मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

" गुनगुने आंसू ...."


बर्फ से गाल पे,
लुढकी दो बूंदे,
आंसुओं की,
गुनगुनी सी |
बन गई लकीर,
नमक की |
लोग कह उठे,
चेहरे पे उसके,
तो नमक है |
मन की भाप,
कितनी उठी होगी,
कितनी सूखी होगी,
तब शायद,
बना होगा,
नमक चेहरे पे |
गुनगुने आंसू ,
गर जो पा जाए,
हथेलियाँ,
सूखने से पहले ,
गुनगुना उठते हैं,
कुछ बोल मोहब्बत के |

23 टिप्‍पणियां:

  1. चेहरे पे नमक ...लावण्य को इतनी सादगी और सुंदरता से व्यक्त किया आपने ...आभार

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  2. गुनगुने आंसू हथेलियों का स्पर्श पाकर गुनगुना उठे.... वाह.... लाज़वाब

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  3. गुनगुने आंसू ,
    गर जो पा जाए,
    हथेलियाँ,
    सूखने से पहले ,
    गुनगुना उठते हैं,
    कुछ बोल मोहब्बत के |... वरना खारे खारे ही होते हैं

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  4. अनुपम भाव संयोजन लिए ...बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  5. गज़ब गज़ब गज़ब …………क्या भाव भरे हैं।

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  6. इस भावपूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  7. बहुत ही सुन्दर.
    गहन भावाभिव्यक्ति
    बेहतरीन रचना...:-)

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  8. गुनगुने आंसू गुनगुना उठते हैं ....
    हथेलिया पाकर ....

    सूखने से पहले ...

    वर्ना पत्थर हो जाते हैं ....

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  9. गुनगुने आंसू से बुनी मुहब्बत की कहानी ... बहुत ही लाजवाब रचना ...

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  10. लाज़वाब...बहूत ही उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..आभार

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  11. इतनी खूबसूरत परिभाषा आंसुओं की कि बस पलकों पर ही ठहरे रहे !
    बहुत बढ़िया !

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