रात को जब कभी भी दस बजे के बाद हमारे घर की काल बेल बजती थी ,वह भी लगातार ,तब निवेदिता कहती थी ,"देखिये मुग्धा होगी , यह लड़की घंटी न जला दे "। पहले हमारे यहाँ काल बेल चिड़िया की आवाज़ वाली थी ,वह घंटी दबाये रखने पर लगातार बजती थी । मुग्धा से घंटी जलने से बचाने के लिए हम लोगों ने उसे बदल कर 'डिंग डाँग' लगवा दी । उसमे एक बार बजाने पर स्विच दबाये रखो, फिर घंटी नहीं बजती । इस पर मुग्धा ने स्विच ही कई बार आन आफ कर 'डिंग डाँग' की भी ऐसी की तैसी कर डाली।गेट से घुसते ही हँसते ,चहकते और पूछते आंटी कहाँ हो ,क्या बना है ,बहुत खुशबू आ रही है ,इतना कहते कहते हमारा पूरा घर उसकी रौनक से भर जाता था और इतनी ही देर में उसकी प्रिय आंटी उसके लिए कुछ न कुछ खास कर मूंग की दाल की कचौड़ी बना डालती थीं । ( मुझे एक अरसे से नहीं मिली खाने को )
वर्ष १९९९ में जब हम लोग लखनऊ ट्रांसफ़र हो कर आये थे तब 'रेलन साहब' के घर में हम लोगों ने किराए पर रहना शुरू किया था । रेलन साहब और मुग्धा की मम्मी दोनों लोग बैंक कर्मी और उनकी दो बेटियाँ मुग्धा और चिंकी ,चारों अपने मकान में ऊपर रहते थे और हम चारों नीचे वाले हिस्से में । चिंकी तो काफी छोटी थी और शांत भी पर मुग्धा तो जैसे उसमें चंचलता कूट कूट कर भरी थी । जब भी सीढियों पर होते हुए ऊपर अपने घर जाती तब नीचे की घंटी बजाकर आंटी का हाल चाल लेना तय था। इनका यह घर हम लोगों के लिए बहुत शुभ साबित हुआ । वहीँ रहते रहते वर्ष २००२ में हम लोगों ने वहीँ पास में अपना एक घर बना लिया और फिर उसी में शिफ्ट कर गए । पर मुग्धा की घंटी के आतंक का प्रकोप कम नहीं हुआ और न ही उसका 'आंटी प्रेम' ।
अब धीरे धीरे मुग्धा का गैंग बड़ा हुआ उसमें चिंकी तो शामिल हुई ही ,उसकी एक बहन और, देहरादून से ,मेघा भी शामिल हो गई । अब तीनो अपनी आंटी के जो फैन हुए फिर क्या कहने । निवेदिता की कचौड़ियाँ तो पूरे 'रेलन परिवार' में 'वर्ल्ड-फेमस' हो गईं ।
मुग्धा जितनी चंचल परन्तु समझदार ,उसे उसका जीवनसाथी भी बहुत हैंडसम और आकर्षक व्यक्तित्व वाला ही मिला । ईश्वर उसकी चंचलता और हंसी यूं ही बनाए रखें उसके गैंग की बाकी दोनों बहने भी अपने अपने जीवन में सुखी और समृद्धिशाली हों ,ऐसी ईश्वर से प्रार्थना है हम लोगों की ।
बस अब हम लोग मुग्धा और उसकी लगातार बजती घंटी दोनों को बहुत मिस करते हैं और शायद सदा करते रहेंगे । मुग्धा , अपनी आंटी को तो बोल दो , मुझे तो कचौड़ियाँ खिला दे एकाध बार ।
शुभकामनायें मुग्धा को !
जवाब देंहटाएंतुमको भी कि कुछ कचौड़ी मिल मिला जाये।
बहुत शुभकामनाएँ !!!
जवाब देंहटाएंऐसे प्रेमी लोग बहुत ही कम मिलते हैं..
वैसे कचोड़ी और पकोड़ी की 'वर्ल्ड फ़ेमस' खबर यहाँ तक पहुँच गई है । :)
सुन्दर संस्मरण!अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंकचौड़ी की खुशबू यहाँ तक आ रही है अमित जी :)
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति! हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} की पहली चर्चा हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती -- हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल चर्चा : अंक-001 में आपका सह्य दिल से स्वागत करता है। कृपया पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर .... Lalit Chahar
हटाएंअबकी बार लखनऊ यात्रा की कचौड़ियाँ पक्की, हम तो घर पहुँच जायेंगे।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत संस्मरण |
जवाब देंहटाएंअक्सर लोग अजनबी होते हुए भी अपनी बहुत ही मधुर यादें छोड़ जाते हैं.....मगर ऐसे लोग कम ही होते हैं...
जवाब देंहटाएंमुग्धा को ढेरों शुभकामनाएँ! :-)
~सादर!!!
wow uncle ... but aunty ki kachori to yahan pratik bhi bohot yaad karte hai .... ab to dobara door bell baja k kachori khane ka man kar raha hai
जवाब देंहटाएंUncle its really awesum...even I miss d door bell and kaachori..apne kitni acche se saare emotions ko likh diya hai..yahi tho art hai apki jiske hum sab fan hai.....Miss u and Aunty so much and specially..I miss everything about Lucknow and my colony..
जवाब देंहटाएंThanks Lalit jee,Anita Jee ,Anoop jee and Rastogi jee for the wishes.
And Uncle jaldi aoongi mai kachori khane sath sath klhayenge..
behtreen post....
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