मंगलवार, 29 मई 2012

"एक पगडण्डी नई ............"



राह हो, न हो, 
रहगुजर हो, न हो,
साथ हो, न हो , 
साथी हो, न हो ,
साया हो , न हो,
रौशनी हो, न हो,
सितारे हो ,न हो,
पंछी बोले , न बोले ,
नदी थमे या रुके पवन,
पौ फटे , न फटे,
पग उठ जाते हैं अब ,
चल पड़ने को रोज़,
तलाशने एक ,
पगडण्डी नई,
.
.
.
           "उम्र की तमाम पतली पतली पगडंडियाँ आपस में मिलने को बेताब हैं और मन है कि तलाशता कोई एक पगडण्डी नई |"


20 टिप्‍पणियां:

  1. बावरा है मन....................
    थामे नहीं थमता.................

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  2. आभावों में भाव खो न जायें..बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ..

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  3. बढ़ते हैं कदम
    चलती है जिंदगी
    तलाश लेती है
    पगडण्डी नई...
    बहुत सुन्दर रचना

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  4. क्या बात है। एकदम कोलम्बस बन गये। :)

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  5. अज्ञात की पुकार ही नई पगडण्डी पर लिए चलता है...

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  6. सच हैं ...ये जिंदगी ऐसी ही पगडंडी पर ही चलती हैं

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  7. बहुत खूबसूरत एहसास बढ़िया प्रस्तुति

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  8. कुछ हो न हो हमें चलते ही जाना है । सुंदर प्रस्तुति ।

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  9. ये तालाश हमेशा जारी रहनी चाहिए..
    सुंदर रचना !!

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