'शीर्षक' लिखना लेखक के लिए एक बड़ी चुनौती होता है । पहले विचार आते हैं फिर उस विचार को विस्तार और आयाम देकर लेख / कहानी का स्वरूप बनता है । ऐसे में मन में सदा एक 'पात्र' ,'घटना' या 'कथन' बार बार उछल उछल कर सामने आता रहता है बस उसी से जन्म होता है 'शीर्षक' का । 'शीर्षक' लेख के 'सेंटर ऑफ़ मॉस' की तरह होना चाहिए कि अगर उस लेख / कहानी को 'शीर्षक' के सहारे उठा कर टांग दिया जाए तब लेख / कहानी पूरी तरह से संतुलित ही रहे ।
कुछ सिद्धहस्त लेखक पहले पूरा घटनाक्रम लिख डालते हैं फिर उससे सामंजस्य स्थापित करते हुए 'शीर्षक' को जन्म देते हैं ,परन्तु बाद में 'शीर्षक' देना तनिक मुश्किल होता है ।
'शीर्षक' पहले से तय करने के पश्चात लेख / कहानी लिखते समय उसका ताना बाना उस 'शीर्षक' के इर्द गिर्द बुनता जाता है ,जैसे मकड़ी अपने शिकार को पकड़ते ही उसके चारों ओर बड़ी तेजी से अपना जाल बिछा देती है और उसका शिकार उसकी गिरफ्त से छूट नहीं पाता। 'शीर्षक' जितना सुरक्षित होता है ,लेख पर उसका असर उतना ही अधिक गहरा होता है । 'शीर्षक' एक बड़ी सी 'शिरोरेखा' ही है जिस पर उस 'लेख' के सभी शब्द टंगे होते हैं ।
'शीर्षक' तो इत्र की शीशी के ढक्कन की तरह होना चाहिए कि ज़रा सा खोला नहीं कि पूरा माहौल महक से वाकिफ हो जाए । कुछ 'शीर्षक' ऐसे होते हैं जिनका विषय से कोई लेना देना नहीं होता । इन्हें लेखक केवल आकर्षण हेतु लिख देते हैं परन्तु दो चार पन्ने पढ़ते ही समझ आ जाता है कि 'शीर्षक' का लेख से उतना ही कम सम्बन्ध है जितना कथाकार का कथानक से । लेखक जितना अधिक अपनी कहानी की वास्तविकता से जुड़ा होगा उसका 'शीर्षक' उतना ही अधिक प्रभावशाली होगा ।
लेख / कहानी से भिन्न "कविता" का शीर्षक 'विंड चाइम' की डोरी की तरह होना चाहिए जिसके सहारे पूरी "कविता" लटक कर हवा में लहराती रहे और मधुर संगीत उत्पन्न करती रहे ।
अब के कुछ लेखक / लेखिका , कवि / कवियत्री ऐसे भी हैं जो लेखन के प्रारम्भ में 'शीर्षक' तय तो कर लेते हैं परन्तु प्रकाशन से पहले ही कथानक का रहस्य खुल न जाए अथवा उस 'शीर्षक' का अन्य लेखों में दुरूपयोग न हो जाए इस भय से उस 'शीर्षक' का खुलासा नहीं करते ।
'शीर्षक' तो लेखक / कवि का अपने लेख / कविता के लिए एक घूँघट की तरह होता है जो उसे पूरी तरह ढके तो रहता है परन्तु पैनी नज़र वालों से अपना रहस्य उद्घाटित भी कराता रहता है ।
अरे वाह!!!आपकी ऐसी Observations कमाल की होती हैं...
जवाब देंहटाएंये बहुत सही कहा है "शीर्षक' तो इत्र की शीशी के ढक्कन की तरह होना चाहिए कि ज़रा सा खोला नहीं कि पूरा माहौल महक से वाकिफ हो जाए ।"
:)
वैसे लेखकों या कविओं की तो बात वही जाने, हम तो छोटे मोटे नोट्स ब्लॉग में शेयर कर के खुश होते हैं...और अगर अपनी बात करूँ तो किसी पोस्ट का शीर्षक देने में मैं बहुत कमज़ोर हूँ...पहले पूरी पोस्ट लिख लेता हूँ उसके बाद शीर्षक देता हूँ, और पूरी पोस्ट लिखते वक़्त भी दिमाग के एक कोने में बात चलती रहती है की इसका शीर्षक क्या होगा? और कुछ समझ नहीं आता...फिर सोचता हूँ, एक बार पूरी कर लूँ तब देखूंगा....और हर बार शीर्षक एकदम रेंडमली निकल आता है अचानक ही...और बाद में सोचता हूँ तो लगता है, शीर्षक ठीक ठाक ही है मेरा...
