सजा दिए,
सितारे फलक पे |
गर इतना ही चाहा था,
दिल से मुझे,
रहते खामोश ही,
तुम,
मगर,
मगर,
कभी ठहरी साँसों को,
जुम्बिश तो दी होती |
प्यार का समंदर,
क्यूँ दिखाया मुझे,
और,
छोड़ दिए निशान,
इतने गहरे,
सीने पे |
सीने पे |
खुदा जाने,
अब,
मुलाकात हो,
ना हो |
ज़ख्म तो भर जायेंगे,
निशानों के सीने पे,
पर अक्स उभरेगा,
उन ज़ख्मों का,
तुम्हारे भी,
सीने पे |
सीने पे |
खुदा,
सलामत रखे,
तुम्हे,
और,
तुम्हारी आशनाई को |
मै,
बस,
कुरेदता रहूँगा,
उन ज़ख्मों को,
(समझ 'स्मृति चिन्ह')
मै,
बस,
कुरेदता रहूँगा,
उन ज़ख्मों को,
(समझ 'स्मृति चिन्ह')
तुम्हारे ही,
तबस्सुम से |
बहुत सुंदर संवेदनशील भाव....
जवाब देंहटाएंbhut hi khubsurti se shabdo ko sajaya hai apne..
जवाब देंहटाएंउत्तम रचना
जवाब देंहटाएंखुदा,
जवाब देंहटाएंसलामत रखे,
तुम्हे,
और,
तुम्हारी आशनाई को |
bahut hi bhawatmak
How beautifully the feelings are expressed !...You made me emotional Amit ji.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
Amit ji ...kyakahun ..nishabd hun....
जवाब देंहटाएंआन्तरिक भावों के सहज प्रवाहमय सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
जवाब देंहटाएंYou coin words so nicely and make them really expressive !!!!!!!
जवाब देंहटाएंज़ख्म तो भर जायेंगे,
जवाब देंहटाएंनिशानों के सीने पे,
पर अक्स उभरेगा,
उन ज़ख्मों का,
तुम्हारे भी,
सीने पे |
..बहुत खूब! कोमल अहसासों को शब्दों में किस खूबसूरती से पिरोया है..बहुत सुन्दर
सामने समुन्दर, प्यास इन्तिहा,
जवाब देंहटाएंन हमने न उनने कुछ कहा।
बहुत ही सुन्दर... कुछ अलग सी
जवाब देंहटाएंज़ख्म तो भर जायेंगे,
जवाब देंहटाएंनिशानों के सीने पे,
पर अक्स उभरेगा,
उन ज़ख्मों का,
तुम्हारे भी,
सीने पे |
खुदा,
सलामत रखे,
तुम्हे,
और,
तुम्हारी आशनाई को |
गहरे भाव लिए एक सुन्दर रचना ....
खुदा,
जवाब देंहटाएंसलामत रखे,
तुम्हे,
और,
तुम्हारी आशनाई को -- ज़ख़्म और स्मृतिचिन्ह दोनो ही मन को भावुक कर देते है...
ज़ख्म तो भर जायेंगे,
जवाब देंहटाएंनिशानों के सीने पे,
पर अक्स उभरेगा,
उन ज़ख्मों का,
तुम्हारे भी,
सीने पे |
बहुत खूब लिखा है आपने दिल के दर्द को ...दर्द कि भाषा बहुत खूब
जवाब देंहटाएंक्यूँ,
जवाब देंहटाएंतुमने,
चुराके अश्क,
मोहब्बत की आँखों से,
सजा दिए,
सितारे फलक पे |
गर इतना ही चाहा था,
दिल से मुझे,
रहते खामोश ही,
तुम,
मगर,
कभी ठहरी साँसों को,
जुम्बिश तो दी होती |
सुन्दर अभिव्यक्ति ...!
प्रियवर अमित जी
जवाब देंहटाएंसादर अभिवादन !
बहुत तबीअत से कलम चलाते हैं आप भी ! :)
मै,
बस,
कुरेदता रहूंगा,
उन ज़ख़्मों को,
समझ 'स्मृति चिन्ह'
तुम्हारे ही,
तबस्सुम से …
बहुत ख़ूब कहा है आपने !
महबूब के दिए हुए ज़ख़्म स्मृति चिन्ह !
वाह वाऽऽह !
मुबारकबाद जनाब !
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
जितनी बार कुरेदा जायेगा ..कुछ नायब ही निकलेगा ..बेहद खुबसूरत
जवाब देंहटाएंएक अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंगहन भावों की मार्मिक अभिव्यक्ति .....
जवाब देंहटाएंमहबूब के दिए हुए ज़ख़्म स्मृति चिन्ह !.बेहद खुबसूरत.....
जवाब देंहटाएंखुदा,
जवाब देंहटाएंसलामत रखे,
तुम्हे,
और,
तुम्हारी आशनाई को |
kya sunder bhav hain
zakhmon ko duredna bhi prem uffffff prem ki intihan
saader
rachana