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कुछ ख्याल आज यूँ आया कि जो लोग मेरी ज़िन्दगी से जुड़े हैं या जिनसे सरोकार है मेरा , अगर उन ज़िन्दगियों को जोड़ जोड़ कर एक कोलाज बनाया जाये तब वह कैसा बनेगा और कैसा दिखेगा | पुरानी स्मृतियों से लेकर अब तक सभी को याद कर एक जिग-सा पज़ल की तरह करीने से जोड़ने का प्रयत्न कर रहा हूँ पर अचंभित हूँ यह देख कर कि सारी कतरने मेरी लगाईं हुई जगह पर नहीं ठहर रही हैं | वह खुद-ब-खुद चल कर अपनी जगह ढूंढ कर वहीँ चिपक जा रही हैं | आकृति एक मनुष्य की ही बनती जा रही है ,शायद मेरी ही |
देखते देखते एक कोलाज मेरे ही चित्र सा तैयार हो गया | जिनकी तरह से मैं सोचना चाहता हूँ , उन सब ने मिल कर सर का आकार ले लिया | जिन्हें मैं दिल में बसाना चाहता था , वे एक भी दिल के स्थान पर नहीं ठहरे | सब बस दिल के इर्द गिर्द एकत्र होकर दिल को आकार दे रहे थे और दिल में झाँकने का प्रयत्न कर रहे थे (देखें चित्र में ) | चूंकि वहां का स्थान रिक्त था,अतः वहां कोई उतरने की हिम्मत नहीं कर पाया | शायद लोग वहीँ रहना और जाना पसंद करते हैं ,जहाँ भीड़ भाड़ होती है |अतः कोलाज में भी मेरे दिल का स्थान रिक्त ही रहा | अब चूंकि काम तो बहुत अधिक करना पड़ता है और जो लोग भी मेरे सहयोगी है ,वे सब मेरे दायें ओर एकत्र हो गए | यह सब कोलाज बनाते समय अपने आप हो रहा था | चाह कर भी मै कुछ लोगों की कतरनों को इधर से उधर नहीं कर पाया | अचानक से सभी जिंदगियां जीवंत जो हो चुकी थीं |
जिन्हें मैं अपनी नज़र में बसा कर रखता हूँ ,वे सब आँखों के स्थान पर आकर ठहर गए | मेरे अधरों पर मुस्कान लाने वाले बहुत कम ही लोग हैं मेरी ज़िन्दगी में , वे चंद लोग ठहरे से हैं मेरे होंठों पर | उनका मैं दिल से अहसान मंद हूँ |
कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अब मेरे संपर्क में नहीं हैं और मुझसे बहुत दूर हैं | वे दूर तो खड़े हैं परन्तु वास्तविक आकार मेरे जीवन का उनके वहां होने सी ही है | वाह्य रेखाएं किसी भी चित्र की सबसे महत्वपूर्ण रेखाएं होती हैं |
और कुछ यूँ बन गया कोलाज, मेरी ज़िन्दगी में शामिल लोगों का |
ज़िन्दगी एक कोलाज ही तो है तमाम उन ज़िन्दगियों का , जो आपकी ज़िन्दगी से वास्ता रखती हैं |
"ज़िन्दगी एक कोलाज ही तो है तमाम उन ज़िन्दगियों का , जो आपकी ज़िन्दगी से वास्ता रखती हैं |"
जवाब देंहटाएंबहुत सही ... :)
जी हाँ अपने मिलकर ही उकेरते हमारे जीवन का चित्र .....
जवाब देंहटाएंबड़ी ऊंची कविता है भाई!
जवाब देंहटाएंअर्थात ......
हटाएंहा हा , अनूप जी एक दिन इस कविता को "मेरी पसंद ". लेख का प्रवाह कल कल बहती सरिता जैसा ही है और इसी भ्रम में ये कविता लगी उनको :).
हटाएं--
रोचक लगा ये कोलाज !:-)
जवाब देंहटाएंवैसे आपकी सभी रचनाएँ काफ़ी रोचक होतीं हैं ! अच्छा लगता है उन्हें पढ़कर...
~सादर !
bhaut hi khubsurat abhivaykti....
जवाब देंहटाएंकभी कभी सोचने बैठो तो लगता है ये कोलाज तो बनना खतम ही नहीं होगा कभी..कितने लोग शामिल होते हैं इसमें .
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत है कोलाज भी, शैली भी और कांसेप्ट भी.
कोलाज़ और सत्य अपना अपना
जवाब देंहटाएंbahut sahi sarthak post amit ji
जवाब देंहटाएंकुछ ने आँखें बनायी, कुछ ने कान, कुछ तो हृदय में आकर ही बस गये। लीजिये तैयार हो गया कोलाज।
जवाब देंहटाएंकुछ हट कर है आपकी ये सोच :)))
जवाब देंहटाएंवाह......
जवाब देंहटाएंशायद सभी के जीवन का कोलाज कुछ यूँ ही बनेगा....
सोच रही हूँ मेरा कैसा होगा????
सादर
अनु
क्या हम अकेले रह सकते हैं, नहीं... कभी नहीं... हमारी ज़िन्दगी तो उन्हीं से है जो हमारे हमकदम हैं, हमसफ़र हैं...
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