बुधवार, 13 अक्तूबर 2021

सफेद स्कूटी

 


"मे आई कम इन सर", बच्चे ने क्लासरूम का दरवाजा धीरे से खोलते हुए पूछा। "हां आ जाओ", बोला युगांशु ने। "दीपिका मैम चाक मांग रही , उनकी खत्म हो गई",  बताया बच्चे ने।

युगांशु कक्षा नौ और दस को मैथ्स पढ़ाता था और उसी स्कूल में दीपिका उन्ही दोनो कक्षाओं को साइंस पढ़ाती थी। कक्षा नौ और दस अगल बगल के कमरों में ही लगती थी और ऐसा टाइम टेबल  था कि जब एक कक्षा में युगांशु पढ़ा रहा होता था उसी पीरियड में बगल की कक्षा को दीपिका साइंस पढ़ाती थी।

युगांशु ने उस बच्चे को चाक के डिब्बे से दो चाक निकाल कर दे दी और फिर कमरा बन्द कर पढ़ाने में व्यस्त हो गया। मैथ्स को सरल कर पढ़ाने के कारण युगांशु बच्चों में और अपने कलीग में भी बहुत कम समय मे ही लोकप्रिय हो चुका था।

पढ़ने में हमेशा अव्वल रहने के कारण एम एस सी (मैथ्स) , बी एड करते ही युगांशु को केंद्रीय विद्यालय में शिक्षक की नौकरी मिल गई थी , बस अफसोस इस बात का था कि उसे यह नौकरी अपने शहर सहरसा, बिहार से बहुत दूर चंडीगढ़ में मिली थी। यह शहर उसके लिए बिल्कुल नया था और कोई भी परिचित नही था।

स्कूल में इंटरवल में या कोई पीरियड खाली मिलने पर स्टाफ रूम में सभी शिक्षक मिलते थे और प्रायः लंच वगैरह साथ मे ही करते थे।

एक बार स्टाफ रूम में कॉपी चेक करते समय दीपिका उसके बगल में बैठी थी और उसने देखा कि कॉपियां तो उसके कक्षा के बच्चों की ही है। इस पर दीपिका ने युगांशु से पूछ लिया,"सर आप कक्षा नौ और दस को पढ़ाते है, उसी कक्षाओं को तो मैं साइंस पढ़ाती हूँ।"

दीपिका की तब तक कभी युगांशु से मुलाकात नही हुई थी क्योंकि स्कूल का नया सत्र शुरू हुआ था और दीपिका ने भी युगांशु की ही भांति नई नौकरी प्रारंभ की थी। दीपिका चंडीगढ़ से ही थी और उसने भी एम एस सी फिजिक्स और फिर एम एड किया था। आयु में वो युगांशु से एक वर्ष लगभग बड़ी ही थी।

युगांशु ने कॉपी चेक करते करते बोला, " हां मैं उन्हें मैथ्स पढ़ाता हूँ, बच्चे अच्छे है यहां के मगर पकाते बहुत है पूछ पूछ कर।" हूँ, बहुत तारीफ सुनी है बच्चों के मुंह से आपकी, अक्सर युगांशु सर युगांशु सर बोलते रहते है और आपकी क्लास कभी मिस नही करना चाहते। दरअसल मैं उन्हें साइंस तो पढ़ाती ही हूँ साथ मे उनकी क्लास टीचर भी हूँ", बताया दीपिका ने।

सारे स्कूल में यही दोनो शिक्षक नए नियुक्त हुए थे ,बाकी सारा स्टाफ काफी पुराना था वहां। दोनो साथ मे होते तो नवयुगल से लगते थे मगर दोनो गम्भीरता से अपना दायित्व निभा रहे थे और शिक्षण में लोकप्रिय होते जा रहे थे।

दोनो के पीरियड लगभग एक साथ ही छूटते थे तो दोनो क्लास से निकल कर ग्राउंड पार कर स्टाफ रूम तक साथ ही जाते थे। क्लास के दौरान भी चाक और डस्टर के लेन देन से बच्चे भी जान गए थे दोनो शिक्षक होने के साथ साथ एक दूसरे के दोस्त से भी हैं।

 पहले छमाही परीक्षा के दौरान दोनो अक्सर बच्चों के नाम लेकर बात करते रहते कौन सा बच्चा बहुत अच्छा है या कौन टॉप करेगा। कई बच्चे जो मैथ्स में बहुत अच्छे थे उनकी साइंस उतनी अच्छी नही थी। उन पर ध्यान देने की बात होती।

धीरे धीरे दिन में स्टाफ रूम तक साथ आने जाने का सिलसिला शाम को भी घर तक जाने में तब्दील होने लगा।युगांशु स्कूल के पास में ही रहता था और पैदल ही आना जाना होता था। दीपिका का घर उसी रास्ते पर ही था मगर काफी दूर था। वो स्कूटी से आती जाती थी।

शाम को दोनो स्कूटी स्टैंड तक साथ आते फिर वहां से युगांशु को बाय बोल कर दीपिका स्कूटी से चली जाती थी।

