शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

" न तीन में, न तेरह में .........."


किसी नगर में एक धनी सेठ रहता था । उसके पास धन दौलत की कोई कमी न थी । वह सेठ परिवार से भी सुखी एवं संतुष्ट था । तभी उस नगर में एक गणिका आकर रहने लगी । वह बहुत खूबसूरत थी । उसके सौन्दर्य की चर्चा चारों तरफ फैलते फैलते उस सेठ तक भी पहुंची । उसको देखने की लालसा में वह सेठ भी उस गणिका के पास जाने लगा । धीरे धीरे वह गणिका प्रसिद्द होते होते नगर वधू बन गई । उसका सामीप्य पाने की लोगों में होड़ लगने लगी ।

सेठ उसे मन ही मन बहुत चाहने लगा । धन की कोई कमी तो थी नहीं , सो दोनों हाथों से उस पर लुटाने लगा । नगरवधू भी उससे बहुत प्यार जताती थी । एक दिन सेठ अचानक बहुत बीमार हो गया । उसे नगर वधू की याद सता रही थी । किसी भी कीमत पर वह सेठ उस नगरवधू से मिलना चाह रहा था । उसने अपने मुनीम को बुलाया और उससे कहा कि जाकर नगर वधू को बुला लाओ । उसे मेरा नाम मत बताना ,बस इतना कहना कि  जिसको तुम पूरे नगर में सबसे अधिक प्यार करती हो ,उसकी  तबियत ख़राब है ,उसी ने बुलाया है ।

मुनीम सेठ का सन्देश लेकर नगर वधू के पास पहुंचा और उससे कहा कि , तुमको जो सबसे अधिक प्यार करता  हो उसने तुम्हे याद किया है । इस पर वह नगर वधू ,नहीं समझ पाई । तब फिर मुनीम ने कहा कि अरे , जिसे पूरे नगर में तुम सबसे अधिक चाहती हो, उसका नाम लो, तब समझ आ जाएगा । इस पर उस नगर वधू ने तीन व्यक्तियों के नाम लिए परन्तु उन तीन नामों में उस सेठ का नाम नहीं था । इस पर मुनीम ने पुनः उससे वही बात दोहराई ,अरे वह व्यक्ति जो स्वयं भी तुमसे सबसे अधिक प्यार करता है , उसी ने तुम्हे बुलाया है । इस बार नगर वधू ने तेरह व्यक्तियों के नाम लिए । उन तेरह नामों में भी उस सेठ का नाम नहीं था । अपने सेठ का नाम न सुनकर मुनीम अपने सेठ के पास लौट आया ।

लौट कर उसने सेठ से कहा, आपका नाम न तीन में है , न तेरह में । आप बेकार उसके चक्कर में पड़  कर अपना परिवार , धन ,समय और संस्कार सब नष्ट कर रहे हैं  । यह सुनकर और जानकार सेठ के ज्ञान चक्षु खुल गए और वह उस नगर वधू के मोह से निकल गया और पुनः अपने परिवार में आनन्द से रहने लगा ।

तभी से यह मुहावरा प्रचलित हो गया , " न तीन में न तेरह में " ।

12 टिप्‍पणियां:

  1. अरे क्या सच्ची??? यूँ बना मुहावरा???
    बहुत ही बढ़िया कहानी....

    अनु

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  2. .....बाद में इस घटना के बारे में उन तमाम लोगों ने अनेक किस्से सुने-सुनाये जो न तीन में थे न तेरह में। :)

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  3. आपकी सन (20)13 की पोस्‍ट पर यह तीसरा इन्‍द्राज.

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  4. इस तीन तेरह से निकलना ही अच्छा है...मुहावरा इस घटना की याद दिलाता रहेगा लोगों को।

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  5. :) बहुत सही रहा यह प्रचलन .... सेठ जैसे समझदार सुबह का भुला जैसा हों तो क्या कहने

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  6. बहुत रोचक कहानी है... तीन तेरह नौ अठारह कैसे बनी ये भी बताइयेगा कभी :)

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  7. आज इस कहावत के पीछे की कहानी मालूम हुई .

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