शनिवार, 16 जुलाई 2011

"माँ"

माँ !
एक ओस की बूंद, 
जिसमे चमक सूर्य सी, 
शीतलता अमृत सी, 
तरल सी फिर भी समग्र, 
माँ !
घने पेड़ की छाया सी, 
बयार एक मंद मंद सी, 
मीठी नदी सी, 
माँ !
पास हो, ना हो, 
बस हो, चाहे जहाँ भी हो, 
एक ऐसा सहारा सी, 
माँ !
सूखी  रोटी पर गुड़  की  डली  सी,
जिसके होने पे,
लगे सारी दुनिया अपनी सी, 
और ना होने पे,
कोई ना अपना सा, 
माँ !
तुम बस माँ हो, 
माँ !!

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत जोरदार प्रस्तुति ||
    माँ सब की माँ
    सादर प्रणाम ||

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  2. बहुत सुन्दर .....माँ को समर्पित इस रचना के लिए बहुत -बहुत बधाई

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  3. मां को समर्पित सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  4. माँ को समर्पित रचना जो मन को गहराई तक छू गयी !

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  5. वाकई उनका कोई मुकाबला नहीं ...... वे हैं वहीँ सब कुछ है ...
    शुभकामनायें !

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  6. सच है माँ की व्याख्या नहीं हो सकती... मां तो बस मां है॥

    एक सुझाव--- फ़ांट थोडा बडा रखिए :)

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  7. माँ के प्रति आस्था बढ़ जाती है...जब पत्नी का बच्चों के प्रति त्याग देखता हूँ...

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  8. amit ji..

    achank aapke blog pr maa kavita pdne mili ..
    dilkochhu gai ,,badhai,,,,,
    prakashpralay ktni m.p.....

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