शुक्रवार, 20 मई 2011

"ज़ख्म" या "स्मृति चिन्ह"

क्यूँ,
तुमने,
चुराके अश्क,
मोहब्बत की आँखों से,
सजा दिए,
सितारे फलक पे |

गर इतना ही चाहा था,
दिल से मुझे,
रहते  खामोश ही,
तुम,
मगर, 
कभी ठहरी साँसों को,
जुम्बिश तो दी होती | 

प्यार का समंदर,
क्यूँ दिखाया मुझे,
और, 
छोड़ दिए  निशान,
इतने गहरे,
सीने पे |

खुदा जाने,
अब, 
मुलाकात हो,
ना हो |

ज़ख्म तो भर जायेंगे,
निशानों के सीने पे, 
पर अक्स उभरेगा,
उन ज़ख्मों का,
तुम्हारे भी,
सीने पे |

खुदा,
सलामत रखे,
तुम्हे,
और,
तुम्हारी आशनाई को |

मै,
बस,
कुरेदता रहूँगा,
उन ज़ख्मों को,
(समझ 'स्मृति चिन्ह') 
तुम्हारे ही,
तबस्सुम से | 

24 टिप्‍पणियां:

  1. खुदा,
    सलामत रखे,
    तुम्हे,
    और,
    तुम्हारी आशनाई को |
    bahut hi bhawatmak

    जवाब देंहटाएं
  2. How beautifully the feelings are expressed !...You made me emotional Amit ji.

    जवाब देंहटाएं
  3. आन्तरिक भावों के सहज प्रवाहमय सुन्दर रचना....

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  5. ज़ख्म तो भर जायेंगे,
    निशानों के सीने पे,
    पर अक्स उभरेगा,
    उन ज़ख्मों का,
    तुम्हारे भी,
    सीने पे |

    ..बहुत खूब! कोमल अहसासों को शब्दों में किस खूबसूरती से पिरोया है..बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  6. सामने समुन्दर, प्यास इन्तिहा,
    न हमने न उनने कुछ कहा।

    जवाब देंहटाएं
  7. ज़ख्म तो भर जायेंगे,
    निशानों के सीने पे,
    पर अक्स उभरेगा,
    उन ज़ख्मों का,
    तुम्हारे भी,
    सीने पे |
    खुदा,
    सलामत रखे,
    तुम्हे,
    और,
    तुम्हारी आशनाई को |

    गहरे भाव लिए एक सुन्दर रचना ....

    जवाब देंहटाएं
  8. खुदा,
    सलामत रखे,
    तुम्हे,
    और,
    तुम्हारी आशनाई को -- ज़ख़्म और स्मृतिचिन्ह दोनो ही मन को भावुक कर देते है...

    जवाब देंहटाएं
  9. ज़ख्म तो भर जायेंगे,
    निशानों के सीने पे,
    पर अक्स उभरेगा,
    उन ज़ख्मों का,
    तुम्हारे भी,
    सीने पे |

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत खूब लिखा है आपने दिल के दर्द को ...दर्द कि भाषा बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  11. क्यूँ,
    तुमने,
    चुराके अश्क,
    मोहब्बत की आँखों से,

    सजा दिए,
    सितारे फलक पे |
    गर इतना ही चाहा था,
    दिल से मुझे,
    रहते खामोश ही,
    तुम,
    मगर,
    कभी ठहरी साँसों को,
    जुम्बिश तो दी होती |


    सुन्दर अभिव्यक्ति ...!

    जवाब देंहटाएं
  12. प्रियवर अमित जी
    सादर अभिवादन !

    बहुत तबीअत से कलम चलाते हैं आप भी ! :)
    मै,
    बस,
    कुरेदता रहूंगा,
    उन ज़ख़्मों को,
    समझ 'स्मृति चिन्ह'
    तुम्हारे ही,
    तबस्सुम से …


    बहुत ख़ूब कहा है आपने !
    महबूब के दिए हुए ज़ख़्म स्मृति चिन्ह !
    वाह वाऽऽह !
    मुबारकबाद जनाब !

    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    जवाब देंहटाएं
  13. जितनी बार कुरेदा जायेगा ..कुछ नायब ही निकलेगा ..बेहद खुबसूरत

    जवाब देंहटाएं
  14. महबूब के दिए हुए ज़ख़्म स्मृति चिन्ह !.बेहद खुबसूरत.....

    जवाब देंहटाएं
  15. खुदा,
    सलामत रखे,
    तुम्हे,
    और,
    तुम्हारी आशनाई को |
    kya sunder bhav hain

    zakhmon ko duredna bhi prem uffffff prem ki intihan
    saader
    rachana

    जवाब देंहटाएं