एक नज़्म सी तुम ,
गुनगुना गया मैं ,
और गुनाह हो गया ,
गहरी नदी सी तुम ,
बह गया मैं ,
और गुनाह हो गया ,
ठंडी बयार सी तुम ,
मचल गया मैं ,
और गुनाह हो गया ,
सुहानी शाम सी तुम ,
ढल गया मैं ,
और गुनाह हो गया ,
पूरा चाँद सी तुम ,
बहक गया मैं ,
और गुनाह हो गया ,
मासूम तबस्सुम सी तुम ,
अश्क मैं पीता गया ,
और गुनाह हो गया ।
बहुत सुन्दर नज़्म.....
जवाब देंहटाएंकिये जाइए गुनाह.....इनकी कोई सजा नहीं होगी :-)
अनु
बहुत ही सुन्दर नज़्म...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .....
जवाब देंहटाएंगहरे अहसास की नज्म - गुनाह की तासीर गहन लग रही है -
जवाब देंहटाएंThings we do for love :P
जवाब देंहटाएंसुन्दर एहसास...
जवाब देंहटाएंbahut sundar sir :-)
जवाब देंहटाएंशहद सी नज़्म
जवाब देंहटाएंपी गए हम
और कोई गुनाह नहीं हुआ :D very sweet.
कोमल अहसास की सुन्दर सी रचना...
जवाब देंहटाएंगजब लिखा है! क्या करें, तारीफ का गुनाह हो गया.… !!
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अहसास
जवाब देंहटाएंये गुनाह भी बडा खूबसूरत है।
जवाब देंहटाएंकितना सुन्दर लिखते हैं आप.... भाई वाह!
जवाब देंहटाएंजिस गुनाह की सजा नहीं उसे करने में क्या :) सुन्दर नज़्म मिली हमें तो.
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