हलकी सी भी बारिश अगर लगातार हो रही हो और कार का वाइपर काम न करे ,तो फिर आँख के आगे का पूरा दृश्य धुंधला हो जाता है और आँखे बेमानी हो उठती हैं | कितनी भी ज़ोरों की बारिश हो ,वाइपर चलता रहा बस, फिर बारिश में कार चलाने का लुत्फ़ आ जाता है | देखें तो, महज दो डंडियाँ बस, लगातार पानी पोछती हुई ,कार की कीमत के आगे उन डंडियों की कीमत नगण्य ,पर वे काम न करें तो बारिश में कार बेकार |
ज़िन्दगी में भी हमारी ऐसे अक्सर बारिश होती रहती है ,कभी खुशियों की ,कभी दुखों की ,कभी धन दौलत की, अवसरों की ,कभी अभावों की | हम इन बारिशों में अक्सर अपनी ऑंखें धुंधली कर लेते हैं | हमें साफ़ साफ़ कुछ दिखाई नहीं पड़ता है और परिणाम स्वरूप कभी हर्ष के अतिरेक में और कभी विषाद के साए में अपने लक्ष्य और पथ से भ्रम-वश भटक जाते हैं और इसका भान तब होता है, जब बारिश थमती है पर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है |
ज़िन्दगी की गाड़ी चलाने का लुत्फ़ तभी आ सकता है, जब आपकी जिंदगी रुपी गाड़ी में 'विवेक' रुपी वाइपर लगा हो, जो बारिश चाहे जैसी हो बस उसे साफ़ कर आगे का रास्ता स्पष्ट करता चले | और अगर ऐसा है तो फिर खराब वाइपर वाली 'होंडा सिटी' को अच्छे वाइपर वाली मारुती '८००' भी जीवन की दौड़ में पछाड़ सकती है |
बस आवश्यकता है एक जोडी वाइपर की ,जिसमे से एक वाइपर आपका और दूसरा आपके जीवन साथी का हो | हाँ ! दोनों एक ही कला में चलने भी चाहिए नही तो उनमे आपस में टकराने का खतरा हो जाएगा और वे आपस में उलझ कर अपना कार्य करना बंद कर देंगे | फिर तो अच्छे वाइपर होते हुए भी आगे कुछ दिखाई नहीं पडेगा |
"बात तो मामूली सी है,पर है समझ से परे "
काश कोई ऐसी बरसातें साफ करता हुआ चले,
जवाब देंहटाएंबड़ा ही तार्किक आलेख..
Thoughtful....
जवाब देंहटाएंसार्थक ...विचारनीय ...बहुत सुंदर सोच परिलक्षित करता हुआ सुंदर आलेख ....!!शुभकामनायें ...
जवाब देंहटाएंगूढ़ बात कही दाम्पत्य जीवन को निशाना बनाकर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर तार्किक रचना| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंसार्थक और सामयिक प्रस्तुति, आभार.
जवाब देंहटाएंपधारें मेरे ब्लॉग पर भी और अपने स्नेहाशीष से अभिसिंचित करें मेरी लेखनी को, आभारी होऊंगा /
"बात तो मामूली सी है,पर है समझ से परे "…………इसी मे सारा सार निहित है।
जवाब देंहटाएंबारिश के मौके के उदाहरण सर्दी में निकल रहे हैं। :)
हटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकल 18/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, जिन्दगी की बातें ... !
धन्यवाद!
सटीक विश्लेषण
जवाब देंहटाएंसाफ़ देखना है तो वाइपर चाहिए ही! वर्षा हो या मुद्दा :)
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - जिन्हें नाज़ है हिंद पे वो कहाँ है ... कहाँ है ... कहाँ है - ब्लॉग बुलेटिन
जवाब देंहटाएंसमयानुसार सबकी अपनी कीमत होती है , अपना अस्तित्व होता है
जवाब देंहटाएंवाह ..बहुत सुन्दरता से आपने ज़िन्दगी की तुलना वाइपर से की है ..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है..
kalamdaan.blogspot.com
सही और सटीक बातें लिखी हैं आपने ...
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरती से वाईप किया है आपने। बेहतरीन लेख।
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा सर!
जवाब देंहटाएंसादर
विवेक रुपी वाईपर हों साथ तो बात ही क्या .. बहुत सार्थक लेख
जवाब देंहटाएंसटीक विश्लेषण।
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में जीवन का सार....
excellent...excellent...
जवाब देंहटाएंi like it very muchhhhh...
बहुत बढ़िया एवं सार्थक लेखन...
बधाई.