जवाब देंहटाएंSame pinch ..:)
हटाएंजय श्री राम
हटाएंबोलिये बाबा अमितानन्द की जय!
जवाब देंहटाएंकविताओं में तो शीर्षक बाद में दिया जा सकता है मगर कहानी का शीर्षक पहले से ही तय करना बेहतर है ,ऐसा मुझे लगता है.....जिससे शीर्षक की सार्थकता बनी रहे.
जवाब देंहटाएंजब मैंने अपनी कहानी केतकी लिखनी शुरू की थी तब लड़की का नाम सोचा,ज़ेहन में केतकी आते ही बहुत सारे बदलाव कहानी में आये...नायिका का चरित्र ही काफ़ी हद तक बदल गया....
हमारे उपन्यास का शीर्षक तो पूरे उपन्यास का सार है इसलिए राज़ बना रहने दिया जाय :-)
(इस पोस्ट की रॉयल्टी हमसे भी शेयर की जाए pls:-)
सादर
अनु
वह कहां जा रहा है और क्या कर रहा है उसने कहा कि मैं
हटाएंमैं हमेशा आखरी में सोचती हूँ शीर्षक ...क्यों कि सोचकर कुछ नहीं लिखती ...जो मन में आता है बस लिखे देती हूं ...और हाँ खास बात तो ये भी है कि मैं लेखक / लेखिका , कवि / कवियत्री ..इनमें से कुछ भी नहीं हूँ । :-P वैसे पोस्ट पढ़कर समझ में आया कि शीर्षक कैसा महकना चाहिए ...
जवाब देंहटाएं:)
हटाएंशीर्षक ढूंढना सबसे मुश्किल काम है पर आजतक मैंने कभी भी पहले से शीर्षक तय नहीं किया .हाँ, आलेख/कहानी पूरी हो जाने के बाद अक्सर दोस्तों की मदद ली है ( कई बार उनके सुझाव रिजेक्ट भी कर दिए हैं..और कभी पसंद आ गए तो बिना फेर बदल किये रख भी लिए हैं )
जवाब देंहटाएंशायद सबका अपना अपना तरिका है .
Hello sister kya hum hindi me likhi khani me english words use kr skte hai kya
हटाएंJese hellow dear
Aap kha jaa rhe ho
Isse humari khani pr koi mis effect to nhi pdegaa naa
कहानी से भिन्न "कविता" का शीर्षक 'विंड चाइम' की डोरी की तरह होना चाहिए जिसके सहारे पूरी "कविता" लटक कर हवा में लहराती रहे और मधुर संगीत उत्पन्न करती रहे ।
जवाब देंहटाएंक्या बात है, बहुत पसंद आई आपकी ये बात । और ये भी कि शीर्षक के सहारे लेख संतुलित होकर टंगा रहे ।
बहुत काम की बात है.प्रायः शीर्षक आलेख से संबंधित ही होता है .
जवाब देंहटाएंलिखने के पहले एक शीर्षक रख लेता हूँ, लिखते के बाद पुनः सोचता हूँ कि ठीक रखा या नहीं, संशोधन कर लेता हूँ।
जवाब देंहटाएंहम तो अपनें ब्लॉग की पोस्ट पहले लिख डालते हैं उसके बाद ही शीर्षक देते हैं !
जवाब देंहटाएंजैसे मैं हाईस्कूल के दौरान इस पोस्ट का शीर्षक देता -
जवाब देंहटाएंशीर्षक का शीर्षासन :-)
शीर्षक देना सबसे कठिन पर बहुत महत्वपूर्ण कार्य होता है |वही रचना का आकर्षण बढाता है |
जवाब देंहटाएंआशा
शीर्षक का आवरण सुन्दर होने से आकर्षित तो अवस्य करती है किन्तु आकर्षण का स्थाइत्व तो उसके कथानक में ही होता है …………. सुन्दर विवेचना
जवाब देंहटाएंbehtreen post...
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बेहतरीन शब्द चयन।
जवाब देंहटाएंशीर्षक jo ki kahani ka ek mukhay bhag hai mere hisab se शीर्षक aisa hona chahiye jise dekh kar lge ki kahani me kuchh to baat hai aur padhane ka man kar de
जवाब देंहटाएंशीर्षक के विना कोई रचना केतु की तरह केवल धड़ से नीचे होगी।
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