मकान ऊँचा था ,
इंसान इतराया,
वक्त भी बौना लगा ।
वक्त रीता ,
रीता रेत भी ,
आसमान मुस्कुराया ।
वक्त फिसल गया,
हाथ छूट गया,
इंसान बौना रह गया ।
सीमेंट रेत सरिया,
खुद मजबूत नहीं होते,
वक्त ही निभाता इन्हें ।
वक्त गर मजबूत ,
झोपड़ी को भी हासिल हुनर ,
पनाह का महलों को।
©अमित
बहुत बढ़िया
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