रविवार, 16 अप्रैल 2023

सामीप्य

 "तुम्हारे पास आता हूँ तो साँसें भीग जाती हैं,

मुहब्बत इतनी मिलती है कि आँखें भीग जाती हैं,

तबस्सुम इत्र जैसा है हँसी बरसात जैसी है,

तुम जब भी बात करती हो तो बातें भीग जाती हैं"

शुक्रवार, 14 अप्रैल 2023

एक वो रात।

 रातें रेशमी चादर सी होती हैं और तुम्हारी बातें सितारों सी । 

तुम बातें करती हो न तब मैं तुम्हारे लफ़्ज़ों को अपनी हथेलियों पर सहेजता रहता हूँ और तुम्हारे सो जाने के बाद एक एक कर उन लफ़्ज़ों को टांक देता हूँ , इस रेशमी चादर पे । 

फिर इन सितारों की झिलमिलाहट में बड़ी सुकून भरी नींद आ जाती है मुझे । 

बीती रात न बातें थीं न सितारे और न सुकून । उस रेशमी चादर का एक हिस्सा कोरा रह गया जो दिन के उजाले में एक अलिखित कहानी बयां कर रहा ।

रविवार, 11 दिसंबर 2022

जुगनू


तितली सी

लरजती वो

मछली सी

मचलती वो

ग़ज़ल सी

तबस्सुम थी

आंखे थी कश्ती वो

पलकें मस्तूल सी

आ बैठे वो पास जब

रोशनी हो जुगनू सी।

शनिवार, 10 दिसंबर 2022

आटा चक्की


सायकिल स्टैंड पर चढ़ा कर खड़ी करने के बाद उस पर 30 या 35 किलो का झोला गेंहू से भरा हुआ  कैरियर पर रखकर एक हाथ से हैंडल और दूसरे हाथ से झोले को सहारा देते हुए आटा चक्की तक जाते थे।

चक्की पहुंच कर झोला तौलवाना होता था तराजू पर चढ़ा कर। चक्की वाला कभी तराजू दोनो पलड़ा खाली नही रखता था, तौल वाले कुछ बाट जरूर रखे होते थे। (यह कोई टोटका होता होगा दुकान में बढोत्तरी का।)

अब बाट वाला पलड़ा तो नीचे ही रहता था तो खाली पलड़े को पैर से दबा कर फिर उस पर अपना झोला रखकर तौलवाते थे फिर चक्की वाली कॉपी में लिखता था नाम और उसके आगे गेंहू का वजन।

पिसाई देने का दो रेट हुआ करता था ,जलन काटकर या बिना जलन काटे। जो आटा चक्की के दोनो पाट के बीच जल जाने से कम हो जाता था अगर उसकी भरपाई लेनी हो तो रेट ज्यादा था।

घर से हिदायत रहती थी कि अपना नम्बर किसी गेंहू के बाद ही लगाना ,और किसी अनाज के बाद नही, अन्यथा आटा खाने में खिसकेगा मतलब रोटी खाने में दांत से फिसल जाएगी और कुछ किच किच टाइप आवाज़ आती थी खाने में।

इस बीच वहां बैठ कर चक्की कैसे चलती है, एक मोटर से तमाम उपकरण गोल घूमते हुए शैफ्ट से पट्टे के माध्यम से चलते थे , कौतूहल वश देखते रहते थे। 

चलती मोटर पर पट्टा चढ़ाना भी बड़ा जोखिम वाला होता था जिसे चक्की वाला बखूबी करता था।

कभी कभी बिजली ज्यादा देर न आये तो चक्की वाला बिजली वालों को खूब गन्दी गाली भी बकता था, हम भी उसकी गाली में सुकून महसूस करते थे क्योंकि समय हमारा भी खराब होता था। (तब क्या पता था कि हमे भविष्य में नौकरी भी यहीं मिलेगी।)

आटा पिसने के बाद फिर चक्की वाला ही झोला उठा कर हमारी साईकल पर लाद देता था और हम एक हाथ से झोला को सहारे देते वापस आ जाते थे। कभी कभी जब झोला बड़ा वाला हो तो साईकल की कैंची में रखकर ले जाते थे पिसवाने।

