह कोई टोटका होता होगा दुकान में बढोत्तरी का।)
अब बाट वाला पलड़ा तो नीचे ही रहता था तो खाली पलड़े को पैर से दबा कर फिर उस पर अपना झोला रखकर तौलवाते थे फिर चक्की वाली कॉपी में लिखता था नाम और उसके आगे गेंहू का वजन।
पिसाई देने का दो रेट हुआ करता था ,जलन काटकर या बिना जलन काटे। जो आटा चक्की के दोनो पाट के बीच जल जाने से कम हो जाता था अगर उसकी भरपाई लेनी हो तो रेट ज्यादा था।
घर से हिदायत रहती थी कि अपना नम्बर किसी गेंहू के बाद ही लगाना ,और किसी अनाज के बाद नही, अन्यथा आटा खाने में खिसकेगा मतलब रोटी खाने में दांत से फिसल जाएगी और कुछ किच किच टाइप आवाज़ आती थी खाने में।
इस बीच वहां बैठ कर चक्की कैसे चलती है, एक मोटर से तमाम उपकरण गोल घूमते हुए शैफ्ट से पट्टे के माध्यम से चलते थे , कौतूहल वश देखते रहते थे।
चलती मोटर पर पट्टा चढ़ाना भी बड़ा जोखिम वाला होता था जिसे चक्की वाला बखूबी करता था।
कभी कभी बिजली ज्यादा देर न आये तो चक्की वाला बिजली वालों को खूब गन्दी गाली भी बकता था, हम भी उसकी गाली में सुकून महसूस करते थे क्योंकि समय हमारा भी खराब होता था। (तब क्या पता था कि हमे भविष्य में नौकरी भी यहीं मिलेगी।)
आटा पिसने के बाद फिर चक्की वाला ही झोला उठा कर हमारी साईकल पर लाद देता था और हम एक हाथ से झोला को सहारे देते वापस आ जाते थे। कभी कभी जब झोला बड़ा वाला हो तो साईकल की कैंची में रखकर ले जाते थे पिसवाने।
यह काम कक्षा 6 से लेकर कक्षा12 तक किया होगा जहां तक याद पड़ रहा है।
चक्की स्टार्ट होने की आवाज और उसके बाद की खटर पटर बड़ी अच्छी लगती थी।
मंगलवार, 15 नवंबर 2022
लाल फ्रॉक वाली लड़की
गुझिया जैसी आंखें
मिश्री जैसी बातें
रेशम से बाल
नपी तुली चाल
आत्म विश्वास की निगाहें
गुज़रें तो महक जाए राहें
न मुस्कुराएं तो खूबसूरत
मुस्कुरा दें तो बला की खूबसूरत
दिल तो किया
लिख दें ये इबारत
हाँ तुम इत्र हो इत्र हो
बस इत्र ही हो।