जब कभी युगांशु पहले स्टैंड पहुंच जाता तो वहां उसकी सफेद स्कूटी , जो  इकलौती सफेद स्कूटी थी वहां, को खड़ा देख रुक जाता था और उसकी प्रतीक्षा करता था।

स्टाफ रूम में दिन में दोनो अब लगभग रोज़ ही लंच साथ मे ही करने लगे थे और अक्सर एक दूसरे का लंच शेयर भी कर लेते थे। 

एक दिन लंच के दौरान गलती से दीपिका ने युगांशु का गिलास उठाया और पानी पी लिया। एकदम से चौंकते हुए युगांशु ने कहा,"अरे वो मेरा जूठा गिलास है, मैंने अभी ही उससे पानी पिया है।" उसमें बचा हुआ सारा पानी तब तक दीपिका पी चुकी थी।

दोनो थोड़ी देर तक हतप्रभ सा रहे फिर लंच खत्म कर अपनी अपनी क्लास में चले गए। उस शाम को दोनो ने साथ मे जाना भी अवॉयड किया। युगांशु रात भर सोचता रहा, ऐसे क्यों हुआ या दीपिका ने जानबूझ कर किया। अभी उसके मन मे दीपिका को लेकर कोई बात नही आती थी। बस उसके साथ बात करना समय बिताना आना जाना अच्छा तो लगता था मगर उसके आगे कुछ नही।

अगले दिन लंच में दोनो फिर जब मिले तो दीपिका ने युगांशु से बोला, " अगर तुम्हें बुरा लगा हो तो आई एम सॉरी ,पर गलती से ऐसा हो गया।" युगांशु भी पता नही किस सोच में था कि तुरंत उसने दीपिका का एक हाथ अपने दोनो हाथों में पकड़े पकड़े बोल दिया , नही ऐसा कुछ नही, सॉरी कहने की जरूरत नही।

उस दिन दोनो यूँ ही हाथ थामे बहुत देर तक बातें करते रहे गये।

यह सिलसिला अब रोज का हो चला था कि एक हाथ दोनो के आपस मे गुंथे होते और दूसरे हाथ से खाना खा रहे होते। अब तो दोनो में हंसी मजाक भी शुरू हो गया था। दीपिका कहती ," मैथ्स के टीचर इतने खडूस क्यों होते है, प्यार व्यार कुछ जानते ही नही।"  युगांशु हंस कर कहता, वही तो सीखने आये है यहां चंडीगढ़ में , वो भी शहर वाला प्यार।"

रोज का यह क्रम था ,दिन में लंच साथ मे करना, क्लास के दौरान चाक डस्टर का लेन देन, शाम को स्टैंड पर सफेद स्कूटी का देख कर वहां रुकना और साथ मे वापस जाना तय रहता था। सफेद स्कूटी युगांशु के लिए अब गुलाब सरीखी हो चुकी थी।

स्कूल का सत्र खत्म हुआ। गर्मियों की छुट्टियों में युगांशु घर चला गया। दीपिका को तो चंडीगढ़ में ही रहना था। दोनो ने चिट्ठी के माध्यम से हालचाल लेने की बात की और विदा ले लिया अगला सत्र खुलने तक के लिए।

छुट्टियां बीती। युगांशु वापस आया और अपनी चिट्ठी का जवाब न देने की शिकायत लिए लिए सुबह सीधे स्टैंड पर गया पर वहां उसे सफेद स्कूटी नज़र नही आई। फिर अपनी क्लास में जाकर बच्चों से मिला । उनकी छुट्टियां कैसी बीती यह सब बातें की। बच्चे युगांशु से बड़े उत्साह से नही मिल रहे थे, लग रहा था जैसे कुछ बताना भी चाह रहे हों और कुछ छुपाना भी।

उस दिन नए सत्र का पहला दिन था , काफी व्यस्तता में बीता उसका। लंच में भी स्टाफ रूम नही जा पाया, अपने बैंक के काम मे व्यस्त रहा।

शाम को युगांशु फिर स्टैंड पर पहुंच कर सफेद स्कूटी ढूंढ रहा था। मगर सफेद स्कूटी वहां नही थी।

आखिर उसने हिम्मत जुटा कर स्टैंड वाले से पूछ ही लिया,"  सफेद स्कूटी वाली मैम नही आज क्या।"

स्टैंड वाला चौंकते और हकलाते हुए बोला, "आपको नही मालूम सर, वो जिस दिन स्कूल बंद हुआ था गर्मियों की छुट्टी के लिए उसी दिन घर जाते समय किसी ट्रक से टकराकर उनकी सफेद स्कूटी पूरी लाल हो गई थी। वो अब नही हैं।

युगांशु ने उस उदास शाम को निर्णय लिया कि दीपिका के साइंस का पीरियड भी वही लिया करेगा, इसी बहाने उन बच्चों को पढ़ाने में दीपिका को महसूस कर सकेगा।

अगले सत्र के अंत मे वार्षिक परीक्षाफल में उस स्कूल के बच्चों ने साइंस में सारे प्रदेश में अधिकतम नम्बर प्राप्त किये।

यह प्यार बच्चों का साइंस से  था या शायद युगांशु का दीपिका से।

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