इस वर्ष फिर फरवरी हरी भरी लग रही है । मात्र एक दिन अधिक होने जाने से ही फरवरी माह का रूप स्वरूप विशेष हो जाता है ।चार वर्षों के अंतराल पर ही सही पर जब भी फरवरी २९ की होती है ,लगता है जैसे साल में एक दिन नहीं अपितु आयु में एक दिन और जुड़ गया ।
चार वर्षों में एक बार होने वाली ऐसी घटना को विशेष महत्व दिया जाना चाहिए । इस दिन जो भी कार्य किया जाएगा उसकी पुनरावृति चार वर्षों में ही हो सकेगी । नया वर्ष तो प्रत्येक वर्ष ही मनाया जाता है । क्यों न चार वर्षों में एक बार आने वाली इस तिथि को भी उत्सव के रूप में मनाया जाय ।
परीक्षा के दिनों में यदि कभी परीक्षाएं एक भी दिन के लिए पोस्टपोन हो जाती थी ,लगता था कितना समय और मिल गया । उसी प्रकार फरवरी माह के उन्तीसवें दिन को हम सब अपने जीवन में आया एक अतिरिक्त दिन मानते हुए उत्सव क्यों न मनाये और इस दिन को प्यार, स्नेह, समर्पण के भाव से भर दे।
"अतिरिक्त दिन का,
अतिरिक्त प्यार,
सिर्फ हमारे लिए,
जब तुम न थी,
सब अति रिक्त था,
अब तुम हो,
सब अतिरिक्त है,
मुझे करो तुम रिक्त,
इतना प्यार हो अतिरिक्त ,
इस अतिरिक्तता के अतिरेक में,
बस जीवन हो जाए रिक्त । "
29 तारिख होना खास तो होता ही हैं...
जवाब देंहटाएंमेरी एक क्षणिका आपकी नज़र..
"जिस दिन तुम गए
फ़रवरी उन्नतीस थी...
अच्छा है!!!
अब याद आओगे
कभी
चार बरस में एक बार..."
सादर.
बहुत खूब |
हटाएंआभार |
वाह ..
जवाब देंहटाएंवाह २९ फरवरी अतिरिक्त दिन सब कुछ अतिरिक्त... सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंरेलवे की कमाई में ०.३ प्रतिशत का लाभ..एक अतिरिक्त दिन के कारण..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंबढिया विचार।
जवाब देंहटाएंzindagi ka ek atirikt din mila.....par sanam kahi aur ham kahi aur hei....jab bhi wo aate hei to chota sa jivan bhi bada lagta hei
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा
जवाब देंहटाएंजब तुम न थी,
जवाब देंहटाएंसब अति रिक्त था,
अब तुम हो,
सब अतिरिक्त है,
....बहुत खूब!
bahut sundar vichar
जवाब देंहटाएंatirikat badhaai is sundar lekhan ke lie.
जवाब देंहटाएंमामला चार साल में एक्कै दिन पर लटकाने की साजिश? :)
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