यह काम कक्षा 6 से लेकर कक्षा12 तक किया होगा जहां तक याद पड़ रहा है। 

चक्की स्टार्ट होने की आवाज और उसके बाद की खटर पटर बड़ी अच्छी लगती थी।

मंगलवार, 15 नवंबर 2022

लाल फ्रॉक वाली लड़की

गुझिया जैसी आंखें

मिश्री जैसी बातें

रेशम से बाल

नपी तुली चाल


आत्म विश्वास की निगाहें

गुज़रें तो महक जाए राहें

न मुस्कुराएं तो खूबसूरत

मुस्कुरा दें तो बला की खूबसूरत


दिल तो किया 

लिख दें ये इबारत

हाँ तुम इत्र हो इत्र हो

बस इत्र ही हो।

रविवार, 2 अक्तूबर 2022

लॉकर

 रेहाना ,जो अभी छठी क्लास में है,  अगले दिन के स्कूल के लिए अपना बैग लगाते हुए आस्मा से बोली, "मम्मी आज मैं स्विमिंग के लिए नही जाऊंगी।"

"क्यों क्या हुआ",आस्मा ने चौंकते हुए पूछा। "मम्मी, रेयान जो मेरा लॉकर पार्टनर है , वो लॉकर अच्छे से नही रखता, सारा सामान मुझे ठीक कर रखना होता। खुद कुछ करता भी नही और मुझ पर हुकुम चलाता है। मुझे नही अच्छा लगता, कल मेरा हेयर बैंड भी गुम हो गया था, फिर निकला उसके कॉस्ट्यूम से ही।"

"परेशान नही हो ,आज मैं शाम को चलती हूँ और क्लब के  मैनेजर से बात करूंगी कि तुम्हारा लॉकर पार्टनर बदल जाये," आस्मा ड्रेसिंग टेबल के सामने शीशे में पीछे खड़ी रेहाना को देखते हुए बोली।

उसी दिन शाम को क्लब में जब आस्मा पहुंची तो मैनेजर के रूम में रिवॉल्विंग चेयर पर एक सोलह सत्रह वर्ष का लड़का , जिसकी अभी मूंछे भी नही आई थी ,बैठा हुआ था और कुर्सी बाएं दाएं गोल गोल घुमाते हुए मोबाइल पर गेम खेल रहा था।

"मैनेजर कहाँ है, मुझे उनसे बात करना है", पूछा आस्मा ने। "आज मैनेजर नही आएंगे इसीलिए मैं यहां आ गया हूँ, विवान नाम है मेरा", उस नवयुक ने बताया।

"तुम मैनेजर के बेटे हो , पूछा आस्मा ने।" " नही , मैं यहां के ओनर का बेटा हूँ, वो यहां नही आते कभी ,पर आज उन्हें अभी आना है यहां।" "आप मुझे बताइए क्या बात है।"

 "मेरी बेटी रेहाना का लॉकर रेयान की जगह किसी और बच्चे के साथ कर सकते हैं आप,मैं आस्मा हूँ ,रेहाना की मम्मी, रेहाना आपके क्लब में शाम को रोज़ स्विमिंग के लिए आती है।" "आपने बच्चों को बैग रखने के लिए दो दो बच्चों को एक साथ लॉकर अलॉट कर रखा है शेयरिंग के लिए।" बताया आस्मा ने।

"हां तो क्या प्रॉब्लम है आपकी", पूछा विवान ने। "हमारे यहां बच्चों को अल्फाबेटिकली चूज कर दो बच्चों को एक साथ क्लब कर एक लॉकर अलॉट कर देते हैं। आपकी बेटी रेहाना को रेयान के साथ कर दिया गया है", बताया विवान ने।

"नही प्रॉब्लम कोई नही ,बस आप उसे किसी और बच्चे के साथ क्लब कर दीजिए।"

"आखिर हुआ क्या", फिर जोर देकर विवान ने पूछा।

"अरे रेयान अच्छे से अपना सामान नही रखता और रेहाना को परेशान करता कि तुम ही मेरा बैग भी अच्छे से संभालो। रेहाना शांत सी है ,कुछ बोलती नही और अपने साथ उसका भी सारा काम करती",बताया आस्मा ने। कल रेहाना का हेयर बैंड भी चला गया था रेयान के बैग में।

विवान कुछ समझा रहा था अपनी कच्ची उम्र की समझ से आस्मा को ,तभी उसके पापा आकाश वहां आ गए।

औसत कद , छरहरा व्यक्तित्व ,सांवला रंग ,तीखे नयन नक्श, सीना तना हुआ परन्तु सौम्यता के साथ भारी आवाज़ में पूछा उन्होंने, क्या परेशानी है मैडम को।

आस्मा ने सिर ऊपर उठाकर देखा तो पल भर को जड़वत हो गई, पहचाने की झूठी कोशिश करने लगी ,जबकि पहचान तो आवाज़ से ही चुकी थी। 

