' यो-यो ' एक अत्यंत साधारण सा खिलौना है ,जिससे बचपन में सभी ने खेला होगा । दो पतली सी चकती के
बीच उन्हें आपस में जोड़ने वाली एक महीन सी पिन लगी होती है और उसी पर एक लंबा सा धागा बंधा होता है । खेलने के लिए शुरुआत में एक हाथ से चकती या 'यो यो' को पकड़ कर बस पूरे धागे को उस महीन पिन पर लपेटना होता है ओर फिर उस 'यो-यो' को नीचे जमीन की और छोड़ दें ,जैसे ही पूरा धागा खुलने वाला हो ,एक झटके से 'यो-यो' को वापस ऊपर खींच ले । पूरा 'यो-यो' उसी धागे पर उलटा लिपटता हुआ ऊपर चढ़ता चलता जाता है । बार बार ऐसा करते रहें और बस आनंद आता रहता है । जो इस खेल को खेलने में सिद्धहस्त हो जाते हैं ,वे इस 'यो-यो' को किसी भी दिशा में फेंक कर चला लेते हैं । थोड़ा अभ्यास की आवश्यकता होती है फिर तो मजे ही मजे । आजकल तो ये अत्यंत रंग बिरंगे और बैटरी लगी लाइटों के साथ भी आ रहे हैं ।
इस खिलौने का सिद्धांत केवल इतना है " कन्ज़र्वैशन ऑफ़ एनर्जी एंड मूमेंटम " । अगर विज्ञान के सन्दर्भ से न देखें तो केवल इतने बात समझ में आती है कि 'यो-यो' को पुनः ऊपर लाने के लिए उसे नीचे ले जाना अत्यंत आवश्यक है और जितनी तेजी से वह नीचे जाता है पुनः उतनी ही तेजी से ऊपर चढ़ जाता है ।
यही सिद्धांत व्यक्ति के जीवन पर भी लागू होता है । ऊपर उठने लिए यदि गति चाहिए या जीवन में ठहराव आ गया है या ऐसा लगता है कि व्यक्ति प्रगति के बजाय थोड़ा पीछे जा रहा है तब चिंता कदापि नहीं करनी चाहिए । यही बात बच्चों की शिक्षा अथवा करियर के सम्बन्ध में भी लागू होती है । जीवन में कभी कोई बिंदु अंतिम बिंदु नहीं होता । तनिक उससे पीछे लौटें, ऊर्जा और मन को पुनः गति दें । आप पायेंगे कि आपका जीवन भी 'यो-यो' की भांति एक नई ऊंचाई तक पहुँच जाएगा ।
इसे आप 'यो-यो इफेक्ट' कह सकते हैं ।
सच है, ऊर्जा संचित है, भले ही लगा कि चल नहीं रहे हैं।
जवाब देंहटाएंसुंदर बात ..बढ़िया यो यो इफेक्ट ...!!
जवाब देंहटाएंवाह कितनी बखूबी से यो यो ...से जीवन दर्शन समझा दिया ...बहुत बढिया
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक और सार्थक प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत बढि़या।
जवाब देंहटाएंbhaut hi rochak....
जवाब देंहटाएंयो- यो के माध्यम से बहुत अच्छी बात कही है आपने..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..
:-)