रात में बिस्तर पर करवटें बदल रहा था कि अचानक से कहीं से आवाज़ आई ,"क्यों नींद नहीं आ रही है क्या "। मुझे लगा निवेदिता की आवाज़ तो ऐसी खराश वाली नहीं है ,यह कौन बोला । नाईट लैम्प जला कर चारो ओर ढूंढती निगाहों से कोशिश की परन्तु नज़र कोई न आया । अचानक फिर ऊपर से छत की ओर से हँसने की आवाज़ आई । देखता क्या हूँ ,सीलिंग फैन एक तरफ तिरछा होकर मुझसे कुछ कह रहा था । मेरे तो होश उड़ गए । इस पर वह अपने पंख डोलाते हुए बोला घबराओ मत ,कई दिनों से तुम्हे एकदम अकेला देखकर मुझे तुमसे सहानुभूति हो रही है । मुझे तो आदिकाल से अनंत काल तक ,जब तक धरती पर मनुष्य रहेगा ,अकेले ही एक जगह पर फिक्स्ड रहकर अकेलापन काटने का शाप मिला हुआ है पर तुम तो पत्नी और बच्चों वाले हो ,ऐसे कैसे मनहूसों की तरह अकेले पड़े रहते हो । मैंने कहा ,नहीं नहीं बस ऐसे ही आज कुछ मन ठीक नहीं था सो अकेले ही लेट गया । इतनी देर में सीलिंग फैन ने एक मानवीय शक्ल का रूप ले लिया था । सीलिंग फैन के पेंदी में एक नोक सी निकली हुई है ,वह मुझे अब उसकी नाक लगने लगी थी । अपनी नाक तिरछी करते हुए वह बोला , देखो मुझसे तुम्हारा कुछ भी छिपा नहीं है । मैं तुम्हारे बारे में उतना जानता हूँ जितना तुम भी नहीं जानते अपने बारे में। रोज ऊपर से विहंगम दृश्य देखता हूँ तुम्हारा (बड़ा वीभत्स लगता है, ऐसा मन ही मन बोला होगा ) ।
पहले तुम कितने सलीके से रहते थे । पूरा कमरा एकदम सुव्यवस्थित रहता था । कमरे में हल्का हल्का संगीत बजता रहता था और उस पर से मंद मंद खुशबू इत्र की ,और निवेदिता से तुम्हारी चुहल होती रहती थी । बच्चे भी उछल कूद किया करते थे । चलो बच्चे तो चले गए बाहर पढने लिखने ( यही एक काम जीवन में तुमने अच्छा किया ,तुमने खैर क्या किया ,सारा श्रेय निवेदिता और उसके ईश्वर को है ) पर तुम तो अब भी उसी तरह उमंग में रह सकते हो । अब जब भी कमरे में होते हो बस फोन पर लोगों से बातें या लैपटाप लिए खटर पटर करते रहोगे और अकेले ही मुस्कुराते रहोगे । जैसे ही फोन बंद या लैपटाप बंद ,तुम्हारी सूरत भी 'भारत बंद' की तरह मनहूस हो जाती है ।
जितनी शान्ति तुम्हारे घर में रहती है इतनी तो अस्पताल में भी नहीं होती। चिंतन मंथन करना अच्छी बात होती है परन्तु मौन रखना बेवकूफी होती है । इसीलिए मैं भी कभी जोर जोर से आवाज़ करने लगता हूँ , जब तुम एकदम से उठकर देखने लगते हो कि कहीं मैं बिगड़ तो नहीं गया । मैं बिगड़ने वाला नहीं । मुझे सन्नाटा पसंद नहीं ,परन्तु तुम चुप रहोगे तो मुझे ही कुछ करना पडेगा न ।
अब तुम 'ए सी' चला लेते हो और मुझे बंद कर देते हो । तब मुझे बहुत ठण्ड लगती है । मैं जब तक चलता रहता हूँ मेरे अन्दर भी गर्मी बनी रहती है । थोड़ा 'ए सी' कम कूलिंग पर रखा करो और मेरी भी हवा ले लिया करो । जब कभी लाईट चली जाती है, तब इनवर्टर के सहारे मेरे ही दम पर रात भर चैन से सो पाते हो तुम । तब तुम्हारा 'ए सी ' खुद ही मेरी ओर अपना मुंह बाए टुकुर टुकुर ताकता रहता है ।
और हाँ ! रात में बत्ती बंद कर सोया करो । किताब पढ़ते पढ़ते सो जाते हो ,मुझे रोशनी में उलझन लगती है और आँख खुलने पर तुम्हारी बेढंगी वीभत्स मुद्रा भी देखनी पड़ती है ।
देखो,मैं तुम्हारा फैन हूँ और तुम्हारा ही फैन रहूँगा ता-जिंदगी । मैं आदमियों की फितरत वाला नहीं हूँ जो रोज़ अपनी पसंद और ना-पसंद बदलते रहते हैं । अब तक इसकी बडबड सुनकर मैं बोर हो चुका था । सो एक गिलास पानी के लिए ही जैसे हाथ बढ़ाया ,ट्यूब लाईट के स्विच पर हाथ पड़ गया और कमरे में उजाला भर गया। देखा सीलिंग फैन तो मस्त मस्त धीरे धीरे गोल गोल घूम रहा था (जैसे मन ही मन हंस भी रहा हो ) ।परन्तु मुझे पता नहीं क्यों उसके सामने अब अजीब सा लग रहा था ,जैसे मेरी किसी ने पोल खोल दी हो ।
कितना सच सच कह गया मेरा 'फैन' सब मुझसे ।
फैन को सन्नाटा नहीं पसंद...
जवाब देंहटाएंजीवन में चहल पहल बनी रहे!
फैन के माध्यम से मिला कमाल जीवन दर्शन..... :)
जवाब देंहटाएंवैसे बात एकदम सही है ...
behtreen post...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कमाल की सटीक प्रस्तुति ,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : जिन्दगी.
अरे वाह वाशिंग मशीन के बाद अब फैन जी भी बतियाने लगे आपसे। इन घरेलु समझी जाने वाली वस्तुओं के माध्यम से अपनी बातें कहने का अंदाज़ बहुत ही अच्छा लगता है।
जवाब देंहटाएंरोचक प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है १५ अगस्त पर आपके पंखे का सन्देश आँखें खोलने वाला है . आप मेरा ब्लॉग rajubindas.blogspot.com भी देखें ...
जवाब देंहटाएंजय हो, सोने के पहले यह विचार आया कि जगने के बाद।
जवाब देंहटाएं