"शब्द भीतर रहते हैं तो सालते रहते हैं, मुक्त होते हैं तो साहित्य बनते हैं"। मन की बाते लिखना पुराना स्वेटर उधेड़ना जैसा है,उधेड़ना तो अच्छा भी लगता है और आसान भी, पर उधेड़े हुए मन को दुबारा बुनना बहुत मुश्किल शायद...।
"तुम्हारे पास आता हूँ तो साँसें भीग जाती हैं,
मुहब्बत इतनी मिलती है कि आँखें भीग जाती हैं,
तबस्सुम इत्र जैसा है हँसी बरसात जैसी है,
तुम जब भी बात करती हो तो बातें भीग जाती हैं"
वाह!!
वाह!!
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