अबोध सौन्दर्य था,
हठ था बाल सुलभ,
अबोध थी चितवन,
आंखे निहारूं तो कपोल सुर्ख,
कपोल छूं भर लूं
तो लरज उठते थे होंठ,
चॊंच लड़ाती थी बेवजह,
गलती खुद की फ़िर भी,
मान मनउव्वल मेरे हिस्से,
हां सहेजा हमेशा मुझे,
कॉपी राइट की ही तरह,
ओझल हुआ तो बोझिल किया,
आंसुओं से,
मगर सच तो यह है कि,
थी तुम जैसी भी,
मन को अच्छा लगता था,
पर अचानक यह क्या हुआ,
क्यों हो गया ऐसा,
ऐसी बेरुखी,
"कारण" जो भी हो,
मै तो वह "कारण" नही,
इल्तिजा समझ लो इसे,
"तुम पहले जैसे हो जाओ"।
प्यार की गहराई है ये..बहुत ही सुंदर...आपकी लेखनी में गजब का सम्मोहन है...
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए...
*काव्य- कल्पना*:- दर्पण से परिचय
*गद्य-सर्जना*:-जीवन की परिभाषा…..( आत्मदर्शन)
भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव लिए रचना |बधाई |आपके ब्लॉग पर आने का पहला अवसर है |नव वर्ष शुभ और मंगलमय हो |
जवाब देंहटाएंआशा
pyaar bhari iltzaa
जवाब देंहटाएंएक प्रेमी की प्रेमिका को प्यारी सी इल्तिजा ..........
जवाब देंहटाएंतुम जैसी थी फिर वैसी ही हो जाओ |
हो जाओ न दोस्त फिर से वैसी ?
बहुत सुन्दर राचन :)
बहुत सुन्दर रचना :)
जवाब देंहटाएंaapki lekhni mein sammohan hai, ye baat satya hai !!!!!
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जवाब देंहटाएंापने लिखा... हमने पढ़ा... और भी पढ़ें...इस लिये आपकी इस प्रविष्टी का लिंक 26-07-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल पर भी है...
आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाएं तथा इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और नयी पुरानी हलचल को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी हलचल में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान और रचनाकारोम का मनोबल बढ़ाएगी...
मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।
जय हिंद जय भारत...
मन का मंथन... मेरे विचारों कादर्पण...
मन के भावो को शब्द दे दिए आपने......
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