सोमवार, 3 जनवरी 2011

"तुम पहले जैसे हो जाओ"

अबोध सौन्दर्य था,
हठ था बाल सुलभ,
अबोध थी चितवन,
आंखे निहारूं तो कपोल सुर्ख,
कपोल छूं भर लूं
तो लरज उठते थे होंठ,
चॊंच लड़ाती थी बेवजह,
गलती खुद की फ़िर भी,
मान मनउव्वल मेरे हिस्से,
हां  सहेजा हमेशा मुझे,
कॉपी राइट की ही तरह,
ओझल हुआ तो बोझिल किया,
आंसुओं से,
मगर सच तो यह है कि,
थी तुम जैसी भी,
मन  को अच्छा लगता था,
पर अचानक यह क्या हुआ,
क्यों हो गया ऐसा,
ऐसी बेरुखी,
"कारण" जो भी हो,
मै तो वह "कारण" नही,
इल्तिजा समझ लो इसे,
"तुम पहले जैसे हो जाओ"।

8 टिप्‍पणियां:

  1. प्यार की गहराई है ये..बहुत ही सुंदर...आपकी लेखनी में गजब का सम्मोहन है...

    नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए...

    *काव्य- कल्पना*:- दर्पण से परिचय

    *गद्य-सर्जना*:-जीवन की परिभाषा…..( आत्मदर्शन)

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  2. सुन्दर भाव लिए रचना |बधाई |आपके ब्लॉग पर आने का पहला अवसर है |नव वर्ष शुभ और मंगलमय हो |
    आशा

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  3. एक प्रेमी की प्रेमिका को प्यारी सी इल्तिजा ..........
    तुम जैसी थी फिर वैसी ही हो जाओ |
    हो जाओ न दोस्त फिर से वैसी ?
    बहुत सुन्दर राचन :)

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