शनिवार, 9 नवंबर 2013

"ज़िन्दगी दो कश की………… "


कालेज पहुँचने के बाद जब इत्मीनान यह होना शुरू हुआ कि यहाँ की बात तो यहीं रह जाने वाली है और जो कुछ निजता मेरी है वह पूरी तरह से मेरी ही है । तब सबसे पहले तलब सिगरेट पीने की ही हुई थी । सिगरेट ने हमेशा से मेरी तरह ही सभी युवा होते बच्चों को लुभाया है । कुछ नया करने की चाहत में सबसे पहले हाथों में सिगरेट ही आती है । पहले एक संकोच सा होता है पर शुरू में इससे आत्मविश्वास बहुत बढ़ता हुआ सा 'लगता' है ।

सिगरेट की डिब्बी हाथ में लेकर उसके ऊपर की झिल्ली हटा कर डिब्बी का मुंह खोल जब दो बार ठक ठक करने पर एक सिगरेट उछल कर ऊपर आ जाती थी तब मजा ही कुछ और आता था । फिर सिगरेट को होंठों के बीच फंसा कर दुकान पर लटकती सुलगती सुतली से उसे सुलगाना और आँखे मीचते कुर्ते की जेब से अंदर ही अंदर टटोल कर दुकानदार को चिल्लर दे टहलते हुए हर सम्भव स्टाइल से सिगरेट पीने की कवायद करते हुए हॉस्टल तक पहुँच जाना आज भी साफ़ साफ़ याद है ।                                        

सिगरेट पीने का अंदाज़ ,जिसमें बस थोड़ा सा मुंह खोल कर धुँए का बादल सा बनाते हैं और जैसे ही वह बादलनुमा धुंआ बाहर जाने लगता है उसे हलके से पूरा का पूरा अंदर समेट लेते हैं, मुझे बहुत भाता था और इसे सीखने में मुझे लगभग एक माह और दस /बारह डिब्बियां लगीं होंगी।

अगला प्रयोग छल्लों का था । सिगरेट के धुएं से छल्ला बनाना भी बहुत संयम और धैर्य का काम था । 'करत करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान' को सही सिद्ध करते हुए हमने महारथ छल्ले बनाने में भी हासिल कर ही ली थी । हास्टल में कमरे के सामने रेलिंग पर बैठ कर अकेले जब सिगरेट सुलगती थी तब जलती सिगरेट निहारते खुद को दुनिया का सबसे बड़ा दार्शनिक समझते थे । घुप्प अँधेरे में कश खींचने पर जब सिगरेट का छोर आग से लाल हो चमक उठता था और 'चमक' आड़ी तिरछी गोल गोल घूमती हुई जैसे अपने अंदाज़ में मुस्कराते ,तेजी से होंठों की ओर बढ़ती थी तब खुद को उस क्षणिक मुस्कराहट के आगोश में लिपटा हुआ पा सुकून सा महसूस करते थे । (पर यह सिलसिला बस कालेज तक ही सीमित रहा ,क्योंकि दुनिया के बताये हुए 'सही' और 'गलत' के बीच द्वन्द करते अधिकतर हमने 'सही' का ही साथ रखा ) 

सुलगती सिगरेट और ज़िन्दगी का फलसफा एक सा है । नयापन होने पर दोनों अच्छी लगती हैं । दोनों ही समय के साथ सुलगती जाती हैं । साफ़ मालूम है कि ख़त्म दोनों होनी है फिर भी आखिरी कश तक उसे भीतर तक उतार लेने को जी करता है । 'चमक' जो दिखती है वह बस देखने में अच्छी होती है नहीं तो हवा मिलने पर 'भभक' दोनों ही जाती हैं ।

"ज़िन्दगी के कश तो तय होते हैं । इत्मीनान से कश का लुत्फ़ लिया जाय तो कश के बाद भी ज़िन्दगी का ज़िक्र होता रहता है ,नहीं तो कौन फ़िक्र करता है ज़िन्दगी के बाद । शायद यही फलसफा है 'दो कश की ज़िन्दगी' का "। 


16 टिप्‍पणियां:

  1. कभी सिगरेट का काश नहीं लिया। तो पता नहीं पहले और आखिरी कश का एहसास क्या होता है। हाँ युवा होते कई युवकों को जिस अंदाज से सिगरेट पीते देखा है और जैसा कि आपने भी लिखा है। अगर उसी अंदाज से जिन्दगी जिए इंसान तो क्या कहना :).

