अमूमन मैं आफिस में 'पेन' का इस्तेमाल केवल दस्तखत करने में ही करता हूँ । उसके अलावा किसी मातहत के द्वारा टाइप कर लाई गईं पत्रावलियों पर दस्तखत करने से पहले अगर उसमें कोई गलती नज़र आ गई तो उसे दुरुस्त करने का काम हमेशा 'पेन्सिल' से करता हूँ । किसी के द्वारा किये हुए काम में अगर कोई गलती हो और अगर उसे 'पेन्सिल' से निशान लगा कर दुरुस्त कर दिया जाए तब उस काम को करने वाले को उतना बुरा नहीं लगता जितना अगर उसके द्वारा की गई गलती को 'पेन' से काट कर दर्शाया जाए ।
'पेन्सिल' से लगाए गए निशान स्थायी नहीं होते और 'रबर' से मिटाये जा सकते हैं जबकि 'पेन' से घेर देना या उसे काट कर 'पेन' से सही कर देना उस पर हंमेशा के लिए एक निशान छोड़ देता है और यही बात मनोवैज्ञानिक तौर पर काम करने वाले को चुभती है । भले ही दोनो स्थितियों में काम दुबारा ही करना पड़े परन्तु 'पेन्सिल' से इंगित की गई गलती उसे ठेस कम पहुंचाती है । बच्चों की स्कूल की कॉपी जांचते समय शिक्षकों को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए । कुछ शिक्षकों को मैंने देखा है और अनुभव भी किया है कि वे लाल स्याही से बड़ा बड़ा गोल निशान लगा कर पूरे काम की ऐसी तैसी कर डालते हैं जो बच्चे के कोमल मन पर विपरीत असर करती है । मुख्य परीक्षा के अलावा बच्चों के द्वारा किये गए काम को कभी भी लाल स्याही से तो जांचना ही नहीं चाहिए और केवल 'पेन्सिल' का ही प्रयोग किया जाए तो बहुत ही बेहतर है ।
आफिस में अपने उच्च अधिकारियों के लिए भी अगर मै कोई आंकड़े / प्रस्ताव रखना चाहता हूँ तो उसके लिए भी मै 'पेन्सिल' का ही प्रयोग करता हूँ । इससे उन्हें मेरे प्रस्ताव में तनिक कांट -छांट करने में कोई हिचक नहीं होती ।
गलतियां करना ,उन गलतियों से सीख कर आगे बढ़ना और फिर कुछ बेहतर करना यही प्रगतिशील जीवन है परन्तु किसी के द्वारा उस कार्य को अच्छी तरह से पूरा करने में कितनी गलतियां हुईं हैं और उन्हें कब कब ठीक किया गया है इसका हिसाब किताब दिखाई नहीं पड़ना चाहिए ,अन्यथा कार्य करने वाला हमेशा अपने अच्छे परिणाम से खुश होकर आगे बढ़ने की बजाय उन गलतियों को कोसता रहता है और गलतियां ढूंढने वालों की नज़र में खुद को हमेशा बौना महसूस करता रहता है जो उसके व्यक्तित्व के विकास के लिए बहुत ही घातक साबित हो सकता है । इसके विपरीत कुछ लोग हमेशा जोर शोर से यह कह कर खुश होते रहते हैं कि अगर उन्होंने गलती की तरफ ध्यान न दिलाया होता तो काम करने वाले को कुछ भी हासिल न होता ।(कुछ माँ-बाप भी अपने बच्चों के बारे में ऐसा कहते पाये जाते हैं जो उचित नहीं है ) ।
बात कुछ ख़ास तो नहीं पर अपने हाथ में 'पेन' की जगह 'पेन्सिल' पकड़ कर देखें ,अच्छा महसूस होगा ।
आज कल तो हम न ही पेन यूज करते हैं और न ही पेंसिल... कंप्यूटर के खटरागी हो गए हैं.....
जवाब देंहटाएंहाँ लेकिन अगर यूं कहें कि जिस तरह ब्लॉग में अपना लिखा कमेन्ट मिटाया जाये तो पीछे एक निशान छोड़ जाता है.... और फेसबुक पर बिना किसी निशान के मिट जाता है तो ये उदाहरण सही बैठेगा..... निशान दिखाने के लिए एक कमेन्ट लिखकर मिटा भी दिया है.... :)
सही बात है|
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा अमित जी...मगर भावनाओं के ऐसी कद्र सब नहीं करते.
जवाब देंहटाएंशायद इसी तरह हमारी रचनाओं की त्रुटि कोई जब inbox में बताते हैं (fb पर )तो उनके लिए मान और बढ़ जाता है.
सादर
अनु
यह आदर्श का उच्च पैमान है। मैं आपकी भावनाओं का सम्मान करता हूँ-ऐसा हो जाय तो कितना अच्छा हो! ऑडिटर द्वारा पेंसिल से लगाई जाने वाली आपत्ति के मूल में भी शायद यही भावना रही हो..हकीकत में होता यह है कि उच्च अधिकारी मातहत पर रोब गांठने का तनिक भी अवसर गंवाना नहीं चाहते। विद्यालयों में शिक्षक लाल स्याही से न केवल बड़ा-सा गोला बनाकर बच्चों को मर्माहत करते हैं अपितु उनके पैरेंट्स को बुलाकर लज्जित भी करते हैं। बड़ों का अहंकार और छोटों की मक्कारी दोनो कम हो और पेसिंल वाली भावना को समाज में स्थान मिले।..आमीन।
जवाब देंहटाएंकितनी सरल पर सही और विचारणीय बात ....
जवाब देंहटाएंसही कहा अमित जी
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : मकर संक्रांति और मंदार
अनुकरणीय...
जवाब देंहटाएंटोके और सुधारें जाने की पीड़ा को अस्थायी ही रखें, पेंसिल प्रयोग करें।
जवाब देंहटाएंis bhag daud bhari duniya me aise behtar vichar achcha hai sir jaari rakhe ise hum bhi fallow karte hai..............
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