( यह पोस्ट फेसबुक पर फोटो चस्पा करने के बाद शिवम् जी के आदेश और स्नेहिल आग्रह पर लिखी गई है )
बहुत छोटे छोटे बाल और एक अदद गाढ़ी मूंछ का मै हमेशा से ही दीवाना रहा हूँ और मुझे याद नहीं पड़ता कि मुझे कभी अपने बालों के लिए कंघे की आवश्यकता हुई हो । मूंछे भी मैंने हमेशा भरी पूरी रखी । कभी कभार मूंछों के प्रति मेरी दीवानगी देख श्रीमती जी ने प्रलोभन भी दिया कि अगर आप क्लीन शेव हो जाएँ तो ऐसा होगा या वैसा होगा परन्तु मैंने कभी समर्पण नहीं किया। इस पर उनको संदेह भी हुआ कि कोई मेरी मूंछों का जबरदस्त फैन तो नहीं । खैर हम कहाँ कुछ खुलासा करने वाले इन बातों का ।
इधर बीते कुछ दिनों से काली मूंछों के बीच कुछ गोरे दिखाई देने लगे । श्रीमती जी अचानक से खुश हो गईं और बोली अब आप क्लीन शेव हो जाइये । मैंने बगैर उन्हें सुने बड़ी तल्लीनता से आँखे फाड़ फाड़ कर एक छोटी सी नोक दार कैंची से सफ़ेद फिरंगियों को काट बाहर किया । मेरी मूंछे फिर काली कड़क और कलफदार हो गई । यह सिलसिला चल निकला । जैसे ही गोरे बाहर मुंह निकालते मैं उनका मुंह धर दबोचता और वो सब गायब ।
अब तक तो काफी हाथ सध चुका था इस काम में । परन्तु एक ही स्थान विशेष से सफेदी काटते काटते वहां दुश्मनों के बंकर जैसे कुछ स्थान बन गए थे जो किसी और को तो नहीं परन्तु मुझे अवश्य दिखते थे । आज सोचा थोड़ा कालों को भी काट छांट कर ठीक कर दूँ । बस इसी बराबरी करने के चक्कर में काले गोरे सब गायब हो गए और नाक और होंठों के बीच एक पिच तैयार हो गई ।
सबसे पहले हमारे मूंछ विहीन चेहरे का दर्शन लाभ श्रीमती जी ने किया । पहले तो उन्होंने देखकर इग्नोर किया फिर थोड़ा गौर किया और बोली , नहीं अच्छा लग रहा है ,आपका फेस चौड़ा लग रहा है ,मूंछे आपके फेस को सूट करती थीं। मैंने कहा , यार तुम्हारी बरसों की इच्छा को ध्यान में रखकर मै तो क्लीन शेव हो गया और तुम ऐसा कह रही हो । इस पर वह तुनक कर बोली , तब करते तो बात थी । अभी तो आप गलती से सारी मूंछ क़तर गए तो उसमें भी मेरे ऊपर एहसान । मन ही मन में सोचा मैंने बात तो ठीक ही कह रही है ,पर चुप ही रहो अभी । मैंने महकुआ आफ्टर शेव लगाया और आफिस के लिए निकल गया । रास्ते भर रियर व्यू मिरर में अपनी शकल निहारता जा रहा था ।
आफिस पहुचते ही ,
पहला कमेन्ट - आप दस साल छोटे लग रहे हैं ।
अगला कमेन्ट -वैसे मूंछों में ज्यादा जंचते थे ।
फिर अगला कमेन्ट -कब तक सफेदी छुपाओगे ।
अगला कमेन्ट -मूछों में रोब था , अब कोई आपसे डरेगा नहीं ।
फिर अगला - मूंछों में पता नहीं चलता कि आप गुस्से में हैं कि लाइट मूड में ।
कमेन्ट - बिना मूंछ के चेहरे का भाव पढ़ना सरल है ।
बॉस -अमित ,तुम्हारे पास इतना समय कैसे रहता है ,नए नए एक्सपेरिमेंट करते रहते हो ! वैसे अच्छे लग रहे हो । हफ्ते में तुम दो बार तो बाल कटवाते हो अब मूंछे भी कटवाओगे रोज़ ।
मैंने कहा , मेरा बस चले तो हिन्दुस्तान के हर आदमी के बाल छोटे छोटे 'क्रू कट' करवा दूं और हर आदमी के लिए पढ़ाई के बाद ६ माह की मिलिट्री ट्रेनिंग कम्पलसरी करा दूं ।
बॉस -अमित ,फिर तुम्हारा देश प्रेम और फ़ौज प्रेम चालू हो गया । आज बारह बजे राष्ट्रपति महोदय आ रहे हैं । उनके कार्यक्रम में मुझे जाना है । सबको एलर्ट कर दो , तुम मूंछ रखो न रखो तुम्हारी मर्ज़ी ।
मै मन ही मन अपनी मूंछों पर ताव देता हुआ उन्हें कार में बिठा अपने कक्ष में आकर बैठ गया ।
रोचक पोस्ट...एक से बढ़कर टिप्पणी तो आपको दफ्तर में ही मिल गयी :)
जवाब देंहटाएंनाक पे बसा गुस्सा और होठों पर थी मुस्कान बस्ती,
जवाब देंहटाएंबीच बियावान साफ हो गया और इस तरह आने जाने का रास्ता आसान हो गया......
