"शब्द भीतर रहते हैं तो सालते रहते हैं,
मुक्त होते हैं तो साहित्य बनते हैं"। मन की बाते लिखना पुराना स्वेटर उधेड़ना जैसा है,उधेड़ना तो अच्छा भी लगता है और आसान भी, पर उधेड़े हुए मन को दुबारा बुनना बहुत मुश्किल शायद...।
बहुत प्यारी पोस्ट..... जाने कैसे देर हुई....आज अखबार में इसका ज़िक्र देखा तो लगा हमारी उपस्थिति तो यहाँ दर्ज़ ही नहीं है.... बच्चों की माँ को शुभकामनाएं दीजियेगा. सादर अनु
सच में माँ ही प्रतिध्वनित होती है हमारे हर शब्द में
जवाब देंहटाएंपूरे पृष्ठ में 'माँ' की प्रतिध्वनि समा गई है !
जवाब देंहटाएंमाँ का मतलब अवर्णनीय तरीके से प्रस्तुत किया है आपने...
जवाब देंहटाएंma ke bare me jitna bhi likhen kam hai ......bahut acchi prastuti ....
जवाब देंहटाएंमाँ ही माँ हर कण में .
जवाब देंहटाएंमाँ के प्रति उत्कृष्ट भाव
जवाब देंहटाएंआपका कविता समुच्चय भावपूर्ण और अनुभव से भरा है। कोमल भावों को भी शब्दों का प्रकर आश्रय चाहिये।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ...मातृत्व दिवस की बधाई
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (13-05-2013) के माँ के लिए गुज़ारिश :चर्चा मंच 1243 पर ,अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें
सूचनार्थ |
नि:शब्द...
जवाब देंहटाएंकण-कण में माँ समाई ...
जवाब देंहटाएंतभी तो बन श्रद्धा लेखनी में उतर आई है
अनुपम भाव संयोजन
अमित जी! क्या कहें..... निःशब्द हैं हम...
जवाब देंहटाएंपूरा जीवन-चक्र आँखों के आगे घूम गया... जिसकी धुरी है माँ...~बहुत सुंदर लिखा है!
~सादर!!!
मां--अनंत रूपा
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी पोस्ट.....
जवाब देंहटाएंजाने कैसे देर हुई....आज अखबार में इसका ज़िक्र देखा तो लगा हमारी उपस्थिति तो यहाँ दर्ज़ ही नहीं है....
बच्चों की माँ को शुभकामनाएं दीजियेगा.
सादर
अनु
बढिया संकलन है।
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