नज़्मों में तुम्हारी दर्द सहती रहूँ मैं क्यूँ ,
लिखते तो अच्छा हो पर लिखते क्यूँ हो ,
मेरे एहसास बयां होते है तेरे लफ़्ज़ों से ,
पर अपने लफ़्ज़ों से मुझे यूँ भिगोते क्यूँ हो ,
मोहब्बत तो थी पर जब निभानी न थी ,
फिर इतनी मोहब्बत यूं करते क्यूँ हो ,
इज़हारे इश्क का अगर हौसला न था ,
छुप छुप के ज़ाहिर इश्क करते क्यूँ हो ,
रहने दो मुझे मेरी ही तन्हाइयों में ,
यूं मिल मिल कर निगाहें भिगोते क्यूँ हो ।
आपकी लिखी रचना मंगलवार 23 सितम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंक्यूं का कोई जवाब नहीं।
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जवाब देंहटाएंमोहब्बत तो थी पर जब निभानी न थी ,
फिर इतनी मोहब्बत यूं करते क्यूँ हो ...बहुत ही भावपूर्ण
खूबसूरत पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दर्द भरी प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंयह क्यूँ तो बहुत भावपूर्ण है..
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अभिवयक्ति......
जवाब देंहटाएंवाह.. बेहतरीन।।
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत ख़ूब ...
जवाब देंहटाएंरहने दो मुझे मेरी तन्हाइयों में
यूँ मिल मिल कर निगाहें भिगोते क्यूँ हो ...