खरी खरी
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मुझे शुरुआती पढ़ाई से लेकर प्रोफेशनल पढ़ाई तक कोई भी शिक्षक ऐसा नही मिला जिसने कोई ऐसी किताबी शिक्षा दी हो या जीवन का मंत्र दिया हो जिसके लिये उन्हें याद रख सकूँ या श्रद्धा उमड़ पड़े।
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मुझे शुरुआती पढ़ाई से लेकर प्रोफेशनल पढ़ाई तक कोई भी शिक्षक ऐसा नही मिला जिसने कोई ऐसी किताबी शिक्षा दी हो या जीवन का मंत्र दिया हो जिसके लिये उन्हें याद रख सकूँ या श्रद्धा उमड़ पड़े।
जो भी शिक्षक मिले ,वे सारे आम लोगों की तरह ही पढ़ने वाले बच्चों के पारिवरिक पृष्ठभूमि और उनके आर्थिक स्तर से प्रभावित हो बच्चों के प्रति भेदभाव करते हुए ही मिले।
यह अलग बात रही कि अगर कोई सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग का बच्चा मेधावी प्रतीत हुआ तो उसे शिक्षकों ने इसलिए अपने करीब कर लिया जिससे कि उसकी सफलता का श्रेय खुद भी ले सकें।
सच तो यह है कि बच्चों के मन मे शिक्षक के प्रति बहुत सम्मान होता है और उसे यह लगता है कि वो उनके हर सवाल का जवाब होगा। पर जब वह अपने सवालों को उपेक्षित होता देखता है तो कारण समझ नही आता। यह अस्पष्टता अपने सवालों के प्रति जब उपजती है तो प्रारंभ में उसे अपने प्रति हेयता होती है फिर वही हेयता शिक्षक के प्रति उदासीनता उत्पन्न करती है।
"यह दायित्व शिक्षक का है कि वह मनन चिंतन करे कि ऐसा क्या उसने सिखाया अथवा पढ़ाया है जिसके लिए उसके विद्यार्थी याद रख सकें।"
"जाति, धर्म,आर्थिक भिन्नता का पहला सबक बच्चा स्कूल में अपने प्रति किये जा रहे व्यवहार से ही सीखता है। प्रोफेशनल शिक्षा में यही आखरी सबक भी होता है जो शिक्षक वहां पढ़ाते है।"
अगर कोई याद आता है आज तो वो लोग साधारण से है पर मेरे लिए बहुत खास :
१. वो साइकिल मिस्त्री जिसने मुझे साइकिल की उतरी हुई चेन चढ़ाना सिखाया।
२. स्कूल की आया जिसने टिफिन के ढक्कन से छुपाते हुए टिफिन करना सिखाया था नही तो मैदान में ऊपर उड़ती चील झपट्टा मार देती थी।
३. वो मोची जो हमेशा झुका हुआ ही दिखा और चमकाता रहता था जूतों को। उससे सीख कर मैं भी बहुत अच्छी पॉलिश करता था अपने स्कूल शूज़ की।
४. सर्विस स्टेशन वाला मिस्त्री जिसने कार का पहिया बदलना सिखाया।
५.पतंग में कन्ना बांधने के बाद सिर के दबाव से हल्का ताव देना सीखा था मोहल्ले के सबसे बिगड़े और बदनाम लड़के से।
६.दूध वाले का वो लड़का फिरोज़ जिसने मुँह में अंगुली डाल कर सीटी बजाना सिखाया था। इसी सीटी ने कॉलेज में मुझे मशहूर कर दिया था बाद में।
१. वो साइकिल मिस्त्री जिसने मुझे साइकिल की उतरी हुई चेन चढ़ाना सिखाया।
२. स्कूल की आया जिसने टिफिन के ढक्कन से छुपाते हुए टिफिन करना सिखाया था नही तो मैदान में ऊपर उड़ती चील झपट्टा मार देती थी।
३. वो मोची जो हमेशा झुका हुआ ही दिखा और चमकाता रहता था जूतों को। उससे सीख कर मैं भी बहुत अच्छी पॉलिश करता था अपने स्कूल शूज़ की।
४. सर्विस स्टेशन वाला मिस्त्री जिसने कार का पहिया बदलना सिखाया।
५.पतंग में कन्ना बांधने के बाद सिर के दबाव से हल्का ताव देना सीखा था मोहल्ले के सबसे बिगड़े और बदनाम लड़के से।
६.दूध वाले का वो लड़का फिरोज़ जिसने मुँह में अंगुली डाल कर सीटी बजाना सिखाया था। इसी सीटी ने कॉलेज में मुझे मशहूर कर दिया था बाद में।
यह एक लम्बी फेहरिस्त हो सकती है।
ज्यादातर मैंने जो कुछ भी सीखा अपने से उम्र में कम वाले लोगों से ही सीखा। बड़ों को शायद सिखाना या पढ़ाना कम आता है या उनके अंदर मानसिक ग्रंथियां बहुत होती हैं।
मेरे तो दोस्त ही मेरे गुरु रहे लगभग सारी कक्षाओं में, उनके कारण ही आज जो कुछ भी है, हासिल हो पाया है।
:) अच्छा है गुरु घंटाल नहीं मिले ।
जवाब देंहटाएंवाह, यह भी एक दृष्टिकोण है
जवाब देंहटाएं:)
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