वादा था न,
लिखने का कुछ,
तो कुछ यूँ समझ लो,
तुम्हारी आवाज़ की कशिश ,
और तिरछी मुस्कान की नफासत ,
में कैद हो गया हूँ ,
तुम पलकें झुकाती रहीं,
उठाती रहीं ,
मुस्कुराती रहीं ,
और मै बेबस,
डूबता गया
तिलस्म में ,
हुस्न के,
तुम्हारे |
"तुम तो मेरे दिल का 'सिम' चुरा कर 'रन' कर गई ।"
sunder simran ....bahut sunder rachna ...
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
अब डुअल सिम वाला सेट लीजियेगा.....
जवाब देंहटाएंas back up plan....
:-)
बहुत सुंदर रचना....
सादर.
डुअल सिम ...
हटाएंकौन जीने देगा यहाँ :)
अनु जी, मशवरा नेक है |
हटाएंहा हा हा, बिना सिम के अब रण कैसे जीतें..
जवाब देंहटाएं:-) muskurahat lautaati rachnaa
जवाब देंहटाएं:):) ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना....:-)
जवाब देंहटाएंक्या कहने, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएं"तुम तो मेरे दिल का 'सिम' चुरा कर 'रन' कर गई ।"
जवाब देंहटाएंसिम बिना तो बस सिमसिम का ही सहारा है
बहुत खूब।
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