शनिवार, 31 मार्च 2012

" मूर्ख दिवस........"



'मूर्ख दिवस' से तो बचता रहा,
पर तमाम रातें मूर्ख बनता रहा,
उनकी एक झलक की खातिर,
छत पे नंगे पाँव टहलता रहा,
कवि बना और बना कभी शायर,
खुद को दीवाना समझता रहा,
वो खेलते रहे मुझसे नाखूनों से,
और मै ज़ख्म देख हंसता रहा,
कितनी रातें, तारे कितने,
मेरे सफों पे,
उतरे  कितने चाँद,
कभी सुर्ख कभी स्याह,
लफ़्ज़ों के बाबत ,
बस कर दिया, 
एक दिन,
मेरे नाम |
.
.
.
" मूर्ख दिवस "


               
                   " कोई भी मूर्ख नहीं होता ,बस चाहत में वो तो स्वयं मूर्ख बन अपने 'प्यार'  को खुश देखना चाहता है ,अगर उसके 'प्यार ' को उसी में ख़ुशी मिलती है ...." 

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया..........
    सच कहा...कोई मूर्ख नहीं होता....दिखावा करता है मूर्खता का.

    बहुत सुन्दर रचना.
    सादर
    अनु

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  2. " कोई भी मूर्ख नहीं होता ,बस चाहत में वो तो स्वयं मूर्ख बन अपने 'प्यार' को खुश देखना चाहता है ,अगर उसके 'प्यार ' को उसी में ख़ुशी मिलती है ...."

    Sunder Panktiyan.... Is vichar se bhi poorn sahmati....

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  3. " कोई भी मूर्ख नहीं होता ,बस चाहत में वो तो स्वयं मूर्ख बन अपने 'प्यार' को खुश देखना चाहता है ,अगर उसके 'प्यार ' को उसी में ख़ुशी मिलती है ...."

    bilkul sahi hai... Agree wid u... :)

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  4. कितनी कुर्बानियां की अपने अस्तित्व के लिये। :)

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  5. वाह अमित जी
    बहुत बढ़िया ............मुर्ख दिवस की शुभ कामनाए

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  6. पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...

    ....... रचना के लिए बधाई स्वीकारें.

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  7. हमेशा ही मूर्ख बनते रहे ....
    शुभकामनायें आपको !

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  8. वाह जी...बहुत खूब...वैसे मूर्ख दिवस की बधाई. :)

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  9. हम भी इसी लिए चुप करके मूर्ख बनते ही आ रहे हैं ....

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  10. बहुत दिलचस्प ...
    मूर्ख बन कर प्रेम मिल जाए तो कोई मुर्ख क्यूँ न कहलाये :)

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