राह हो, न हो,
रहगुजर हो, न हो,
साथ हो, न हो ,
साथी हो, न हो ,
साया हो , न हो,
रौशनी हो, न हो,
सितारे हो ,न हो,
पंछी बोले , न बोले ,
नदी थमे या रुके पवन,
पौ फटे , न फटे,
पग उठ जाते हैं अब ,
चल पड़ने को रोज़,
तलाशने एक ,
पगडण्डी नई,
.
.
.
"उम्र की तमाम पतली पतली पगडंडियाँ आपस में मिलने को बेताब हैं और मन है कि तलाशता कोई एक पगडण्डी नई |"
बहुत खूबसूरत
जवाब देंहटाएंबावरा है मन....................
जवाब देंहटाएंथामे नहीं थमता.................
आभावों में भाव खो न जायें..बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ..
जवाब देंहटाएंbahut sindar ...pankh si halki rachnaa
जवाब देंहटाएं:)..क्या बात है ..बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंबढ़ते हैं कदम
जवाब देंहटाएंचलती है जिंदगी
तलाश लेती है
पगडण्डी नई...
बहुत सुन्दर रचना
bhut hi khubsurat....
जवाब देंहटाएंसुंदर ....उर्जा देती पंक्तियाँ ...
हटाएंशुभकामनायें
बहुत खूब अमित भाई !
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - सब खबरों के बीच एक खुशखबरी – ब्लॉग बुलेटिन
क्या बात है। एकदम कोलम्बस बन गये। :)
जवाब देंहटाएंsundar bhaav
जवाब देंहटाएंkhubsurat pagdandi... :)
जवाब देंहटाएंis blog ko follow karne ke liye kya karun...
जवाब देंहटाएंअज्ञात की पुकार ही नई पगडण्डी पर लिए चलता है...
जवाब देंहटाएं“मन रे....”
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना....
सादर
बहुत ही बेहतरीन रचना....
जवाब देंहटाएंसच हैं ...ये जिंदगी ऐसी ही पगडंडी पर ही चलती हैं
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत एहसास बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकुछ हो न हो हमें चलते ही जाना है । सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंये तालाश हमेशा जारी रहनी चाहिए..
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना !!