शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

" ब्लॉग पर पोस्ट पब्लिश करने का मुहूर्त ........."


ब्लॉग-पोस्ट लिखने के बाद उसे पब्लिश करना एक बहुत ही साधारण और सहज सी बात है | परन्तु मैंने पोस्ट पब्लिश करने के समय को ध्यान में रख कर जब उनका विश्लेषण किया तब कुछ बहुत ही चौंकाने वाले और मजेदार तथ्य संज्ञान में आये | संकलित निष्कर्ष कुछ यूँ हैं :

१. जो पोस्ट ब्रह्म मुहूर्त अर्थात सवेरे ४ से ७ बजे के बीच पब्लिश की गईं वे सबसे अधिक पढ़ीं गई |
२.सवेरे ९ से १० बजे के बीच पब्लिश की गई पोस्ट शुरुआत में पाठक नहीं बटोर पाई |
३.सायं काल ६ से ८ बजे के मध्य पब्लिश की गई पोस्ट सबसे कम पढ़ी गईं |
४.रात्रि ९ से ११ बजे के मध्य पब्लिश की गई पोस्ट पढ़ी अधिक गईं एवं टिप्पणी भी सर्वाधिक प्राप्त हुईं |
५.पोस्ट पब्लिश कभी भी करें ,परन्तु फेसबुक पर माहौल जुटने के बाद ही उसे शेयर करें |
 
पोस्ट कब पब्लिश की जाय ,यह इस पर भी निर्भर करता है कि पोस्ट का विषय क्या है | 

१.ज्ञान ,ध्यान ,शिक्षा ,संस्कार की बाते हैं ,तब उन्हें सवेरे सवेरे पब्लिश करें | 
२.देश ,समाज के बारे में चिंतन है तब सवेरे ९ से ११ बजे तक का समय उपयुक्त है | 
३.इश्क ,मोहब्बत , रोमांस की बात है और कविता पब्लिश करनी है तब रात १० बजे के बाद सबसे उपयुक्त समय हैं | 
४.लेख अगर आपसी संबंधों और विवादों को ले कर है तब उसे रात में कभी भी पब्लिश न करें | लोग पढेंगे कम , टिप्पणी अधिक चिपकायेंगे |
५.विषय वस्तु अगर स्त्री है तब सायं काल का समय सर्वोत्तम है |
६.हास्य व्यंग है ,तब कभी भी पब्लिश कर सकते हैं |
७.तमाम ब्लॉग एग्रेगेटर अपने शीर्षक के अधीन आपकी पोस्ट को छापते हैं | सबका समय अलग अलग है | 'ब्लॉग बुलेटिन' रात में निकलता है | अतः अगर आपने शाम को पब्लिश किया है तब वह वहां अवश्य मिलेगा | 
८.कुछ लोग तो सिंडिकेट बना कर आपस में एक दूसरे को छापते रहते हैं |

" सभी ब्लॉगर १२ राशियों में बंटे  हैं । २४ घंटों में से प्रत्येक राशि के ब्लॉगर के लिए २ घंटे आबंटित हुए । मध्य रात्रि  से प्रारम्भ करते हुए ,मेष राशि से दो दो घंटे जोड़ते हुए अपनी अपनी राशि के अनुसार ब्लॉगर को अपनी पोस्ट पब्लिश करने की सलाह दी जाती है । परिणाम अच्छे प्राप्त होंगें ।"

उपरोक्त सारे तथ्य अनेक ब्लॉग पोस्टों पर किये गए सर्वे पर आधारित हैं | इसका मकसद किसी व्यक्ति / लेखक / कवि / ब्लॉगर की भावना को ठेस पहुंचाना बिलकुल नहीं है | किसी व्यक्ति का उपरोक्त निष्कर्ष से सहमत / असहमत होना उसका व्यक्तिगत विचार है | 

गुरुवार, 22 नवंबर 2012

" कुछ यूँ हैं वो ....."


एक चिराग रौशन ,
करते जैसे कई चिराग ,
खिलखिलाहट भी ,
उनकी यूँ ही कुछ ,
खिला सी देती है ,
तबस्सुम सारे लबों पे ।

मीठी आवाज़ ,
पाक सी उनकी ,
जैसे हो अजान की  ,
इल्म सा कराती ,
वक्त इबादत का |

निगाहें  उनकी ,
तिलिस्म हो जैसे ,
देखती हैं कुछ यूँ ,
कह रही हों  ,
जैसे कोई ग़ज़ल |

खूब सूरत दे खुदा ,
पर इतनी भी न दे ,
कि देखे वे आइना ,
जी भर के ,
और जी न भर पाएँ  |

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

" के.वाई.सी. ......."


आजकल एक फैशन आम हो चला है ," के.वाई.सी. " का ,अर्थात 'know your customer' | कभी बैंक से नोटिस  आती है और कभी गैस कंपनी से कि ,कृपया अपना के.वाई.सी. करा लें नहीं तो आपकी सेवायें बंद कर दी जायंगी | दसियों साल से अधिक से बैंक में , गैस कंपनी में निरंतरता बनी हुई है फिर भी अपनी शिनाख्त वहां कराना आवश्यक माना जा रहा है | मेरे पास अपनी पहचान के लिए वोटर आई.डी. कार्ड , पैन कार्ड , ड्राइविंग लाइसेंस , पासपोर्ट , आधार कार्ड , विभागीय आई.डी. कार्ड , राशन कार्ड ( अब निष्प्रयोज्य ) सभी कुछ है | पर शायद बैंक या गैस कंपनी को लगता होगा ,बहुत दिन हो गए चलो इनका मिजाज़ /शक्ल देख लें ,हमारे लायक बचे भी हैं कि नहीं यह अब | 

