बुधवार, 5 मार्च 2014

" डॉक्टर्स ........प्लीज़ "


कानपुर मेडिकल कालेज के जूनियर डॉक्टर्स के साथ हुई घटना से जूनियर डॉक्टर्स के साथ साथ सभी डॉक्टर्स में भारी रोष व्याप्त हुआ | परिणाम स्वरूप देश भर की चिकित्सीय व्यवस्था प्रभावित हुई और दर्जनों मरीजों की चिकित्सा के अभाव में जान चली गई | एक छोटे से विवाद ने यह रूप ले लिया | इसके लिये जूनियर डॉक्टर्स के साथ साथ विधायक , पुलिस ,प्रशासन सभी जिम्मेदार हैं | यह घटना अवॉइड की जा सकती थी | 

मेडिकल छात्र प्रथम वर्ष से ही सफेद कोट पहन कर जूनियर डॉक्टर कहलाये जाने लगते हैं और इसमें उन्हे फख्र होता है और होना भी चाहिये | अस्पतालों में सफेद कोट पहने डॉक्टर को देखते ही पीड़ित व्यक्ति उससे एक आस , एक भरोसा , एक विश्वास की उम्मीद करने लगता है | डॉक्टर को लोग ईश्वर का दर्जा देते हैं ,यह अतिश्योक्ति नहीं है | इस भरोसे को कायम रखने के लिये डॉक्टर्स को बहुत श्रम और त्याग करना पड़ता है | डॉक्टर बनने की प्रक्रिया में लगे जूनियर डॉक्टर अपने छात्र जीवन के दौरान एक आम छात्र की तरह किसी से विवादित व्यवहार जब भी करते हैं तभी समस्या उत्पन्न होती है | समस्या बढ़ने पर / कोपभाजन का शिकार होने पर अथवा उपहास का पात्र बनने पर उस घटना को सम्पूर्ण डॉक्टर्स समुदाय से जोड़कर अनुचित लाभ लेने का प्रयत्न करते हैं | 

मेडिकल कालेजों में जब भी छात्रों का उपद्रव हुआ है ,अंत में उन्हे सभी वरिष्ठ डॉक्टर्स का समर्थन मिल जाता है | यह नहीं होना चाहिये | गुण दोष के आधार पर ही मेडिकल कालेज के प्रबंधन को निर्णय लेना चाहिये | दरअसल  सभी मेडिकल कालेजों में चिकित्सा व्यवस्था अधिकतर इन्ही जूनियर डॉक्टर्स के सहारे चलती है ,बस इसी बात का फ़ायदा उठा कर यह जूनियर डॉक्टर्स पूरे प्रबंधन को अपने इशारों पर नचाते हैं |  

जब भी इन जूनियर डॉक्टर्स का संघर्ष कालेज के आसपास , शहर में कहीं अथवा मरीजों के तीमारदारों के साथ होता है ,इनके हॉस्टल से पत्थर बाजी / बम और कट्टे चलते हैं | यह कौन से लोग हैं और यह कौन सी पढ़ाई , बिल्कुल ही समझ से परे | अगर यह छात्र पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ अपनी पढ़ाई और मरीज-सेवा में लगे होते तो कानपुर में हुई घटना में उस कालेज के आसपास के निवासी / दुकानदार तत्काल उनके समर्थन में उतर आये होते | उन लोगों से अगर इन जूनियर डॉक्टर्स के बारे में राय लीजिये तो सुनने को मिलेगा कि कोई ऐसा गलत आचरण नहीं है जो यह जूनियर डॉक्टर्स न करते हों | जब पब्लिक में इमेज खराब रहती है तब कोई आंदोलन सफल नहीं होता | कानपुर जैसी घटनायें होने के बाद जब भी विश्लेषन किया जायेगा ,गलती प्रशासन की ही नज़र आयेगी और इस मामले में पुलिस और प्रशासन से तो भयंकर चूक बरती गई है | परंतु क्या यह घटना होने से पहले ही रोका नहीं जा सकता था | 

हमारे समाज में डॉक्टर्स के प्रति धीरे धीरे सम्मान कम होता जा रहा है , यह भी डॉक्टर्स को मनन करना चाहिये कि ऐसा क्यों हो रहा है | आज लगभग प्रत्येक डॉक्टर पूरी तरह से व्यवसायिक हो चुका है | उसे मरीजों की शक्ल में अपने लोन की  'इ एम आई' दिखाई पड़ती है | दवाओं की लम्बी फेहरिस्त में सिरप / टोनिक / ताकत की दवायें महज डॉक्टर का कमीशन ही बढाती हैं ,मरीज के किसी काम की नहीं होती | यही बात पैथालोजिकल टेस्ट के बारे में भी सच है कि डॉक्टर्स अनावश्यक रूप से मरीजों के भिन्न भिन्न टेस्ट कराते हैं ,बस अपने स्वार्थ सिद्धी के लिये | पैथालोजिकल सेंटर से खुले आम रेफर करने वाले डॉक्टर को कमीशन मिलता है | अब इसके समर्थन में डॉक्टर्स कहते हैं कि सारी दुनिया पैसा कमाती है तो हम क्यों न कमायें | सही बात ,आप भी सारे सही गलत रास्ते अख्तियार कर खूब पैसे बनाओ पर फिर कभी भगवान का दर्जा पाने की बात न करें ,डॉक्टर साहब | अब जब पुलिस आपको आम आदमी की तरह पीटे तब डॉक्टर होने का विशेष दर्जा न क्लेम करें | 

