समय को परिभाषित करना सहज नही है।स्टेफ़ेन हॉकिन्ग साहब ने तो इस पर अनेक ग्रंथ लिख डाले है,पर सरल भाषा मे दो घटनाओं के बीच के अंतराल को समय कह सकते हैं।या यूं कहा जाय कि सारी घटनायें समय के एक बहुत बड़े कैनवस पर चित्रित होती रहती हैं।कुछेक का मानना है कि समय भी दो तरह का होता है,एक अच्छा समय,दूसरा बुरा समय।जबकि समय तो दर्पण की तरह होता है ना अच्छा,ना बुरा ,वह तो आपका ही प्रतिबिम्ब है। पलक झपकाने से पल बीत जाता है और सांस रोक लेने से समय रुक सा जाता है।
जीवनकाल एक निश्चित लम्बाई की "समय"की सुरंग है।बस इसी सुरंग से गुजरते हुए मनुष्य अपने सारे कार्य सम्पादित करता रहता है और जब सुरंग खत्म समय खत्म।मगर इस सुरंग के मार्ग से गुजरते हुए आप बीते समय की अवधि को रीचार्ज भी कर सकते हैं ।यादें,अच्छी यादें,बचपन की यादें,मां की यादें,शरारतों की यादें,महबूब की यादों की यादें,अपनों को याद रखने की ढाढस बंधाने की यादें,नन्ही उंगलियों से तितली पकड़ कर टिफ़िन बॉक्स मे बंद कर लेने की यादें,आंख में आंसू भरे भरे हंस पड़ने की यादें और ना जाने क्या क्या ,यह सब याद आने से समय जैसे बीता हुआ सा लगता ही नही है,गोया समय को भी रीचार्ज कूपन से चार्ज कर लिया गया हो। या कह सकते है कि समय की सुरंग से गुजरते हुए अपने आस पास छोटी छोटी तमाम सुरंगे यादों की और बनती जाती हैं जिससे रास्ता तनिक और लम्बा हो जाता है।
हम स्नेह और दुलार का वातावरण बना कर,उनकी यादों को ही रेड कारपेट बना अपने आगे के शेष मार्ग में बिछाते हुए अपना स्वागत स्वयं क्यों ना करते चलें। फ़िर तो समय ही समय है।
Very nice insight. Samay ajeeb hota hai, pata bhi nahin chalta aur chala jata hai.
जवाब देंहटाएं॒@अधीर साहब धन्यवाद।
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