"एक मुलाक़ात ....ठण्ड में उनसे ........"
हथेलियाँ उनकी ,दस्तानों सी थी ,हाथ जो रखे ,गरम हो गए ।गुनगुनी सी ,निगाहें उनकी ,नरम धूप सी ,कुछ यूं थी,पड़ी जब भी .
मुझ पर ,
ख़याल उन्ही के ,
और सुर्ख हो गए ।
वो बोल तो रहे थे ,
न जाने क्या क्या ,
हम तो गुम थे ,
भाप के बादलों में,
जो उठ रहे थे ,
लबों से उनके।
कविता अच्छी है लेकिन ये बताओ कि ये सब कब हुआ? कहां हुआ? ’उनकी’ कौंन हैं?
जवाब देंहटाएं:-) ऐसे ही कोमल ख़यालों की गर्मी बने रहे...
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
खूबसूरत खयाल ।
जवाब देंहटाएंबड़े खूबसूरत से ख्याल हैं... सर्दी में नर्म कुनकुनी धूप जैसे ... शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंअहसास सर्दी में नरम धूप से .
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंbehtreen....
जवाब देंहटाएंअहसासों की लाज़वाब अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंइस ठंड में कुछ भाव गुनगुने से।
जवाब देंहटाएंनिवेदिता की याद आ रही है......
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
बहुत सुन्दर कविता....
जवाब देंहटाएंकोमल भावों की अभिव्यक्ति....
अनु
वह बहुत सुन्दर अभीव्यक्ति | आभार |
जवाब देंहटाएंTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
good lines.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .
जवाब देंहटाएंवाह अमित जी बहुत बढ़िया गुनगुनी सी ही रूमानियत नजर आई आपकी इस रचना में :-)
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना "khyal" पर भी अपना ख्याल दीजियेगा :-) लिंक दे रही हु
http://parulpankhuri.blogspot.in/2013/02/blog-post_4266.html