एक सोख्ता कागज होता था पहले, ब्लॉटिंग् पेपर, रुमाल जैसा एक कागज़, परीक्षाओं में भी दिया जाता था मुफ्त। तब स्याही वाली पेन चलती थी अगर स्याही लीक कर जाए या गिर जाए तो उसी सोख्ता कागज़ से उस स्याही को सोख लेते थे।
उस सोख्ता कागज पर अगर स्याही वाली पेन की निब हल्के से टच कराते थे तो स्याही की एक बूंद उस पर बन जाती थी ,फिर वह बूंद धीरे धीरे चारों ओर वृत्ताकार शेप में फैलने लगती थी। उस वृत्त की न कोई सीमा न कोई परिधि न कोई अंत होता था।
"प्रेम की भी अगर कोई एक बूंद हृदय को छू जाए तो वह भी ऐसे ही चारों ओर विस्तृत होने लगता है,फिर प्रेम की न कोई परिधि न उस विस्तार का कोई अंत। परंतु हृदय भी तब सोख्ता कागज जैसा ही होना चाहिए ,जिसमे सब कुछ सोख लेने का गुण हो।"
सोख्ता कागज़ जैसा हृदय ... वाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर विचार
आभार
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १९ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत प्रेरक विचार है अमित जी।
जवाब देंहटाएंआभार।
हटाएंइतने नए नए विचार कहाँ से सूझते हैं । काश हृदय सोख़्ता ही होता । प्रेम के अलावा भी सब कुछ सोख लेता ।
जवाब देंहटाएंNice Post :-👉 girl mobile number for friendship on whatsapp Girl Mobile Number Whatsapp Girl Mobile Number List
जवाब देंहटाएंइतना ज्ञान आने तक प्रेम की उम्र निकल जाती ।
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