मंगलवार, 19 नवंबर 2013

" स्माइलीज़ और उनके एक्स रे........... "


'स्माइलीज़' आकृतियों का वह पिटारा है जिसमे मानव स्वभाव के सभी मनोदशाओं को मात्र एक छोटी सी आकृति से प्रदर्शित किये जाने के सभी प्रकार की आकृतियां उपलब्ध हैं । मित्रों और प्रेमी प्रेमिकाओं में पत्रों और लघु संवादों के आदान प्रदान में सदैव से मनुष्य के चेहरे को कार्टून बना कर उपहास / परिहास किया जाने का चलन रहा है ।

'फेसबुक' पर संवाद / टिप्पणी में अल्प शब्दों में अधिक से अधिक बातें कह देने के उद्देश्य से इसका प्रयोग अचानक बहुत बढ़ गया और भिन्न भिन्न प्रकार के मनोभावों को दर्शाने के लिए अनेक प्रकार के 'स्माइलीज़' का जन्म होता गया ।

आश्चर्य होता है कि सच में इतने मनोभाव होते भी हैं कि नहीं । फिर अपना 'मूड' जानकार उससे मिलती जुलती 'स्माइलीज़' लगाना भी कठिन लगता है । 'स्माइलीज़' से जिन मनोभावों का प्रदर्शन होता है ,वह सारे ऐसे भाव हैं कि जिन्हे दूसरों के चेहरे पर पढ़ना ज्यादा सरल होता है ।

कहीं चश्मा लगा कर , कहीं आँख दबाकर , कहीं जीभ निकाल कर ,कहीं डेविल ,कहीं एन्जिल , कहीं 'किस', कहीं दिल ,इतने सारे प्रेम चिन्ह बना लिए हैं कि उनका वर्णन करना मुश्किल है । चतुर लोग 'स्माइलीज़' का जवाब 'स्माइलीज़' से ही दे लेते हैं या फिर शायद उन्हें अपनी बात कहना नहीं आता ।

यहाँ तक तो सब ठीक है पर असली समस्या तब आती है जब किसी ने 'स्माइली' बनाने का प्रयत्न किया और 'स्माइली' नहीं बन पाई । ऐसे में 'स्माइली' के स्थान पर जो आड़ी, तिरछी, वक्रीय रेखाएं बन जाती हैं वह उस 'स्माइली' का 'एक्स रे' लगती हैं जिसमें उस 'स्माइली' के जिस्म की हड्डियां दिखाई पड़ने लग जाती हैं और जिस आशय से उसे बनाया जाता है उसकी पूर्ति फिर नहीं हो पाती । यह अपूर्ण / अधूरी 'स्माइलीज़' मक्के के उन दानो जैसी लगती हैं जो 'पोपकोर्न' खाते समय कभी कभी हाथ लग जाती हैं जिन्हे हम 'टुर्रा' कहते हैं ।

हंसी-मजाक के संवाद में तो इनका प्रयोग उचित है पर संजीदा बातों में इनके प्रयोग से बचना चाहिए । यह चिड़िया / तोता / मछली बच्चों के संवाद तक ही सीमित रहे तभी बेहतर है । 'फेसबुक' पर टिप्पणियों में इन्हे सजाने से खूबसूरती तो बढ़ती है पर 'अर्थ' अपना 'अर्थ' कहीं खो बैठते हैं ।


                                                                       ....... और मुझे 'स्माइली' बनाना नहीं आता  । 

('ब्लॉग पोस्ट' पर टिप्पणियोँ  में 'स्माइलीज़' बनाने पर 'स्माइली' तो बनती नहीं ,उसका 'अस्थि पंजर' सा बन जाता है । अब उस 'अस्थि पंजर' की शक्ल किसी परिचित 'स्माइली' से मिला कर सोचो तब समझ आता है 'टिप्पणीकार' कौन सा मनोभाव दर्शाना चाहता है । )

11 टिप्‍पणियां:

  1. 3:-).... मुझे बहुत दिक्कत होती है "काजल कुमार जी" स्पेशल स्माईली बनाने में ...लेकिन बहुत ज्यादा हँसी आ रही हो ...तो वही पोस्ट करने का मन करता है .....

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  2. :-P कित्ता मज़ा आता है ये smileez/emoticons बनाने में.......
    <3 बनाया था एक बार तो अर्चना दी ने कहा....सम्हाल के रक्खो....ज़रा ज़रा में दिल निकाल के रख देती हो :-) http://archanachaoji.blogspot.in/
    हाँ संजीदा बातों में इनका प्रयोग कम भाता है....

    अनु

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  3. अब यहाँ कैसे स्माईली बनाएँ ????

    :) :) :) :) :) ...बढिया पोस्ट

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  4. इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :- 21/11/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक - 47 पर.
    आप भी पधारें, सादर ....

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  5. hahaha padh kar sach me maja aya ..bt its my bad habbit .. nthng to do wid it ..mujhe bina smilly banaye .cmnt dene ka man hi nhi karta :D

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