शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

खलिश ....

नींद का क्या है जब आएगी तब आएगी,
ख्वाब तो उनके तस्व्वुर का पलकों पे है।

जान का क्या है जब जाएगी तब जाएगी,
खयाल तो एक शाम उनका होने का है।

उसूलों की बात जब होगी तब होगी,
रिवाज़ तो अभी मोहब्बत निभाने का है।

नाम उनकी जुबां पे जब होगा तब होगा,
हिचकी मेरे ख़्याल से रुकती तो होगी।

खुदा का ज़िक्र जब होगा तब होगा,
इबादत में बस मुराद उनकी ही होगी।

गुफ़्तगू उनसे जब हो न जाने कब हो,
अभी सिलसिले दरमियां निगाहों के हैं।

तसदीक मोहब्बत की ही होगी जब होगी,
लबों पे किस्से अभी तलक गुनाहों के है।

© अमित

(पिछली पोस्ट को विस्तार देते हुए)

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