रविवार, 18 मई 2014

"और गुनाह हो गया......"


एक नज़्म सी तुम ,
गुनगुना गया मैं ,
और गुनाह हो गया ,

गहरी नदी सी तुम ,
बह गया मैं ,
और गुनाह हो गया ,

ठंडी बयार सी तुम ,
मचल गया मैं ,
और गुनाह हो गया ,

सुहानी शाम सी तुम ,
ढल गया मैं ,
और गुनाह हो गया ,

पूरा चाँद सी तुम ,
बहक गया मैं ,
और गुनाह हो गया ,

मासूम तबस्सुम सी तुम ,
अश्क मैं पीता गया ,
और गुनाह हो गया ।

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर नज़्म.....
    किये जाइए गुनाह.....इनकी कोई सजा नहीं होगी :-)

    अनु

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  2. गहरे अहसास की नज्म - गुनाह की तासीर गहन लग रही है -

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  3. शहद सी नज़्म
    पी गए हम
    और कोई गुनाह नहीं हुआ :D very sweet.

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  4. गजब लिखा है! क्या करें, तारीफ का गुनाह हो गया.… !!

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  5. कितना सुन्दर लिखते हैं आप.... भाई वाह!

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  6. जिस गुनाह की सजा नहीं उसे करने में क्या :) सुन्दर नज़्म मिली हमें तो.

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