हर मुड़ा तुड़ा कागज कचरा नहीं होता ,
आंसुओं संग बह जाये वह कजरा नहीं होता ,
मुड़े तुडे कागज़ अक्सर होते हैं खत मोहब्बत के ,
लफ्ज़ जिसके हरेक जुगनू होते हैं 'उन' नज़रों के ,
ऐसा ही टुकड़ा एक दबा रह जाता है अक्सर नीचे तकिये के ,
और कर देता है उस ओर मुझे 'उनकी' यादों के हाशिये के ।
हाशिये पर ही ठहर गई फिर एक बार कलम उनकी ,
दिल कह रहा है आंसुओं से बन जाओ अब स्याही उनकी ।
हाँ ,यह सच है आँखें आँसू बहाना चाहती हैं ,
यह भी सच है , कोई तो 'बहाना' चाहती हैं ।
आपकी लिखी रचना शनिवार 04 अक्टूबर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमुड़ा हुआ कागज़ भी ज़ज्बातों की कहानी बयाँ कर जाता है
जवाब देंहटाएंयह भी सच है कोई तो 'बहाना' चाहती हैं ...... भावमय करते शब्द
जवाब देंहटाएंहाँ ,यह सच है आँखें आँसू बहाना चाहती हैं ,
जवाब देंहटाएंयह भी सच है , कोई तो 'बहाना' चाहती हैं ।
waah...behatreen
हाँ ,यह सच है आँखें आँसू बहाना चाहती हैं ,
जवाब देंहटाएंयह भी सच है , कोई तो 'बहाना' चाहती हैं ।
बहुत ही भीगी-भीगी सी रचना ! हर लफ्ज़ मन की टीस को अभिव्यक्त करता है और दर्द की रवानी को गति देता है ! बहुत सुन्दर रचना !
अरे वाह...बहुत बढिया कविता है अमित जी.
जवाब देंहटाएंहर मुड़ा तुड़ा कागज कचरा नहीं होता ,
जवाब देंहटाएंआंसुओं संग बह जाये वह कजरा नहीं होता ,
...बहुत सही ..
Nice Article. I m always Read your articles. It's realy Enjoyable. Thanks For Sharing with us. Ind Govt Jobs
जवाब देंहटाएंयह भी सच है , कोई तो 'बहाना' चाहती हैं ।
जवाब देंहटाएं....-भीगी सी रचना !
हाँ सच है आंसु को बहने का बहाना तो चाहिए
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