" हैशटैग....."
हैशटैग सा ,
हो गई थी तुम ,
प्रसंग होता मैं ,
सन्दर्भ रहती तुम ।
सूखे पत्ते हों या,
हो कटी पतंग ,
उन्हें कोई अब
हैशटैग नहीं करता ।
बालकनी पे खुलते ,
खिड़की के वो पल्ले ,
जैसे हो एक जोड़ी ,
निगाहें तुम्हारी ।
स्मृतियाँ नहीं ,
बनती मञ्जूषा ,
जानता अगर ,
तो क्यों सहेजता ।
अरे वाह... :)
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
खूबसूरत ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर, दिल को छू लेने वाली प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें.... ;) :P
अब कौन याद करता है सूखे पत्तों को ..कटी पतंग को . उनको तो डायरी में संभाल के रखता था तब #टैग का जमाना नहीं था ना ..अब तो हर कोई बस उड़ते रहना चाहता है ..खिलते रहना चाहता है तो #टैग भी modren होंगे ना ।
जवाब देंहटाएंअब कौन याद करता है सूखे पत्तों को ..कटी पतंग को . उनको तो डायरी में संभाल के रखता था तब #टैग का जमाना नहीं था ना ..अब तो हर कोई बस उड़ते रहना चाहता है ..खिलते रहना चाहता है तो #टैग भी modren होंगे ना ।
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