महंगी महंगी एंटीबायोटिक / लाइफ सेविंग दवाओं को लिख कर भर्ती मरीज के लिये मंगवा लेना और उनका प्रयोग भी न किया जाना बहुत आम बात है | पहले बरसों लगते थे तब किसी नामी गिरामी डॉक्टर का एक बड़ा दवाखाना बनता था अब तो कालेज से निकलते ही लोन ले कर बड़ा नरसिंग होम बनाना आम बात है ,उसके बाद 'इएमआई' देने के लिये मरीज चलते फिरते 'एटीम' है ही | 

एक समय था जब शहर के सिविल सर्जन को जिले का कलेक्टर रिसीव करने अपने कक्ष से निकलता था | अब ऐसा क्या हो गया कि आम जनता का डॉक्टर्स को भगवान मान कर सम्मान करना लगभग समाप्त प्राय हो गया है | इसका केवल एक और एक ही कारण है ,डॉक्टर्स का पूरी तरह से अपने मरीजों के प्रति संवेदंशील न होना और पूर्णतया व्यवसायिक हो जाना |

इन सबसे अलग जो डॉक्टर्स अपने कार्य / मरीजों के प्रति संजीदा हैं और व्यवहार में अत्यंत मानवीय हैं ,उन्हे आज भी ईश्वर का दर्जा और अतुलनीय सम्मान प्राप्त है | 

डॉक्टर साहब ,नाम के आगे यह दो अक्षर (Dr) आपको इंसान से देवता बना देते हैं ,इसका मान और सम्मान रखें , डॉक्टर......... प्लीज़ | 

9 टिप्‍पणियां:

  1. इधर दवाइयों पर निर्भरता भी बढ़ी है...लोग व्यायाम करने की अपेक्षा दवाई खाना अधिक आसान समझते हैं...बुढ़ापे का भी इलाज हो रहा है...५० साल की उम्र में मेरा शरीर २५ साल का नहीं रहेगा...पर हम रिवाइटल खा-खा के जवान बने रहना चाहते हैं...ये लड़ाई समाज में व्याप्त बढती असहिष्णुता को दर्शाती है...शासन के एम एल ए किसी को भी सुधारने के लिये फ़ौज बुला सकते हैं...बाकि सब बैल की तरह व्यवहार करें...और ज़िम्मेदारी सिर्फ पढ़े लिखों की...

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  2. विचारणीय बिन्दु हैं, संक्रमण व्यापक है, समाज हर जगह अपनी नग्नता में व्यक्त है।

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  3. Are these thigs not applicable on us i.e. on Engineers .It is very easy to raise finger on others. After all they are very talented students, not the criminals.

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  4. आजकल तो अकबार की हेड लाइन्स बने हैं ये डॉक्टर.....हमारे प्रदेश में तो ख़ास कर...हर किस्म के घोटालों में इनके पास मास्टर्स डिग्री है...एक समय engineers को भ्रष्ट समझा जाता था फिर एडमिनिस्ट्रेटर्स का नंबर आया....अब ईश्वर के लिबास में ये डॉक्टर्स आये हैं....घोटालों के रूप में इनका पैसे खाना लोगों की जिंदगियों से खेलता है पर उन्हें क्या?? पिछले साल बहुत करीब से देखा इनको....शुक्र है मेरा pmt में सिलेक्शन नहीं हुआ था :-( अभी एडमिशन में किये घोटाले अलग सुर्खी बने हैं....
    भैया डॉक्टर्स हो कि दलाल....??
    सच कहा आपने,बिल्कुल रेस्पेक्ट खो दी है इस पेशे ने...

    सादर
    अनु

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  5. संवेदन हीनता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है.......

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  6. I am fully agree with you my dear blog writer, but was it justified to beat drs like this. You have not written any thing on it. Kindly answer .
    Thank you

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    1. यह एक अत्यंत दुखद घटना थी | पुलिस का बर्बरता पूर्ण रवैया किसी भी तरह से न्याय संगत नहीं था | मगर ऐसी स्थितियों में व्यक्ति और संस्था की सामान्य ख्याति काम आती है | अगर वहा के छात्रों और मेडिकल कालेज की ख्याति अच्छी होती तब वहा मौजूद लोगों का और दुकान दारों का इन जूनियर डॉक्टर्स को आँख मूंद समर्थन मिलता और बात इतनी आगे न बढ़ पाती | अक्सर इन जूनियर डॉक्टर्स से विवाद होते ही वहा उपस्थित लोग और आस पास के लोग कह उठते हैं ,अरे ये मेडिकल वाले बवाल करते रहते हैं |
      फिर भी पुलिस कार्यवाई की निन्दा की जानी चाहिये और उन्हे इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा |

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