सही कही.. मूँछों की दास्तां है लंबी चौड़ी.. कभी हम भी मूँछ रखते थे फ़िर क्लीन शेव.. अब दक्षिण भारतीय स्टाईल में मूँछ रखने की तैयारी की गई है..
जवाब देंहटाएं:):) तब काटते तो बात कुछ और होती ......रोचक
जवाब देंहटाएं"मेरा बस चले तो हिन्दुस्तान के हर आदमी के बाल छोटे छोटे 'क्रू कट' करवा दूं और हर आदमी के लिए पढ़ाई के बाद ६ माह की मिलिट्री ट्रेनिंग कम्पलसरी करा दूं ।"
जवाब देंहटाएंयही हमारा सोचना है ... बिलकुल सेम टू सेम !
बाकी अनुरोध का मान रखने के लिए एक चटक सैलूट !
मूँछ के बारे में एक चुटकुला पढ़ा था - दो सहेलियाँ अपने पति और उनकी मूँछ पर विमर्श कर रही थीं। पहली ने कहा, "मेरे उनकी मूँछ मुझे बहुत अजीब लगती है।" दूसरी ने कहा, "तुझे तो सिर्फ़ अजीब लगती हैं, मुझे तो गुदगुदी होती है।"
जवाब देंहटाएंआज की ब्लॉग बुलेटिन १० मई, मैनपुरी और कैफ़ी साहब - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंवाह बढ़िया कमेंट्स मिलते हैं, सबकी अलग-अलग सलाह ...
जवाब देंहटाएंजँच तो रहे हैं, हल्का हल्का उगने की भी टोह लीजिये।
जवाब देंहटाएंहा हा हा.... जल्दी ही समय निकालना पड़ेगा ... देखने के लिए..!:P
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
मेल द्वारा प्राप्त टिप्पणी :
जवाब देंहटाएंअमित जी,
नमस्कार !
मुझे तो लगता है, जो सबसे इम्पोर्टेन्ट बात होती है उसे अंडरलाइन किया जाता है। अब हिन्दुस्तानियों के लिए उनकी नाक से बढ़कर क्या होता है भला :) इसलिए उसे अंडरलाइन करना ज़रूरी है :)
इन दिनों अपने घर से दूर हैं हम और अपनों का साथ भी नहीं है हमारे पास। बस आज ही भारत पहुँचे हैं, पहुँचते ही कई पोस्ट्स और कॉमेंट्स पढ़े, दिल ऐसा ख़ुश हुआ कि क्या बताएँ । भारत आकर एक दिन पहले का दैनिक जागरण हाथ लग गया ( १० मई ) और उसमें आपकी एक पोस्ट भी 'जीवन एक केमिस्ट्री' पढने को मिल गई, तो सोचे आपको बधाई दे दें।
बहुत बहुत बधाई आपको !
हम तो कोमेंट कर रहे हैं लेकिन कोमेंट नहीं हो पा रहा है, इसलिए ईमेल से स्वीकार कीजिये।
आभार !
स्वप्न मञ्जूषा 'अदा'
मूंछ गेला, पोस्ट मेला।
जवाब देंहटाएंमूछ गयी पर एक पोस्ट मिली। बधाई।