हर बात पे महके हुए जज़बात की खुशबू,
याद आई बहुत, पहली मुलाक़ात की खुशबू,
होठों में अभी फूल की, पत्ती की महक है,
साँसों में बसी है उनसे मुलाक़ात की खुशबू,
आंखें कहना चाहती थीं वो तमाम बातें,
पर लब थे कि उलझे रहे निगाहों में उनकीं,
दिल था कि तजबीजता रहा ख़्वाब की हकीकत,
और ख़्वाब थे कि बेताब, होने को हकीकत,
वक्त था कि कुछ ठहरा ही नहीं उधर ,
बिखर गई कुछ बातें खुशबू सी मगर,
यादों के सहारे पहले भी जिए थे,
फिर संजों लायें हैं यादें ही उनकीं |
उन्हें तो पढ़ना भी आसान न था ,
उनपे अब लिखना भी मुश्किल हुआ है ,
इबारत सी बन गई वो ज़िन्दगी की मेरी,
इबादत ही हो गई अब ज़िन्दगी की मेरी |
सुकोमल भावनाए !
जवाब देंहटाएंमिलन के पल और अरमानों का गुबार।
जवाब देंहटाएंइबारत सी बन गई वो ज़िन्दगी की मेरी,
जवाब देंहटाएंइबादत ही हो गई ज़िन्दगी की मेरी | प्रेम से सरोबर अभिवयक्ति......
प्यार जब इबादत बन जाए तो एक-दुसरे में ईश्वर के दर्शन होने लगते हैं।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंvery sweet.
जवाब देंहटाएंखुबसूरत एहसास ..
जवाब देंहटाएंइबादत सी ही रचना.
जवाब देंहटाएंAti sundar abhivyakti !!!!! ehsaas se bhara hui rachna !!!!
जवाब देंहटाएं:) sahi kaha... ibadat ban gayee ye to:)
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत अहसास :))
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...!!
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