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  2. सबको देख कर, बराबर मन करता है, कई बार पीए भी, पर पीने के बाद, हर बार ग्लानि ही अनुभव हुई... कुछ भी अलग नहीं लगा, ऊपर से गला जलता रहा !!

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  3. धुएँ का भभका ऐसा होता है जो जीते जी दिखाई नहीं देता है :(

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  4. युवाओं को बहुत लुभाती है सिगरेट ....खासकर धुँआ उड़ाने का अंदाज़ खुद को किसी दार्शनिक के समकक्ष खड़ा पाता है ये बात सही लगती है मुझे भी ...पर सिगरेट ज़िंदगी तेज़ी से खर्च करती है इससे इंकार नहीं किया जा सकता
    हाँ ....ज़िंदगी जीने का अंदाज़ मस्त-मौला होने में तो आनंद ही आनंद है ....सहमत हूँ मैं भी

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  5. दीपावली के धुंए के आगे सिगरेट का धुआं कुछ भी नहीं है...

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  6. सच, आपने हर युवा के मन की बात कही है

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  7. Lutf uthana behad jaroori hai....warna dhuwan to ojhil hi ho jaana hai...
    Bahut sundar relate kiya hai sirji:-)

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  8. सच में मजा तो है किन्तु न जाने क्यों जीवन हर मजे की सजा अवश्य देता है. शायद जीवन परपीड़क सैडिस्ट है. व्यक्ति ने खाया तो वजन बढ़ाया, अधिक खाया तो और वजन बढ़ाया, और अधिक खाया तो डायबेटीज कराया, मीठा खाया तो डायबेटीज गडबडाया, तला खाया तो कोलेस्ट्रोल बढ़ाया, और खाया तो दिल गडबडाया, बायपास करवाया, सिगरेट पी तो copd ... Chronic Obstructive Pulmonary Disease हो ली. जीवन का सार यह है कि जिस भी काम में मजा आए उसे छोड़ दो वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. लम्बा जीना है तो यूँ जिओ कि जीवन जीने लायक ही न लगे। मजा किया तो जीवन मजे के लिए छोटा पड़ जाएगा।

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  9. किशोर मन के अंतर्द्वंदों को बहुत खूबसूरती से रखा है.
    नई पोस्ट : फिर वो दिन

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  10. हमने ससुर ई धूम्रदंडिका को आज तलक नहीं टराई मारा , का अब ई धूल धुआं अलग से फ़ांकते फ़िरें , जब इत्ता त आलरेडी फ़ेफ़डा में अपने आप ही घुस जाता है पोलुसन जी ......वैसे हमने दीवाने भी खूब देखे हैं इसके जी , एक से एक :) ..अब तो .....पिरचार नय देखते हैं जी ............इससे एक किलो टार जमा हो जाता है ...साला यमराज टाईप का भविष्यवाणी वाला आवाज़ में बोलता है । फ़िकर को धुंएं में उडाने वाला गनवा ओइसे ही थोडी हिट हुआ था ...

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  11. कही पढ़ा था जीवन जीना है तो जलती सिगरेट की तरह नहीं , सुगन्धित अगरबत्ती की तरह जियो !

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  12. बीडी, सिगारेट हमारे एक दोस्त पीते थे |गर्मी के दिन में इमली के पेड़ के नीचे बैठकर मुझे भी चखाया |मुझे चक्कर आ गया तो उसका होस उड़ गया |इमली के पत्ते मेरे मुहँ में ठुसते गए, मैं चबाकर खाता गया |थोड़ी देर मे ठीक हो गया |तबसे आज तक बीडी,सिगारेट पिया नहीं |
    नई पोस्ट लोकतंत्र -स्तम्भ

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  13. मैं अमूमन अपने किसी पोस्ट का प्रचार किसी दुसरे के फेसबुक वाल अथवा ब्लॉग पर नहीं करता हूँ. मगर जब बात चली ही है तो अपने इस पोस्ट का जिक्र करने का दिल हो आया. :)

    एक गंजेरी कि सूक्तियां
    http://prashant7aug.blogspot.com/2010/05/blog-post_21.html

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