इस धरती की सारी की सारी गतिविधियों के संपन्न होने का केवल एक ही कारण है और वह है:दो गतियों, दो स्तरो या दो स्थितियों में विभवांतर होना अथवा gradient होना,या differential होना।किसी भी सिस्टम के सारे अवयवों का प्रयास रहता है कि उनके आपस में differential of status न्यूनतम हो या शून्य ही हो जाय।उसी की कोशिश मे static भी dynamic हो जाता है । जैसे ऊपर से नीचे वस्तुओं के गिरने का कारण ऊंचाई में अंतर होना,पानी का बहाव , हवा का बहाव,ऊष्मा का बहाव,विद्युत का बहाव अथवा सारे भौगोलिक परिवर्तन विभिन्न स्थितियों मे differential के कारण ही होते हैं।
इसी प्रकार भावनाओं,विचारों का भी प्रवाह हो सकता है। इसी लिये हिन्दू धर्म में सत्संग को बहुत महत्व दिया गया है।बस करना केवल इतना सा है कि एक व्यक्ति के मन या दिल में प्यार या स्नेह,आस्था,प्रेम इतना लबालब भरा हो कि दूसरे व्यक्ति के मन मे वो प्यार osmosis से प्राविहित हो जाय।शायद गले मिलने का चलन भी इसीलिये किया गया होगा कि बिना कुछ बोले, सुने osmosis से ही प्रेम एक दूसरे के दिलों मे बहने लगे।इस प्रक्रिया मे उच्चरक्त चाप भी अपने आप कम रक्त चाप वाले से मिलने पर औसत हो सकता है।विज्ञानं की जितनी भी परिभाषाएं अथवा विश्लेषण हैं सब मनुष्य पर ही आधारित हैं।
ओशो ने भी इसीलिये सत्संग / संसर्ग को अत्यंत महत्व दिया था।
कुछ लोग इसी को टच थेरेपी भी कहते हैं और जादू की झप्पी भी।
That's a good insight and different view to look at the world. Good one.
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया जानकारी दी है।
जवाब देंहटाएंअधीर साहब और वंदना जी बहुत बहुत धन्यवाद ।
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