शुक्रवार, 26 जून 2020

बेबाक लड़की..."

बेबाक ही तो थी ,
वह दो चोटी वाली ।
रास्ते के पत्थर को ,
खेलती फुटबॉल सा ।
बारिश में दे देती ,
छाता किसी भी ,
अनजान आदमी को ।
बच्चों के झगडे में ,
सरपंच थी वह ।
पापा की अपने ,
दवा थी वह ,
और माँ की तो दुआ ।
उसके होते छत पर ,
लूट न सका ,
कटी पतंग कोई ।
और आज ,
वो खुद ,
एक कटी पतंग ।
थी अब एक ,
वो विधवा ,
कच्ची उम्र की ।

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