बीती रात मैं पुस्तक मेले में गया था | एकदम सन्नाटा पसरा था वहां | सभी स्टाल बंद और ढके मुंदे थे ,कुछ हार्डबोर्ड से और कुछ तिरपाल से | यूं ही एक स्टाल के बगर से गुजर रहा था (जिसके बाहर लिखा था "हिन्दी की बेस्ट सेलर्स ) तो लगा जैसे भीतर कोई बाते कर रहा हों | ठहर कर आदतन उनकी बातें सुनने का प्रयास करने लगा |
एक मीठी सी पर उदास आवाज़ में कोई अपनी व्यथा सुना रहा था ,उसने पल्लू से अपने कई बार साफ किया चेहरा मेरा ,थोड़ा देखा फिर सीने से लगाया पर अपने संग ले नहीं गई | तब तक शोख आवाज़ में कोई और बोल पड़ा ,तुम्हे तो सबसे आगे जगह मिली है ,सज धज कर रंगीन आवरण में टिकी रहती हो ,बस इसीलिये हर कोई हाथों हाथ लिये रहता है | वहीं भारी आवाज़ में कोई बोला कि मेरा वज़न इतना ज्यादा कर दिया है कि नाजुक कलाइयों वाले मुझे छूते ही नहीं कि कहीं मुचक न जाये कलाई उनकी | लो कर लो बात ,बोल उठी एक पतली सी एकदम महीन आवाज़ ,मुझे तो इतना छरहरा बना रखा है कि लोग विग्यापन समझ बिना पूछे संग ले जाने लगते हैं | एक सयानी सी आवाज़ उन सब को समझा रही थी ,बहुत दुनिया देखी है हमने , अगर बाजार में चलना है तो थोड़ा बन ठन के तो रहना पड़ेगा और भीतर थोड़ा अत्याचार / व्यभिचार , लाचार हरकतें भी जरूरी हैं तभी गाड़ी चल पाती है | आगे वृद्ध आवाज़ में सुनाई पड़ा कि जैसे जिंदा जिस्म ही हरकत कर सकता है वैसे ही अगर हमारे अंदर जिस्मानी नुमाइश न हो तो फिर खुद को मुर्दा ही समझो | जो भी यहाँ से धडा धड़ निकल रही है और लोग हाथों हाथ ले रहे हैं उनमे प्रेम कम तिरस्कार अधिक और सम्बंध कम विच्छेद अधिक है |
सुनते सुनते जब मैं और करीब जाने लगा उनके ,सहसा कोई बोल पड़ा ,कोई है कोई है ,इस पर सारी आवाज़ें बंद हो गई ,वैसे ही जैसे घूंघट के भीतर से ही अगर सास के आने की आहट मिल जाये तो बहुएं उसकी बुराई करना बंद कर देती हैं |
दरअसल यह सब किताबें ही थी तो रात में जीवंत हो उठी थी और आपस में बतिया रही थी | पता नहीं क्यों मुझे सारी किताबें परस्पर ईर्ष्यालु सी लगीं |
किताबों का दर्द...कुछ यूँ भी
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19-02-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1894 पर दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
पाठक कम हो रहे हैं दिन-प्रतिदिन।
जवाब देंहटाएंपुस्तकों का दर्द सुन ऑंखें आईं।
बखूबी बयां किया आपने पुस्तकों का दर्द ...
जवाब देंहटाएंसही बयान किया आपने।
जवाब देंहटाएंभला कौन समझ पाएगा इन पुस्तकों का दर्द।
पुस्तकों का दर्द ....... बयान किया आपने।
जवाब देंहटाएंबहुत सही फरमाया है आपने।
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जवाब देंहटाएंकल 22/फरवरी /2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
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जवाब देंहटाएंHerbal remedies
ढेरों शब्दों को समेटे किताब खुद अपने शब्द किस्से कहे |
जवाब देंहटाएंढेरों शब्दों को समेटे किताब खुद अपने शब्द किस्से कहे |
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