पर चूँकि यह वैधानिक रूप से आवश्यक कर दिया गया है ,अतः मैंने सशरीर सभी जगह जा कर अपना के.वाई.सी. करा लिया | परन्तु इस प्रक्रिया के दौरान मुझे एक बात यह सोचने को मजबूर होना पड़ा कि मूलतः के.वाई.सी. का उद्देश्य बहुत पुराने हो चुके संबंधों को नवीनीकृत करना है और बेहतर सम्बन्ध बनाने की दिशा में एक सार्थक पहल है , इसका प्रयोग तो मानवीय संबंधों में भी किया जाना चाहिए | 

बचपन से लेकर अब तक हम लोग न जाने कितने लोगों के संपर्क में आते हैं और अक्सर कुछ ख़ास लम्हों और घटनाओं को याद करते रहते हैं | बहुत से रिश्ते और रिश्तेदार ऐसे भी हैं जिनसे मिले मुद्दत हो गई | उनको देखने और स्वयं को उन्हें दिखाने का मन होता है | अगर इसे कुछ यूं कहे कि संबंधों में भी 'के.वाई.सी.' कराने की आवश्यकता होती है तब अतिश्योक्ति न होगी | लगता है वर्ष में कम से कम एक बार १०/१५ दिनों का अवकाश लेकर पुराने लोगों से मिल कर 'के.वाई.सी.' अवश्य करा लेना चाहिए | निश्चित ही उसका आनंद कुछ और होगा |

इश्क ,मोहब्बत में तो 'के.वाई.सी.' बहुत जल्दी जल्दी कराते रहना चाहिए नहीं तो कनेक्शन कब कट जाये, वह भी बिना पूर्व सूचना के ,पता नहीं चलेगा | दाम्पत्य जीवन में भी करवा चौथ , कजरी तीज सरीखे व्रत/त्यौहार 'के.वाई.सी.' कराने की ही तर्ज पर प्रोग्राम किये गए हैं | बच्चों के जन्म दिन मनाने की परम्परा भी मूलतः बच्चों की 'के.वाई.सी.' कराने सामान ही होती है | आने वाले लोगों और उनसे मिली गिफ्ट से वह भी अपना 'के.वाई.सी.' पूर्ण समझ लेते है | 

कभी कभी आईने में स्वयं को देखता हूँ तो स्वयं को ही अजनबी सा पाता हूँ | बचपन में कितनी सादगी ,कितनी शुचिता और सबके प्रति सम्मान और स्नेह था और अब बस "निजता" के सिवाय कुछ नहीं | इतना परिवर्तन कैसे हो जाता है खुद में ही | शायद अगर स्वयं से ही स्वयं का 'के.वाई.सी.' कराता रहता तब इतना परिवर्तन न होने पाता |

ईश्वर से भी कभी कभी समय निकाल कर पूजा / प्रार्थना के द्वारा 'के.वाई.सी.' कराते रहना चाहिए जिससे उनके पास हमारा पूर्ण सही विवरण उपलब्ध रहे और हमारे विषय में जानकारी के आभाव में असमय हमारा कोई नुकसान या हानि न हो जाए |

                 बस मानवीय संबंधों में प्रयुक्त के.वाई.सी. का अर्थ "know your character" होना चाहिए ।

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

" फैक्स टोन..........."


आज ऑफिस में एक अत्यंत महत्वपूर्ण पत्र ,तत्काल मुख्यालय भेजना था | मेरा अधीनस्थ बार बार उसे फैक्स करने के लिए मुख्यालय फोन कर फैक्स टोन मांग रहा था | शायद ऑटो - फैक्स मशीन खराब थी | काफी मशक्कत के बाद टोन मिलने के बाद वह महत्वपूर्ण पत्र फैक्स द्वारा प्रेषित किया जा सका | बिना फैक्स टोन के फैक्स किया जाना संभव नहीं होता |

इश्क , मोहब्बत में भी ऐसे ही होता है | किसी को कितना भी चाहते रहो , टकटकी लगाए देखते रहो ,उन्हें यूं ही गुगुनाते रहो परन्तु जब तक उधर से फैक्स टोन न आ जाए , कुछ भी होने वाला नहीं है |( वो चाहे आपकी पत्नी ही क्यों न हो , उस पर भी समानता से लागू ) | इश्क मोहब्बत में असफल होने वालों का मुख्य कारण यही पाया गया है कि अधीरता में वह बिना फैक्स टोन मिले फैक्स कर डालते हैं और अंजाम "मजमून जाया हो जाता है  " |

ऐसे मामलों में फैक्स टोन निम्नवत  प्रकार से प्राप्त हो सकती हैं :

१.निगाहों से ही |
२.पलकों के झपकने से |
३.एक मीठी मुस्कान से |
४.लबों की जुम्बिश से |
५.बालों के छल्ले घुमाती उँगलियों से |
६.दांतों तले दबे पल्लू के कोने से |
७.मिटटी कुरेदते पांवों से |
८.एक लम्बी जम्हाई से |
९.एक लम्बी अंगडाई से |
१०.तेज़ चल उठी साँसों से |

यह बात दीगर है कि फैक्स टोन मिलने में अक्सर समय बहुत जाया हो जाता है | पर टोन मिल जाती है तब क्या इबारत और क्या हर्फ़ सब हू-ब हू उसके दिल पर चस्पा हो उठते हैं ,जिसे आप दिलो-जान से चाहते हैं और बगैर फैक्स टोन मिले  सब बेकार |

                "बिना फैक्स टोन मिले फैक्स नहीं करना चाहिए, मजमून चाहे कागज़ पे हो ,चाहे दिल पे |"