बुधवार, 6 अप्रैल 2011

"वर्ल्ड कप" बनाम "पूनम पांडे"

                सहसा एक विचार यह कौंध रहा है कि, वर्ल्ड कप में मिली जीत के पीछे कहीं पूनम पाण्डेय का टोटका तो नहीं काम कर गया | सदियों से हमारे देश की यह परंपरा कहे, या चलन कहे कि, जब बरसात के मौसम में बारिश नहीं होती और लगभग सूखे के आसार होते हैं तब स्त्रियाँ गावं में निर्वस्त्र  हो कर खेत में हल चलाती हैं |उसके पीछे तर्क यह है कि उससे लज्जित हो , इंद्र भगवान बारिश कर देते हैं | पुरानी कहानियों में इसका भरपूर उल्लेख मिलता है और अभी भी गाहे बगाहे समाचार पत्रों में ऐसी खबर पढने को मिल जाती है |
                 हमारे यहाँ मन्नत मांगने का प्रचलन बहुत है, कुछ लोग इसे मानता मानना भी कहते हैं , जैसे कि धोनी ने मानता मानी थी जीतने पर वह अपने केश कटवा देगा | ज्यादातर लोग मानता में अपनी प्रिय वस्तु या प्रिय शौक त्याग करने की मानता मानते हैं | चाहे बच्चों की सफलता हो या कोई मुकाम हासिल करना हो, इस सब के लिए हर कोई कुछ  भी करने को तैयार रहता है | यह शायद पूनम पाण्डेय का एक टोटका भर ही था जो शायद काम भी कर गया | 
                  किसी के कुछ कह देने भर का शाब्दिक अर्थ ही केवल नहीं लगा लेना चाहिए | क्रिकेट के मैदान पर खिलाड़ी जो भाव भंगिमा दिखाते हैं ,लगता है जैसे सामने वाले से युद्ध कर लेंगे  , पर वास्तव में ऐसा उनका उद्देश्य नहीं होता | गाली गलौज करने में अगर आप गालियों के शाब्दिक अर्थ पर विचार करें तो उनका कोई महत्त्व नहीं होता ,उद्देश्य केवल रोष या क्रोध व्यक्त करना होता है  | अर्थात किसी के कुछ कह देने के पीछे उसकी भावना ज्यादा महत्त्व रखती है | उस भावना का सम्मान होना चाहिए | 
                   अगर पूनम पाण्डेय का कथन किसी प्रकार से हमारे संस्कारों के विरुद्ध है, तब यह मंथन किया जाना चाहिए कि ऐसी स्थिति उत्पन्न क्यों हुई | वह एक मॉडल है जो कैलेंडर पर भिन्न भिन्न मुद्राओं में तस्वीरें  खिचवाती है और हम ही लोग उसे बड़े चाव से अपने अपने ड्राइंग रूम में सजाते है | आप क्या सोचते है ,जब वह ऐसी मुद्राओं में तस्वीरें खिचवाती होगी तब उसकी कितनी अस्मिता बच पाती होगी | शायद यह सब करते करते उसके पास अब बचाने छुपाने को कुछ बचा नहीं होगा, तभी उसने ऐसा बयान दिया | कहीं ना कहीं हम सब भी इस व्यवस्था के लिए जिम्मेदार हैं |
                    प्रत्येक बुराई की पराकाष्ठा से पहले प्रारम्भ में ही उसके निदान की  बात होनी चाहिए | पूनम पाण्डेय की ऐसी मानसिकता किन परिस्थितियों में बनी होगी, इस पर विचार होना चाहिए | भर्त्सना करना तो सदैव आसान रहा है पर पुनरावृत्ति रोकना सदैव मुश्किल |

11 टिप्‍पणियां:

  1. इस पर बात कर कर के इसे पर्वत का आकार दे दिया है हमने।

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  2. अच्छा आलेख.
    सोचने पर मजबूर कर रहा है.

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  3. आपने हँसी उड़ाने के बजाय इतना विचार किया -बहुत अच्छा लगा .जिस रंगीन चश्मे से यह सब देखा जाता है वह अंतर्निहित सहज कामना को कैसे जानेगा ! कोई स्त्री-पात्र सामने हो तो मनोरंजन करने में लोगों का जाता है?

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  4. आपने पूनम की बात को सार्थक तरीके से सोचने का जो आह्वान किया है सच में वह सोचने पर मजबूर करता है ...आपका आभार

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  5. अपनी अस्मिता ही जो खो चुका हो वो क्या टोटका कर पायेगा |वो तो एक पुब्लिसिटी स्टंट ही था जिसमे वो काफी हद तक कामयाब रहीं हैं |खेल हम खिलाड़ियों की प्रतिभा की वजह से जीते हैं -
    किसी टोटके की वजह से नहीं ....

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  6. यह सब तो ठीक है पर कोई ये तो बताये की पूनम पाण्डेय अपना वादा पूरा कब करेगी ?

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  7. सराहनीय,हम सब को सोचना चाहिए इस बारे में ..............

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