शुक्रवार, 26 जून 2020

बेबाक लड़की..."

बेबाक ही तो थी ,
वह दो चोटी वाली ।
रास्ते के पत्थर को ,
खेलती फुटबॉल सा ।
बारिश में दे देती ,
छाता किसी भी ,
अनजान आदमी को ।
बच्चों के झगडे में ,
सरपंच थी वह ।
पापा की अपने ,
दवा थी वह ,
और माँ की तो दुआ ।
उसके होते छत पर ,
लूट न सका ,
कटी पतंग कोई ।
और आज ,
वो खुद ,
एक कटी पतंग ।
थी अब एक ,
वो विधवा ,
कच्ची उम्र की ।

4 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२६ -०६-२०२०) को 'उलझन किशोरावस्था की' (चर्चा अंक-३७४५) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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  2. बहुत ही उम्दा लिखावट ,बहुत आसान भाषा में समझा देती है आपकी ये ब्लॉग धनयवाद इसी तरह लिखते रहिये और हमे सही और सटीक जानकारी देते रहे ,आपका दिल से धन्यवाद् सर
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