सोमवार, 22 सितंबर 2014

" लिखते तो अच्छा हो ,पर लिखते क्यूँ हो ......."


नज़्मों में तुम्हारी दर्द सहती रहूँ मैं क्यूँ  ,

लिखते तो अच्छा हो पर लिखते क्यूँ हो ,

मेरे एहसास बयां होते है तेरे लफ़्ज़ों से ,

पर अपने लफ़्ज़ों से मुझे यूँ भिगोते क्यूँ हो ,

मोहब्बत तो थी पर जब निभानी न थी ,

फिर इतनी मोहब्बत यूं करते क्यूँ हो ,

इज़हारे इश्क का अगर हौसला न था ,

छुप छुप के ज़ाहिर इश्क  करते क्यूँ हो ,

रहने दो मुझे मेरी ही तन्हाइयों में ,

यूं मिल मिल कर निगाहें भिगोते क्यूँ हो । 

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना मंगलवार 23 सितम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. मोहब्बत तो थी पर जब निभानी न थी ,

    फिर इतनी मोहब्बत यूं करते क्यूँ हो ...बहुत ही भावपूर्ण

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  3. वाह ! बहुत ख़ूब ...
    रहने दो मुझे मेरी तन्हाइयों में
    यूँ मिल मिल कर निगाहें भिगोते क्यूँ हो ...

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