आकाश भी एक पल को ठिठका, फिर अचानक बोला, "आस्मा तुम यहाँ कैसे"। भावभंगिमा ऐसी थी कि अगर विवान वहां नही होता तो शायद आकाश ने आस्मा को गले लगा लिया होता। आकाश के मन मे कॉलेज के दिनों की आस्मा की खुले बालों में हेयर बैंड लगाए तस्वीर उभर आई थी।

आस्मा भी धीरे से कुर्सी खींच कर बैठ गई और एकदम से आंखे मूंद ली। मुंदी आंखों से बीस साल पहले का मंजर सामने दिखने लगा था। बीएससी का केमिस्ट्री प्रैक्टिकल का पहला दिन था। एम पी गुप्ता प्रोफेसर थे। सभी बच्चों को लैब असिस्टेंट द्वारा एपरेटस बांटे जा रहे थे। पिपेट और ब्यूरेट रखने के लिए लॉकर दो दो को एक साथ दिए जा रहे थे। एक ताले की दो चाभियाँ थी , एक एक चाभी दोनो को रखनी थी।

पूरे बीएससी की क्लास में आस्मा अकेली लड़की थी। अल्फाबेटिकली उसे आकाश के साथ लॉकर जॉइंटली अलॉट कर दिया गया था।

आस्मा बहुत खूबसूरत थी ,पूरी यूनिवर्सिटी में उसकी बातें होती थी । लोग उसका सामीप्य पाने का बहाना ढूंढते रहते थे। आकाश एक मेधावी और टॉपर छात्र था। उसे आस्मा के कारण थोड़ी उलझन होती थी क्योंकि आस्मा अक्सर लॉकर की चाभी भूल जाती थी और टाइट्रेशन भी कभी समय पर पूरा नही कर पाती थी।

जहां सारे लड़के उसकी मदद को हमेशा तैयार रहते थे वहीं आस्मा बस आकाश से ही सीखना समझना चाहती थी। लेकिन आकाश आस्मा की लापरवाही से तंग आ चुका था। समान ठीक से न रखने के कारण  कांच के बीकर , टेस्ट ट्यूब अक्सर उससे टूटते रहते थे , अक्सर प्रोफेसर से कहता ,"सर मेरा लॉकर पार्टनर बदल दीजिये" ,पर प्रोफेसर गुप्ता हंस कर टाल देते थे। यह बात भी सच थी कि आकाश मन ही मन उसे चाहने भी लगा था मगर पढ़ाई के आगे प्यार मोहब्बत की बात सोचना भी उसके लिए पाप था।

कितनी बार लॉकर से सामान निकालते समय दोनो के सिर आपस मे टकरा जाते थे, आकाश सॉरी बोलता था मगर आस्मा तो जैसे उसे छूने के बहाने ढूँढती थी ,अच्छा तो आकाश को भी लगता था।

बीएससी के पहले साल में ही आकाश का चयन इंजीनियरिंग कॉलेज, इलाहाबाद में हो गया। फिर कभी आस्मा से मुलाकात या कोई सम्पर्क नही हुआ।

आज अचानक वही पुरानी स्थिति ,जॉइंट लॉकर की समस्या और वो दोनो एक दूसरे के आमने सामने ,ऐसा लग रहा था जैसे कोई इबारत हूबहू दोहराई जा रही हो। 

बाद में पता चला रेयान आकाश का ही दूसरा बेटा है। 

"तुम इंजीनियर बनते बनते क्लब के मालिक कैसे बन गए", छेड़ा आस्मा ने। "वो फादर इनला का रियल स्टेट का बिजनेस था न , उसी को संभालने के चक्कर मे टाटा मोटर्स का जॉब बस दो साल के बाद ही छोड़ना पड़ा और यह सब जिम्मेदारी आ गई,तुम बताओ , हबी क्या करते तुम्हारे।"

"दिल के डॉक्टर है, हार्ट स्पेशलिस्ट", मुस्कुराते हुए बताया,आस्मा ने।

बड़ी देर तक दोनो हंसते मुस्कुराते रहे ,पर यह भी सच था कि दोनो की आंखों के कोर भी भीगे हुए थे।

लॉकर का झगड़ा प्यार बनने से पहले ही अधूरा जो रह गया था। आकाश की मुट्ठी कसी यूँ बंधी थी जैसे उसने पकड़ रखा हो हेयर बैंड ,आस्मा का।