एक ओस की बूंद,
जिसमे चमक सूर्य सी,
शीतलता अमृत सी,
तरल सी फिर भी समग्र,
माँ !
घने पेड़ की छाया सी,
बयार एक मंद मंद सी,
मीठी नदी सी,
माँ !
पास हो, ना हो,
बस हो, चाहे जहाँ भी हो,
एक ऐसा सहारा सी,
माँ !
सूखी रोटी पर गुड़ की डली सी,
जिसके होने पे,
लगे सारी दुनिया अपनी सी,
और ना होने पे,
कोई ना अपना सा,
माँ !
तुम बस माँ हो,
माँ !!
bahut sundar amit ji ..maa ki tulna kisi se nahi ki ja sakti
जवाब देंहटाएंगहरी आत्मीय अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत जोरदार प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंमाँ सब की माँ
सादर प्रणाम ||
बहुत सुन्दर .....माँ को समर्पित इस रचना के लिए बहुत -बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सर.
जवाब देंहटाएंसादर
मां को समर्पित सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंमाँ को समर्पित रचना जो मन को गहराई तक छू गयी !
जवाब देंहटाएंवाकई उनका कोई मुकाबला नहीं ...... वे हैं वहीँ सब कुछ है ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
सच है माँ की व्याख्या नहीं हो सकती... मां तो बस मां है॥
जवाब देंहटाएंएक सुझाव--- फ़ांट थोडा बडा रखिए :)
sahi kaha aapne maa to bas maa hai... shabdon se pare...achha laga apko padkar
जवाब देंहटाएंमाँ के प्रति आस्था बढ़ जाती है...जब पत्नी का बच्चों के प्रति त्याग देखता हूँ...
जवाब देंहटाएंamit ji..
जवाब देंहटाएंachank aapke blog pr maa kavita pdne mili ..
dilkochhu gai ,,badhai,,,,,
prakashpralay ktni m.p.....